हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान, 12 नवंबर, 2023
हम मज़दूर और किसान देश की दौलत को पैदा करते हैं। हम आबादी के 90 प्रतिशत से अधिक हैं। लेकिन एक के बाद एक, सभी सरकारें उदारीकरण और निजीकरण के बैनर तले, पूंजीवादी अरबपतियों की तिजौरियां भरने के लिए क़ानून बनाती रही हैं और नीतियां लागू करती रही हैं।
हिन्दोस्तानी समाज को विनाशकारी रास्ते पर घसीट कर ले जाया जा रहा है। अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई साल दर साल और चौड़ी होती जा रही है। पूंजीवादी लालच को पूरा करने के लिए मज़दूरों और किसानों का शोषण और लूट तेज़ की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकारें पूंजीपतियों को अपनी इच्छानुसार मज़दूरों को काम पर रखने व निकालने तथा उनसे प्रतिदिन 12 घंटे काम कराने के लिए क़ानून बना रही हैं। पूंजीवादी घरानों के प्रधानों का दावा है कि मज़दूरों को हर हफ्ते 70 घंटे मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए, ताकि हिन्दोस्तान का तथाकथित विकास हो सके। वे श्रम शक्ति के एक हिस्से का अत्यधिक शोषण करना चाहते हैं, जबकि दूसरे हिस्से को बेरोज़गार बनाये रखा जा रहा है।
हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीवादी कंपनियां कृषि उत्पादों के व्यापार सहित अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर अपना वर्चस्व बढ़ा रही हैं। करोड़ों किसान कर्ज़े में डूबते जा रहे हैं क्योंकि उनकी उपज के लिए उन्हें मिलने वाली क़ीमतें कृषि की ज़रूरी सामग्रियों की बढ़ती लागत की तुलना में बहुत कम हैं।
बढ़ती बेरोज़गारी, रोज़गार की बढ़ती असुरक्षा, कम वेतन, जीवन जीने के बढ़ते खर्चे, गिरती कृषि आय और बढ़ती कर्ज़दारी – ये सब मज़दूरों और किसानों की स्थिति को असहनीय बना रही हैं।
जो लोग मज़दूरों, किसानों और अन्य उत्पीड़ित लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं, उन्हें राष्ट्र-विरोधी करार दिया जा रहा है और जेल में डाल दिया जा रहा है। यू.ए.पी.ए. जैसे कठोर क़ानूनों का उपयोग करके, उन्हें बिना मुक़दमा चलाए और दोषी साबित किये अनिश्चित काल तक जेल में रखा जाता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के खि़लाफ़ लगातार हो रही लिंचिंग और अन्य प्रकार की हिंसा का इस्तेमाल आतंक फ़ैलाने और सांप्रदायिक विवाद भड़काने के लिए किया जा रहा है।
मज़दूरों और किसानों की यूनियनें एक सांझे मांगपत्र के इर्द-गिर्द एकजुट हो गई हैं। मज़दूर-किसान मोर्चे की मांगों में काम के अधिकार की क़ानूनी गारंटी, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन रुपये 26,000 प्रति माह, चार श्रम संहिताओं का वापस लिया जाना, ठेकेदारी मज़दूरी पर रोक, सर्वव्यापक सामाजिक सुरक्षा और पेंशन के साथ सभी वेतनभोगी मज़दूरों का सार्वभौमिक पंजीकरण, निजीकरण पर तत्काल रोक, 2022 के बिजली (संशोधन) विधेयक का वापस लिया जाना, किसानों के लिए क़र्ज़माफ़ी और उत्पादन की कुल लागत से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (सी-2) पर किसानों की उपज की ख़रीद की गारंटी – ये सारी मांगें शामिल हैं।
इन मांगों पर दबाव बनाने के लिए मज़दूर-किसान मोर्चा बार-बार संयुक्त जन आंदोलन आयोजित करता रहा है। नवंबर 26-28, 2023 को सभी राज्यों की राजधानियों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का एक और दौर आयोजित किया जाएगा।
हालांकि मज़दूर और किसान हिन्दोस्तान की जनसंख्या का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हैं, फिर भी सरकार हमारी मांगों को नज़र-अंदाज़ करती रहती है। देश का एजेंडा तय करने में हमारी कोई भूमिका नहीं है।
हिन्दोस्तान को दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र कहा जाता है लेकिन राजनीतिक व्यवस्था मेहनतकश बहुसंख्या को फै़सले लेने की शक्ति से वंचित करती है। राजनीतिक प्रक्रिया लगभग 150 इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में शोषक अल्पसंख्यक वर्ग की हुकूमत को बरकरार रखने के लिए बनाई गई है।
हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपति चुनावी नतीजों को निर्धारित करने के लिए अपने धनबल और समाचार व सोशल मीडिया पर अपने नियंत्रण का उपयोग करते हैं। इजारेदार पूंजीपति उस पार्टी की जीत को आयोजित करते हैं जो पूंजीपति वर्ग की अमीरी को बढ़ाने के कार्यक्रम को लागू करेगी और साथ ही साथ, लोगों को सबसे बेहतर तरीके़ से बुद्धू बनायेगी। 2004 में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा की जगह ले ली थी और 2014 में भाजपा ने कांग्रेस पार्टी की जगह ले ली थी, लेकिन उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये वैश्वीकरण का कार्यक्रम अनवरत चलता रहा है।
हम मज़दूरों और किसानों को हिन्दोस्तान का भविष्य अपने हाथों में लेने के लिए तैयार होना होगा। हमारे मांगपत्र में राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया को बदलने के क़दम शामिल होने चाहिएं। हमें ऐसे बदलावों के लिए संघर्ष करना होगा जो फै़सले लेने की शक्ति हमारे हाथों में लाने का काम करेंगे।
वर्तमान व्यवस्था में, जो पार्टी बहुमत सीटें जीतती है, उसे सरकार बनाने का मौका मिलता है और वह अपनी इच्छानुसार नीतिगत फ़ैसले ले सकती है। वह केवल उसके चुनाव अभियान के लिए धन देने वाले पूंजीपतियों के प्रति जवाबदेह है। वह संसद के प्रति जवाबदेह नहीं है। संसद सदस्य अपनी पार्टी के आला कमान के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि उन्हें चुनने वाले मतदाताओं के प्रति। इस स्थिति को बदलना होगा।
संविधान को लोगों के हाथों में संप्रभुता देनी चाहिए। कार्यकारी शक्ति रखने वाले मंत्रियों को निर्वाचित विधायी निकाय के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। हम मज़दूरों और किसानों को निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने और अगर वे हमारे हितों के लिए काम नहीं करते हैं तो उन्हें किसी भी समय वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। हमें क़ानूनों और नीतियों को प्रस्तावित करने या अस्वीकार करने का अधिकार होना चाहिए। चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन में हमारी भी भागीदारी होनी चाहिए।
जब तक अति-अमीर पूंजीपतियों को अपनी विश्वसनीय पार्टियों के चुनाव अभियानों के लिए धन देने की इजाज़त दी जाती है, तब तक मज़दूरों और किसानों के उम्मीदवारों के लिए निर्वाचित होना बेहद मुश्किल होगा। न केवल चुनावी बांड के तंत्र को बल्कि चुनाव अभियानों के सभी प्रकार के कार्पोरेट फंडिंग को समाप्त करना आवश्यक है। राज्य को उम्मीदवारों के चयन और चयनित उम्मीदवारों के चुनाव अभियान की पूरी प्रक्रिया के लिए धन देना चाहिए।
हमें यू.ए.पी.ए. जैसे कठोर क़ानूनों – जो सरकार की आलोचना करने वाले किसी भी व्यक्ति की गिरफ़्तारी और अनिश्चित काल तक कारावास की इजाज़त देते हैं – को रद्द करने की मांग करनी चाहिए और इसके लिए संघर्ष करना चाहिए। हमें मांग करनी चाहिए कि जब लोगों के किसी भी हिस्से पर उनके धर्म या जाति के आधार पर हमला किया जाता है, तो सत्ता पर बैठे ज़िम्मेदार अधिकारियों को सज़ा दी जाए। हमें सभी लोकतांत्रिक और मानव अधिकारों के लिए संविधानीय गारंटी की मांग करनी चाहिए।
हुक्मरान सरमायदार वर्ग हमेशा चुनावी मुक़ाबलों का इस्तेमाल करके हमारी एकता को तोड़ने और हमारी लड़ने की क्षमता को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। हमें सरमायदारों की विभाजनकारी कार्यनीति से बचकर, अपनी एकता की हिफ़ाज़त करनी होगी और उसे ज्यादा मजबूत करना होगा।
मज़दूरों और किसानों को देश का हुक्मरान बनना होगा और अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा दिलानी होगी ताकि सबके लिए सुरक्षित रोज़गार और खुशहाली सुनिश्चित की जा सके। हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि, बिना किसी अपवाद के, समाज के सभी सदस्यों के लोकतांत्रिक अधिकारों और मानव अधिकारों की सुरक्षा की जाये।
उदारीकरण और निजीकरण की राजनीति को हराएं!
सबको रोज़गार की सुरक्षा के लिए संघर्ष को आगे बढाएं!
सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट हों!
लोकतांत्रिक और मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए एकजुट हों!
मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएं!