संपादक महोदय,
दिल्ली के श्रमिक संगठनों द्वारा उन बहादुर रैट माइनरों को सम्मानित करने की रिपोर्ट पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई। इन मज़दूरों ने अपनी जान को जोखि़म में डालकर अपने साथी श्रमिकों को बचाया।
गौरतलब है कि देश में रैट खनन पर प्रतिबंध है। 2014 में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि रैट खनन अवैध है क्योंकि इस पद्धति के द्वारा खनन से मज़दूर घातक दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं और यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है। ट्रिब्यूनल के इस फ़ैसले के बावजूद, भारतीय पूंजीपति अपने मुनाफ़ों को अधिकतम करने के लिए बड़ी बेरहमी से श्रमिकों को ऐसे जानलेवा जोखि़मों में डालना जारी रखते हैं। इससे पता चलता है कि सरकार के प्रावधान और सुरक्षा नियम दिखावे के हैं।
ऐसी भयानक स्थितियों को देखते हुए, यह चौंकाने वाली बात है कि नए श्रम कोड में फैक्ट्री इंस्पेक्टरों को हटाने का सुझाव दिया गया है और पूंजीपतियों के ”स्व-प्रमाणन“ को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि वे सुरक्षा नियमों का पालन कर रहे हैं! अधिकतम मुनाफ़ा सुनिश्चित करने के लिए सरकार पूंजीपतियों को खुले तौर पर श्रमिकों को किसी भी जोखि़म में डालने की अनुमति दे रही है, यहां तक कि मज़दूरों की बलि चढ़ा कर भी।
इन रैट माइनर श्रमिकों के बहादुर और निस्वार्थ प्रयास, मज़दूर वर्ग के अपने भाइयों के प्रति ईमानदारी को दर्शाते हैं जो जिंदा दफन होने के भयानक जोखि़म का सामना कर रहे थे।
मुझे सीमा सड़क संगठन की बहादुर महिला कार्यकर्ताओं की भी याद आती है जिन्होंने भयानक मौसम की स्थिति का सामना किए बिना दिन-रात काम करके फंसे हुए श्रमिकों को बचाने के लिए पहाड़ी स्थान तक आवश्यक सड़क बनाई।
इस तरह के जोखिमों को ख़त्म करने और काम की उचित परिस्थितियों और जीवन स्तर को सुनिश्चित करने के लिए, हम मज़दूरों को इस देश का शासक बनना होगा। यह पूंजीपतियों की मुनाफ़े की स्वार्थ है जो श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन की प्रेरक शक्ति है।
आपका,
बशीर, तमिलनाडु