सरकार मज़दूरों को इज़रायल भेजना तुरंत बंद करे

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17 जनवरी 2024 को नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार रोहतक की एमडीयू की आधिकारिक ब्रीफिंग की प्रतीक्षा कर रहे हैं

इज़रायल में नौकरियों के लिए हज़ारों हिन्दोस्तानी मज़दूरों की भर्ती की जा रही है। इज़रायल एक ऐसा देश है जहां एक जानलेवा युद्ध चल रहा है। नौकरी में भर्ती के लिए 16 जनवरी को रोहतक में भर्ती-अभियान शुरू किया गया था। इससे पहले दिसंबर 2023 में हरियाणा और उत्तर प्रदेश, दोनों सरकारों ने इच्छुक उम्मीदवारों को इंटरव्यू और नौकरी-स्क्रीनिंग के लिए आने की अधिसूचना जारी की थी।

हरियाणा सरकार के विज्ञापनों में, विशेष रूप से इज़रायल में काम करने के लिये, सिरेमिक टाइल लगाने वाले और मिस्त्री सहित बढ़ई, लोहा-मोड़ने वालों के 10,000 पदों पर भर्ती के लिए इच्छुक उम्मीदवारों को बुलाया गया था।

यह भर्ती अभियान ऐसे में समय में चलाया जा रहा है, जब इज़रायल फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ एक क़ातिलाना युद्ध में लगा हुआ है। 100 दिन से ज़्यादा दिनों चल रहे इस युद्ध में अब तक कम से कम 25,000 फ़िलिस्तीनी लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं।

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मज़दूर ट्रेड यूनियन फिलिस्तीनी मज़दूरों के साथ खड़े हैं (फाइल फोटो)

इज़रायल के कारखानों, निर्माण-स्थलों और अस्पतालों में काम करने वाले फ़िलिस्तीनी मज़दूरों की जगह पर हिन्दोस्तान तथा अन्य देशों के लोगों को नौकरी पर रखने की दीर्घकालिक नीति अपना रहा है।

9 मई, 2023 को इज़रायल की सरकार ने हिन्दोस्तान की सरकार के साथ इसी नीति के तहत, एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे हिन्दोस्तान के 42,000 मज़दूरों को इज़रायल में काम करने की अनुमति मिलेगी, जिनमें से 34,000 निर्माण क्षेत्र से जुड़े कामों में और नर्सिंग क्षेत्र में काम करेंगे।

अक्तूबर में छिड़े युद्ध के कारण इस समझौते का कार्यान्वयन अस्थायी रूप से रुक गया था। नवंबर 2023 में हिन्दोस्तान की सरकार के कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने कथित तौर पर, इज़रायल में निर्माण और नर्सिंग क्षेत्र के लिये अस्थायी अनुबंध पर नौकरी करने वाले हिन्दोस्तानी मज़दूरों की आपूर्ति करने के लिए तीन साल का समझौता किया है। राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले विज्ञापनों को इस समझौते की रोशनी में देखा जाना चाहिए।

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जिन मज़दूरों की भर्ती की जा रही है, उन्हें उनके अनुबंध और संभावित रोज़गार के स्थान या इस भर्ती का आयोजन करने वाले भारतीय प्राधिकरण के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कोई भी आधिकारिक सरकारी प्राधिकरण हमारे मज़दूरों को युद्धग्रस्त देश में भेजने की ज़िम्मेदारी नहीं ले रहा है। इसके विपरीत, विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने औपचारिक रूप से खुद को इस प्रक्रिया से अलग कर लिया है। बताया जाता है कि राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद (एन.एस.डी.सी.) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने कहा, “एन.एस.डी.सी. कोई भर्ती करने वाली कंपनी नहीं है। कुछ राज्य सरकारों ने इज़रायल में नौकरियों के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं और हमारा काम मज़दूरों को कौशल के लिये प्रशिक्षण प्रदान करना है।“ एन.एस.डी.सी. इस कौशल के प्रशिक्षण के लिए प्रति कर्मचारी 10,000 रुपये का शुल्क ले रहा है।

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। हरियाणा के श्रममंत्री ने भर्ती के लिए मज़दूरों को भेजे जाने के बारे में सभी ज़िम्मेदारी से इनकार करते हुए कहा कि यह केंद्रीय विदेश मंत्रालय है जो मज़दूरों के इस तरह के प्रवासन की निगरानी करता है। विदेश मंत्रालय ने एक अख़बार द्वारा भेजे गए सवालों की विस्तृत सूची का जवाब देने से इनकार कर दिया, जिसमें पूछा गया था कि इज़रायल की श्रम एजेंसी से किस तरह के आश्वासन का अनुरोध किया जा रहा है। विदेश मंत्रालय द्वारा यह स्पष्ट करने के लिए कोई बयान नहीं दिया गया है कि इन मज़दूरों की सुरक्षा के लिए कौन ज़िम्मेदार होगा।

हिन्दोस्तानी मज़दूरों की आजीविका की अत्यधिक असुरक्षा का इस्तेमाल करके, उन्हें विदेशों में अत्यधिक जोखि़म भरे और अनिश्चित रोज़गार में फंसाने के लिए किया जा रहा है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि कोई भी अधिकारी – केंद्र में विदेश मंत्रालय या राज्य सरकारों की एजेंसियां – अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार करने और हमारे मज़दूरों की सुरक्षा के लिए जवाबदेह होने को तैयार नहीं हैं। कई मज़दूर यूनियनों ने अधिकारियों की इस उदासीनता की निंदा की है और मांग की है कि इस तरह मज़दूरों की भर्ती को रोका जाए।

यह कभी भी माफ़ नहीं किये जाने वाला एक अपराध है कि हिन्दोस्तानी राज्य इज़रायल में हिन्दोस्तानी मज़दूरों को एक ऐसे समय में भेजने पर सहमत हुआ है जब इज़रायल, हमारे भाई, फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ अकल्पनीय अपराध कर रहा है। हिन्दोस्तानी राज्य को इसे तुरंत रोकना चाहिए।

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