संपादक महोदय,
किसानों और मज़दूरों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देना सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी के लिए किसानों ने लम्बा संघर्ष किया है। कृषि उत्पादों को एम.एस.पी. पर ख़रीदने के लिये बनाये गये तंत्रों को सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाना होगा। केवल 23 फ़सलों पर ही एम.एस.पी. लागू होती है, लेकिन सरकार एम.एस.पी. पर केवल गेहूं और धान ही ख़रीदती है, वह भी देश के कुछ ही इलाकों में। बाकी फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी क्यों नहीं है?
एम.एस.पी. पर सरकारी ख़रीदी की गारंटी नहीं होगी तो निजी कंपनियां किसानों को उत्पादों को कम से कम क़ीमतों पर बेचने पर मजबूर कर सकती हैं। एम.एस.पी. को ख़त्म करने के लिए क़दम इसलिए उठाए जा रहे हैं ताकि निजी कंपनियों को भरपूर मुनाफ़ा प्राप्त हो, जबकि किसान ज्यादा से ज्यादा क़र्ज़ों में डूबते जायें।
इसमें कोई शक नहीं है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने से देश के कई भागों के किसान मुश्किल में पड़ जाते हैं उनको अपनी फ़सलों को औने-पौने दाम पर निजी व्यापरियों को बेचना पड़ता है।
बाज़ार में निजी कंपनियों के हावी होने के कारण सरकार अनाज की ख़रीद कम करती है।
कृषि उत्पादन क्षेत्र को पूंजीपतियों का मुनाफ़ा बनाने वाले क्षेत्र में नहीं बदला जा सकता है। किसान जो भी उत्पादन करता है, उसकी सुनिश्चित दामों पर सम्पूर्ण सरकारी ख़रीदी होनी चाहिए, ताकि जब किसान उसे बेचता है तो उसे उसकी पूरी लागत मिले।
सरकार आसानी से ऐसे तंत्र बना सकती है जिससे सभी कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी संभव हो सके। लेकिन मुट्ठीभर पूंजीपतियों के मुनाफ़े को सुनिश्चित करने के लिए ही एम.एस.पी. की गारंटी की मांग को अनसुना किया जा रहा है। हमें एकजुट होकर, समाज के सभी लोगों को इस मांग के संघर्ष में आगे लेकर आना होगा।
आपका पाठक
मनोज, दरभंगा, बिहार