संपादक महोदय,
मैंने मज़दूर एकता लहर में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर छपे पार्टी के लेख को पढ़ा। लेख बहुत ही अच्छा लगा। मैं इस पर कहना चाहता हूं कि पूंजीपतियों के शुभचिंतकों का कहना है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जा सकता है। उनका मानना है कि अगर ऐसा किया गया तो सरकार को 10 लाख करोड़ का नुक़सान होगा। खुदरा क़ीमतें बढ़ जायेंगी या फिर सरकारी योजनाओं के धन में कटौती करनी पड़ेगी।
जबकि ये सारे तर्क फिजूल के हैं। सरमायदारों के बुद्धिजीवी और शुभचिंतक लोगों को गुमराह करने के लिये ये सब तर्क दे रहे हैं ताकि इजारेदार पूंजीपति बेशुमार मुनाफ़ा कमा सकें।
मज़दूर एकता लहर के लेख में स्पष्ट तरीके़ से समझाया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जा सकता है और संभव भी है।
साल 2022-2023 में निजी व्यापारियों और पूंजीपतियों ने 70 रुपये प्रति किलों की दर से दाल ख़रीदकर बाज़ार में लगभग 200 रुपये किलो की दर पर बेचा। इससे निजी व्यापारियों को बेशुमार मुनाफ़ा हुआ।
यदि भारतीय खाद्य निगम दालों की 70 रुपये प्रति किलो की दर पर किसानों से ख़रीदी करे और दालों का भंडारण तथा ट्रांस्पोर्ट की लागत लगाकर यह खुदरा बाज़ार में 75-80 रुपये बेचे, तो देश के लोगों को मुनासिब दाम पर दाल उपलब्ध हो सकती है। ऐसा करने से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी दिया जा सकता है। ऐसे ही सभी 23 फ़सलों के लिए एम.एस.पी. दिया जा सकता है।
जो लोग यह कर रहे हैं कि एम.एस.पी. देने से सरकार को नुकसान होगा तो यह सरासर झूठ है। क्योंकि सरकार जिस अनाज की ख़रीद एम.एस.पी. की दरों पर करेगी, उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) की दुकानों के ज़रिये लोगों में बेचा जायेगा। ऐसा करने से सरकार ने जो पैसा अनाज की ख़रीद में लगाया था वह वापस आ जायेगा। सरकार को पी.डी.एस. की नई दुकानों को खोलने के लिये और भंडारण की क्षमता बढ़ाने के लिये ही कुछ रुपये खर्च करने होंगे। यह ख़र्च सिर्फ एक बार ही करना होगा।
सरमायदारों के बुद्धिजीवियों का कहना है कि जब बम्पर फ़सल होगी तो किसानों को इससे नुक़सान होगा। यह तर्क भी बेबुनियाद है। क्योंकि जब किसी अनाज की बम्पर फ़सल होगी, तब भी एम.एस.पी. दिया जा सकता है। सरकार के पास भंडारण की सुविधा है। फूड कारपोरेशन आफ इंडिया किसान से अनाज को ख़रीद कर उसका भंडारण कर सकती है और अगले साल के लिये इस्तेमाल कर सकती है। सरकार किसानों को अगले साल के लिये कोई दूसरी फ़सल बोने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है।
सरकार की नीतियों से जाहिर होता है कि वह किसानों से एम.एस.पी. पर फ़सल नहीं ख़रीदना चाहती, क्योंकि ऐसा करने से टाटा, बिरला, अंबानी, अडाणी, एमेजन, वालमार्ट आदि इजारेदारों का मुनाफ़ा नहीं होगा।
यह लेख सरकार की नीतियों का फर्दाफ़ाश करता है और देश की जनता को जागृत करता है।
बनवारी लाल
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश