भूमि अधिग्रहण कानून: कम्युनिस्टों को ज़मीनी हक़ीक़त का जायज़ा लेना चाहिए

संपादक महोदय,

भूमि अधिग्रहण (संशोधन) बिल पर जानकारी से परिपूर्ण लेख प्रकाशित करने के लिए, मैं पार्टी को धन्यवाद देता हूँ।

संपादक महोदय,

भूमि अधिग्रहण (संशोधन) बिल पर जानकारी से परिपूर्ण लेख प्रकाशित करने के लिए, मैं पार्टी को धन्यवाद देता हूँ।

यदि यह बिल कानून बन जाता है तो यह 1894 के औपनिवेशिक भूमि अधिग्रहण कानून की जगह लेगा। यह औपनिवेशिक कानून पूरे देश भर में जबरदस्त नफरत का विषय बना है। यह संभव है कि पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की हार में सिंगुर और नंदीग्राम का बड़ा योगदान रहा हो। भूमि अधिग्रहण का यह कानून सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) कानून जैसा ही काला कानून है।

इस कानून का मकसद है लोगों को बेवकूफ बनाना, एक दूसरे के खिलाफ़ लड़वाना और इस जालिम राज को शराफत का मुखौटा पहनाना। इस लेख में बदलते हालत को पेश किया गया है, जहां कृषि व्यवसाय से होने वाली आमदनी लगातार कम होती जा रही है और इसके चलते आबादी का कुछ हिस्सा कृषि को छोड़कर अन्य व्यवसाय करना चाहता है। यह हिस्सा उन लोगों के खिलाफ़ हो जाएगा जो अपना पारंपरिक व्यवसाय और रोजगार का साधन छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

इसके आलावा पिछले 65 सालों में जिन लोगों की जमीन छीन ली गयी है, उनके लिए पुनर्वास का इतिहास देखें तो कोई यह नहीं कह सकता है कि जमीन बेचने से उनकी हालत में कोई सुधार होगा। जिंदगी में सुधार का वायदा केवल एक सपना है, जो केवल चंद मुट्ठीभर लोगों के लिए पूरा होता है।

इन हालातों में सभी कम्युनिस्टों को ज़मीनी हक़ीक़त का जायज़ा लेना चाहिए। ठोस हालातों का मार्क्सवादी-लेनिनवादी विश्लेषण करके अपनी पार्टी एक महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है, और सच्चाई बयान कर रही है। इस विश्लेषण के लिए मैं पार्टी का आभारी हूँ।

आपका, ए.नारायण,
बेंगलूरु

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