बिजली एक सामाजिक आवश्यकता है और एक सर्वव्यापी मानव अधिकार है

हिन्दोस्तान में बिजली पर वर्ग संघर्ष पर लेखों की श्रृंखला में यह छठवां लेख है

बिजली को लेकर जो वर्ग संघर्ष चल रहा है, वह इस बारे में है कि इस महत्वपूर्ण उत्पादक शक्ति का मालिक कौन होना चाहिए और इसके उत्पादन और वितरण का उद्देश्य क्या होना चाहिए। संघर्ष के केंद्र में है समाज में बिजली की भूमिका की परिभाषा।

एक तरफ निजीकरण के पैरोकार हैं। निजीकरण एक ऐसा कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य है बिजली की आपूर्ति को निजी बिजली कंपनियों के लिए अधिकतम मुनाफे़ का स्रोत बनाना। दूसरी तरफ मज़दूर और व्यापक जनसमूह हैं, जो इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि बिजली पूरे समाज की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है, और यह एक सर्वव्यापी मानव अधिकार है।

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बिजली समाज के जीवित रहने और प्रगति के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। आधुनिक उद्योगों और खदानों को चलाने के लिए बिजली की ज़रूरत होती है। पाइप के माध्यम से पानी की आपूर्ति करने के लिए और ज़मीन के नीचे से पानी निकालने के लिए इसकी आवश्यकता होती है। अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन की अधिकांश गतिविधियां बिजली पर निर्भर हैं। यही कारण है कि प्रति व्यक्ति बिजली की खपत को देश के विकास के स्तर का संकेतक माना जाता है।

यह भी निर्विवादित सच है कि आधुनिक समाज में बिजली प्रत्येक मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। घरों को रोशन करने के लिए इसकी ज़रूरत है। इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए इसकी ज़रूरत है। कोरोना वायरस महामारी ने स्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि जिनके घर में बिजली नहीं है, उन्हें बुनियादी शिक्षा भी नहीं मिल सकती। भोजन, आश्रय, बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सुरक्षित पेयजल के साथ-साथ, घर में बिजली की उपलब्धता एक सर्वव्यापक मानव अधिकार हैं।

बिजली को सभी मनुष्यों के अधिकार के रूप में परिभाषित करने का अर्थ है कि राज्य सभी के लिए सस्ती दरों पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है। निजीकरण का मतलब है बिजली की आपूर्ति का काम निजी कंपनियों को सौंप देना। इसका मतलब है कि राज्य अपने कर्तव्य से इंकार कर रहा है। वह मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।

निजी स्वामित्व वाली कंपनियों के लिए बिजली का उत्पादन और वितरण दोनों को अधिकतम लाभ के स्रोतों में परिवर्तित करने के उद्देश्य और दृष्टिकोण से निजीकरण का कार्यक्रम प्रेरित है। मज़दूर वर्ग और पूरी प्रगतिशील मानवता का उद्देश्य और दृष्टिकोण है कि पूरे समाज की लगातार बढ़ती भौतिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बिजली की आपूर्ति का लगातार विस्तार करना। निजीकरण का कार्यक्रम इसके साथ पूरी तरह से असंगत है।

बिजली का उत्पादन और वितरण या तो निजी लाभ को अधिकतम करने के लिए हो सकता है या फिर सस्ती दरों पर सर्वव्यापी पहुंच को सक्षम करने के लिए उसे उन्मुख किया जा सकता है। इन दोनों लक्ष्यों को एक साथ हासिल करना संभव नहीं है।

हाल के दशकों में किए गए बिजली उत्पादन के ठोस निजीकरण ने बिजली को सस्ता नहीं बनाया है। उसने बिजली को सभी के लिए सुलभ नहीं बनाया है। बिजली वितरण के निजीकरण से बिजली लोगों की खरीद क्षमता से बाहर हो जाएगी। वह दूर-दराज़ के क्षेत्रों को नियमित बिजली से वंचित करेगा।

इजारेदार पूंजीपतियों को गारंटीशुदा लाभ प्रदान करने के लिए निजीकरण का इस्तेमाल किया गया है। राज्य के स्वामित्व वाले बिजली बोर्डों और वितरण कंपनियों को आर्थिक रूप से कमज़ोर बना दिया गया है, ताकि उन्हें निजी कंपनियों को बेहद कम क़ीमत पर बेचने की स्थिति पैदा की जा सके।

हिन्दोस्तान में बिजली की प्रति व्यक्ति खपत अन्य देशों से बहुत कम है। चीन में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत हिन्दोस्तान की तुलना में लगभग साढ़े चार गुना है। इंग्लैंड में वह साढ़े तीन गुना है। संयुक्त राज्य अमरीका में, वह हिन्दोस्तान में प्रति व्यक्ति खपत का नौ गुना है। हिन्दोस्तान के भीतर, एक राज्य से दूसरे राज्य में भारी भिन्नताएं हैं। बिहार और असम में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत राष्ट्रीय औसत का केवल एक चौथाई है। उत्तर-औपनिवेशिक विकास के 75 वर्षों के बाद भी, करोड़ों ग्रामीण और शहरी घरों में बिजली नहीं है, या उसकी पहुंच बहुत अपर्याप्त है।

सभी लोगों की घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने और औद्योगिक उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि को सक्षम करने के लिए, योजनाबद्ध तरीके़ से बिजली उत्पादन और वितरण का विस्तार करने की आवश्यकता है। इसके लिए पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा को पूर्णतः बदलने की आवश्यकता है। वर्तमान दिशा हिन्दोस्तानी और अंतर्राष्ट्रीय इजारेदार पूंजीपतियों के लिए अधिकतम लाभ उत्पन्न करने की तरफ है। इसको उलटना होगा। पूरी आबादी की बढ़ती भौतिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं की अधिकतम संभव पूर्ति के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और वितरण को संचालित करने की आवश्यकता है।

बिजली के निजीकरण के खि़लाफ़ किया जा रहा संघर्ष, अर्थव्यवस्था की पूंजीवादी दिशा को बदलने के संघर्ष का एक अनिवार्य भाग है। इजारेदार पूंजीवादी लालच के बजाय मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में अर्थव्यवस्था को चलाने की ज़रूरत है। मज़दूर वर्ग को किसानों और अन्य सभी उत्पीड़ित जनता के साथ मिलकर राजनीतिक सत्ता को अपने हाथों में लेना होगा। तभी अर्थव्यवस्था की वर्तमान दिशा को बदला जा सकता है। बिजली के निजीकरण के खि़लाफ़ किये जा रहे संघर्ष को इस नज़रिये के साथ करना होगा।

पांचवां लेख पढ़िए: बिजली के वितरण का निजीकरण – झूठे दावे और असली उद्देश्य

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