मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
24 अगस्त, 2023 को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों, फेडरेशनों, एसोसियेशनों और संयुक्त किसान मोर्चा ने एक संयुक्त सम्मेलन आयोजित किया। सम्मेलन ने सरकार की मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष को तेज़ करने का ऐलान किया।
इस सम्मेलन में अनेक किसान संगठनों, ट्रेड यूनियनों और अर्थव्यवस्था के विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रों से जुड़ी फेडरेशनों तथा एसोसियेशनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें रेल, डिफेंस, बैंक, बीमा, उड्डयन, स्वास्थ्य सेवा व पानी सप्लाई के क्षेत्रों के मज़दूरों, स्थानीय निकायों के कर्मियों, रेहड़ी-पटरी मज़दूरों और घरेलू कामगारों, आदि ने भाग लिया।
मज़दूर एकता कमेटी के कार्यकर्ताओं ने इस सम्मेलन में सक्रियता से हिस्सा लिया।
देश-भर के मज़दूरों और किसानों की मांगों को प्रकट करते हुए कई बैनर लगाये गए थे, जिन पर लिखे कुछ नारे इस प्रकार थे : “सभी कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दो!”, “मज़दूरों-किसानों और मेहनतकशों की एकता ज़िंदाबाद!”, “मज़दूर-विरोधी चार श्रम संहिता रद्द करो!”, “ठेकादारी प्रथा समाप्त करो!”, “बिजली का निजीकरण समाज के हितों के खि़लाफ़ है!”, “महंगाई और बेरोज़गारी के खि़लाफ़ संघर्ष तेज़ करो!”, “बैंक, रेल, बीमा, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा को बेचना बंद करो!”, “समान काम का समान वेतन लागू करो!”, “देश की दौलत पैदा करने वालों, देश के मालिक बनो!”, आदि।
कई मज़दूर और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने सम्मलेन को संबोधित किया। मज़दूरों, किसानों तथा मेहनतकश जनता पर केन्द्र सरकार की नीतियों के भयानक परिणामों का आकलन किया गया।
जीवन की ज़रूरी चीजों की बढ़ती क़ीमतों, सुरक्षित रोज़गार का अभाव, भयंकर बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की आसमान छूती क़ीमतें, कृषि के लागत की वस्तुओं पर सब्सिडी हटा दिया जाना और किसानों की उपज के लिए एम.एस.पी. व सुनिश्चित सरकारी ख़रीदी न होना, इन तमाम समस्यायों को सभी संगठनों के प्रतिनिधियों ने बड़े गुस्से के साथ उठाया।
किसानों ने दिल्ली की सरहदों पर अपने 13 महीने लम्बे धरने को सरकार के जिन वादों के आधार पर समाप्त किया था, उनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया है – इस पर सम्मलेन को संबोधित करने वाले अनेक नेताओं ने ज़ोर दिया। सार्वजनिक क्षेत्र के कारोबारों और सेवाओं – रेल व सड़क परिवहन, बिजली आपूर्ति, बैंकिंग, बीमा, रक्षा, खनन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, इत्यादि – को निजी इजारेदार पूंजीवादी घरानों के हाथों कौड़ियों के मोल पर बेचना जारी है। सरकारी विभागों में रिक्त स्थानों पर कोई नयी भर्ती नहीं की जा रही है। ठेकेदारी और आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। चार लेबर कोड के ज़रिये, मज़दूरों के हक़ों का खुलेआम हनन किया जा रहा है।
इन सब-तरफा हमलों के ख़िलाफ़ मज़दूरों और किसानों के एकजुट संघर्ष को कुचलने के लिए, हुक्मरानों की “बांटो और राज करो” की नीति, सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करने की नीति लगातार जारी है, जिसकी सभी वक्ताओं ने जमकर निंदा की।
सम्मेलन में मज़दूरों और किसानों की मांगों के एक चार्टर को अपनाया गया।
इस संयुक्त आन्दोलन को आगे ले जाते हुए, सम्मलेन में कुछ कार्यक्रमों की घोषणा की गयी। 3 अक्तूबर, 2023 (जिस दिन पर 2021 में लखीमपुर खीरी में किसानों का नरसंहार हुआ था) को काला दिवस के रूप में मनाते हुए कथित साज़िशकर्ता, गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बख़ार्स्त करने और उन पर मुकदमा चलाने की मांग की जाएगी। 26 से 28 नवम्बर 2023 तक, सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में राजभवनों के सामने दिन-रात महापड़ाव का आयोजन किया जायेगा (26 नवम्बर, 2020, श्रमिकों द्वारा अखिल भारतीय आम हड़ताल का दिन था और किसानों द्वारा संसद तक ऐतिहासिक मार्च का पहला दिन था)। दिसम्बर 2023 और जनवरी 2024 को देशभर में दृढ़ और व्यापक संयुक्त विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे ।