लेनिन के निधन की 100वीं बरसी पर:
लेनिन की शिक्षाएं एक अनिवार्य मार्गदर्शक हैं

वी आई लेनिन एक उत्कृष्ट क्रांतिकारी और 20वीं सदी के महानतम माक्र्सवादी सिद्धांतकार थे। सोवियत रूस में समाजवादी क्रांति के प्रारंभिक चरण के दौरान, 21 जनवरी, 1924 को उनका निधन हो गया था। उनकी मृत्यु एक हत्यारे की गोली के कारण हुई थी, जो बीते छह साल से उनकी गर्दन में फंसी हुई थी।

लेनिन बोल्शेविक पार्टी के प्रमुख निर्माता थे। बोल्शेविक पार्टी ने दुनिया के प्रथम समाजवादी राज्य, सोवियत संघ की स्थापना के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया था। सोवियत संघ में समाजवाद के निर्माण ने सभी देशों के मज़दूरों और किसानों को दिखाया था कि ऐसे समाज में रहना संभव है जहां कोई पूंजीपति, जमींदार या कोई अन्य शोषक वर्ग न हो।

लेनिन ने इस माक्र्सवादी सिद्धांत की हिफ़ाज़त की थी कि राज्य एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग पर शासन करने का उपकरण है। लेनिन ने उन लोगों की मौकापरस्ती का पर्दाफ़ाश किया जो इस विचार की वकालत करते थे कि राज्य पूंजीपति वर्ग और श्रमजीवी वर्ग के बीच के अंतर्विरोध को सुलझाने का एक साधन हो सकता है। उन्होंने समझाया कि पूंजीवादी लोकतांत्रिक गणराज्य पूंजीवाद और पूंजीपति वर्ग के शासन के लिए सबसे बढ़िया राजनीतिक कवच है। उन्होंने माक्र्स के इस निष्कर्ष की हिफ़ाज़त की, कि मज़दूर वर्ग के लिए ख़ुद को शोषण से मुक्त करने का एकमात्र तरीक़ा पूंजीपति वर्ग के शासन को उखाड़ फेंकना और अपना शासन स्थापित करना है; और मज़दूर वर्ग इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूंजीवादी राज्य का उपयोग नहीं कर सकता है। मज़दूर वर्ग को पूंजीवादी अधिनायकत्व की जगह पर श्रमजीवी अधिनायकत्व की एक नई हुकूमत स्थापित करनी होगी, एक ऐसा राज्य स्थापित करना होगा जो सभी मेहनतकश लोगों के अधिकारों की रक्षा करेगा और सत्ता से हटाये गए शोषक वर्गों द्वारा समाजवाद के निर्माण में उनके प्रतिरोध को कुचल देगा।

माक्र्स और एंगेल्स ने उस युग में जीवन बिताया तथा काम किया था, जब पूंजीपति वर्ग वस्तुतः समाज में एक प्रगतिशील शक्ति थी। लेनिन का जीवन और काम उस समय में था जब पूंजीवाद का साम्राज्यवाद में विकास हो चुका था, एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था जिसमें सभी क्षेत्रों में इजारेदारी का प्रभुत्व था। लेनिन ने इस सिद्धांत को विस्तार से समझाया कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है, एक ऐसा चरण जब पूंजीपति वर्ग पूरी तरह से एक प्रतिक्रियावादी और परजीवी वर्ग बन गया है। लेनिन ने यह निष्कर्ष निकाला कि साम्राज्यवाद के युग में, श्रमजीवी क्रांति सिर्फ़ कोई भविष्य की संभावना नहीं है, बल्कि समाधान के लिए उठाया जाने वाला एक कार्यभार है।

इस विश्लेषण के आधार पर, कि यह साम्राज्यवाद और श्रमजीवी क्रांति का युग है, लेनिन ने यह निष्कर्ष निकाला कि श्रमजीवी क्रांति की समस्या के समाधान के लिए मज़दूर वर्ग को एक नए प्रकार की पार्टी की ज़रूरत है। यह उस समय यूरोप के अधिकांश देशों में मौजूद संसदीय पार्टियों की तरह संसदीय पार्टी नहीं हो सकती थी। यह लोकतांत्रिक केंद्रीयवाद के संगठनात्मक सिद्धांत पर आधारित, पेशेवर क्रांतिकारियों की पार्टी होनी चाहिए। यह एक ऐसी पार्टी होनी चाहिए जो श्रमजीवी वर्ग को सत्ता हासिल करने और शासक वर्ग बनने के लिए आवश्यक चेतना और संगठन प्रदान करेगी।

लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने अन्य सभी मेहनतकश लोगों के साथ गठबंधन में श्रमजीवी वर्ग के शासन के एक उपकरण बतौर, सोवियत राज्य को स्थापित करने और मजबूत करने के संघर्ष का नेतृत्व किया। ज़ार की सेना को भंग कर दिया गया और उसकी जगह पर लाल सेना गठित की गयी। विशेषाधिकार प्राप्त नौकरशाही का स्थान सोवियतों के नियंत्रण में प्रशासकों, लेखाकारों और तकनीशियनों ने ले लिया। सोवियत राज्य ने उत्पादन के साधनों को पूंजीपतियों और जमींदारों की निजी संपत्ति से बदल कर, उन्हें लोगों की सामाजिक और सामूहिक संपत्ति बना दिया।

1924 में लेनिन के निधन के बाद, बोल्शेविक पार्टी ने 1917 की अक्तूबर क्रांति, सोवियत राज्य और समाजवाद के निर्माण के अनुभव की समीक्षा की थी। कॉमरेड स्टालिन के शब्दों में, “लेनिनवाद साम्राज्यवाद और श्रमजीवी क्रांति के युग का माक्र्सवाद है। अधिक सटीक रूप से कहें तो, लेनिनवाद आम तौर पर श्रमजीवी क्रांति का सिद्धांत और कार्यनीति है, विशेष रूप से श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व का सिद्धांत और कार्यनीति है।”

लेनिन की मृत्यु के बाद, स्टालिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने समाजवाद के पूर्ण निर्माण के लिए अपने मार्गदर्शक के रूप में, लेनिनवाद का उपयोग करना जारी रखा। 1930 के दशक के मध्य तक, कृषि का सामूहिकीकरण पूरा हो गया था। सामाजिक उत्पादन के साधनों में निजी संपत्ति को समाप्त कर दिया गया। 1936 में एक नया संविधान अपनाया गया, जिसने राजनीतिक प्रक्रिया में मेहनतकश जनता की भूमिका को बढ़ाकर, श्रमजीवी लोकतंत्र को और मजबूत करने का रास्ता तैयार किया।

सोवियत संघ का पतन और विघटन लेनिनवाद के उल्लंघन के कारण ही हुआ, जिसकी शुरुआत 1956 में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.एस.यू.) की 20वीं कांग्रेस से हुई थी।

ख्रुश्चेव की अध्यक्षता में सी.पी.एस.यू., श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व को मजबूत करने और समाजवाद के अंदरूनी व बाहरी दुश्मनों के खि़लाफ़ वर्ग संघर्ष करने के असूल से भटक गई। उसने दावा किया कि सोवियत संघ “संपूर्ण लोगों का राज्य” बन गया था, और सी.पी.एस.यू. “संपूर्ण लोगों की पार्टी” थी। यह दावा किया गया कि साम्राज्यवाद के साथ शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा के ज़रिये, समाजवाद दुनिया पर जीत हासिल करेगा।

सी.पी.एस.यू. पार्टी संगठन के लेनिनवादी असूलों से भी भटक गई। उसने लोकतांत्रिक केंद्रीयवाद को एक खोखले वाक्यांश में बदल दिया, जबकि अभ्यास में उसकी जगह पर अफ़सरशाही केन्द्रीयवाद को लागू कर दिया। फै़सले लेने की सारी शक्ति पार्टी के पोलित ब्यूरो के हाथों में केंद्रित हो गई। पार्टी के अधिकांश सदस्यों को फै़सले लेने की शक्ति से वंचित किया गया।

सी.पी.एस.यू. के नेताओं ने माक्र्सवाद-लेनिनवाद को और अधिक विकसित करने का दिखावा किया, जबकि वास्तव में उन्होंने एक नए सरमायदार वर्ग के उभरने और सोवियत संघ में पूंजीवाद की पुनः स्थापना की हालतें तैयार कीं। जबकि उन्होंने एक समाजवादी देश का नेतृत्व करने का बाहरी दिखावा बनाए रखा, तो अन्दर पूंजीवाद के क़ानून संचालित हुए, जिससे बेरोज़गारी, ग़रीबी और पूंजीवादी व्यवस्था की बाकी सभी बुराइयां फिर से प्रकट हुईं।

जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो पूंजीवादी विचारकों ने दावा किया था कि विश्व पूंजीवाद एक नए चरण, एक शांतिपूर्ण चरण पर पहुंच गया था। परन्तु, बीते तीन दशकों में निरंतर युद्धों, सशस्त्र क़ब्जे़ और तीव्र अंतर-साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा का युग रहा है। जीवन के अनुभव ने लेनिन के इस निष्कर्ष की वैधता की पुष्टि की है कि साम्राज्यवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंककर और एक के बाद दूसरे देश में समाजवाद का निर्माण करके ही स्थायी शांति हासिल की जा सकती है।

लेनिन के देहांत की 100वीं बरसी ऐसे समय में आ रही है जब पूंजीवाद का अमानवीय चेहरा सबके सामने खुल कर आ गया है। यह ऐसे समय में आ रही है जब क्रांति का प्रवाह ज्वार से भाटे में बदल गया है। यह साम्राज्यवाद और श्रमजीवी क्रांति के युग के अंतर्गत एक नया युग है। नई बात यह है कि विश्व स्तर पर क्रांति पीछे हट रही है। कम्युनिस्टों को इस अवधि के लिए उपयुक्त क्रांतिकारी सिद्धांत और कार्यनीति विकसित करनी होगी।

हमें लेनिन की इस शिक्षा से मार्गदर्शित होना चाहिए कि माक्र्सवाद एक विज्ञान है न कि कोई हठधर्मिता। माक्र्सवाद क्रांतिकारी वर्ग संघर्ष के अभ्यास के साथ घनिष्ठ संबंध के ज़रिये विकसित होता है। पूंजीवाद के साम्राज्यवाद के स्तर तक विकास में पैदा होने वाली समस्याओं से निपटने के दौरान लेनिन ने माक्र्सवाद का विकास किया था। उन्होंने खुद को माक्र्सवाद के मौलिक निष्कर्षों और असूलों पर आधारित करके ऐसा किया था। इसके विपरीत, ख्रुश्चेव ने माक्र्सवाद-लेनिनवाद को विकसित करने का दिखावा किया, जबकि वास्तव में उन्होंने इसके मौलिक निष्कर्षों और असूलों का उल्लंघन किया था।

विश्व स्तर पर, वर्तमान स्थिति कम्युनिस्टों को माक्र्सवाद-लेनिनवाद के मौलिक निष्कर्षों और असूलों पर आधारित होकर, श्रमजीवी क्रांति के सिद्धांत और कार्यनीति को विकसित करने के लिए आह्वान कर रही है।

लगातार बढ़ती बेरोज़गारी, आर्थिक कठिनाई, राजनीतिक दमन और नाजायज़ युद्ध लेनिन के इस निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं कि पूंजीपति वर्ग अब शासन करने के क़ाबिल नहीं है। इस दुख-दर्द को समाप्त करने और मानव जाति को इससे मुक्त करने का एकमात्र तरीक़ा है पूंजीवादी लोकतंत्र की जगह पर श्रमजीवी लोकतंत्र स्थापित करने की तैयारी करना, यानी कि निर्णय लेने की शक्ति मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों के हाथों में लाना, ताकि पूंजीवाद से समाजवाद तक परिवर्तन पूरा किया जा सके।

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