संपादक महोदय,
नाटो शिखर सम्मेलन पर आपके लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि अमरीकी साम्राज्यवाद का नाटो के विस्तार का क्या मक़सद था और है। यह झूठा प्रचार फैलाया जाता रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ से हमले के ख़तरे का मुक़ाबला करने के लिए एक नाटो सैन्य गठबंधन बनाया गया। सच्चाई यह है कि 50 के दशक में रूस, यानी कि तब का सोवियत संघ, कम्युनिज़्म का विचार उच्चतम स्तर पर था। अमरीकी साम्राज्यवाद को पूरा यकीन हो चुका था, कि अगर इसे न रोका गया तो दुनियाभर के देश समाजवाद की ओर तेज़ी से बढ़ते जायेंगे। कुल मिलाकर नाटो की स्थापना दुनिया में कम्युनिज़्म की विचारधारा को रोकने के लिए की गयी थी।
एक तरफ संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा बनाये रखने की बात करता है; राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध को बढ़ावा देना चाहता है। दूसरी ओर नाटो की तरफ से यह बयान है कि यूक्रेन का भविष्य नाटो में है, जिससे यूक्रेन के साथ रूस को जंग जारी रखने को बढ़ावा मिलता है।
लेख में जो आंकड़े प्रस्तुत किये गये हैं कि कौन सा देश सैन्य सुरक्षा के नाम पर यूक्रेन को कितने हथियार उपलब्ध कराएगा, यह साफ दर्शाता है कि अमरीकी साम्राज्यवाद सिर्फ अपना उद्देश्य पूरा करना चाहता है। नाटो में जो सदस्य शामिल हैं उनमें से लगभग 50 प्रतिशत देशों की जनसंख्या एक करोड़ से कम है। इन देशों पर नाटो समझौते के नाम पर अमरीका अपनी साम्राज्यवादी ताक़त का इस्तेमाल करता है। यह अनुमान लगाना कि दुनिया को एक और विश्व युद्ध की ओर ले जाया जा रहा है, यह सही साबित हो सकता है।
अब दुनिया के लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि नाटो अमरीका के नेतृत्व वाला एक सैन्य गठबंधन है जिसमें सिर्फ अमरीका की दादागिरी चलती है। मैं मज़दूर एकता लहर का धन्यवाद करता हूं कि लेखों को तथ्यों और आकड़ों के साथ प्रस्तुत करके महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला जाता है।
आपका पाठक,
पंडित, दिल्ली