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सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी हो

संपादक महोदय, किसानों और मज़दूरों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देना सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी के लिए किसानों ने लम्बा संघर्ष किया है। कृषि उत्पादों को एम.एस.पी. पर ख़रीदने के लिये बनाये गये तंत्रों को सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाना होगा। केवल 23 फ़सलों पर ही

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न्यूनतम समर्थन मूल्य देना संभव है

संपादक महोदय, मैंने मज़दूर एकता लहर में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर छपे पार्टी के लेख को पढ़ा। लेख बहुत ही अच्छा लगा। मैं इस पर कहना चाहता हूं कि पूंजीपतियों के शुभचिंतकों का कहना है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जा सकता है। उनका मानना है कि अगर ऐसा किया गया तो सरकार को 10 लाख करोड़

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फ़सलों के लिये एम.एस.पी. की मांग

संपादक महोदय, मज़दूर एकता लहर के अंक मार्च 16-31 में छपा लेख – कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी आवश्यक है – को पढ़ने के बाद एक बात समझ में आयी कि दो साल पहले किसानों ने सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन क्यों चलाया था, जिसमें अपनी फ़सलों के लिये एम.एस.पी. की मांग की थी और तीन कृषि

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यह गणतंत्र बुर्जुआ शासन का एक उपकरण है

प्रिय संपादक, मुझे इस वर्ष 23 जनवरी को सीजीपीआई द्वारा जारी किया गया बयान बहुत पसंद आया, जिसका शीर्षक था, ”यह गणतंत्र बुर्जुआ शासन का एक साधन है।“ इसमें बहुत तीखेपन से बताया गया है कि ”पिछले 74 वर्षों के जीवन के अनुभव से पता चलता है कि भारतीय गणराज्य सभी पहलुओं में संविधान की घोषणाओं के बिल्कुल विपरीत है“।

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बहादुर रैट माइनरों को सम्मान

संपादक महोदय,

दिल्ली के श्रमिक संगठनों द्वारा उन बहादुर रैट माइनरों को सम्मानित करने की रिपोर्ट पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई। इन मज़दूरों ने अपनी जान को जोखि़म में डालकर अपने साथी श्रमिकों को बचाया।

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पार्टी की स्थापना की 43वीं वर्षगांठ

प्रिय संपादक महोदय,

पार्टी की 43वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिए गए लेख के बारे में, मैं अपने विचार प्रकट करना चाहती हूं। हर साल की तरह इस साल भी पार्टी के लेख के द्वारा अलग-अलग पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

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पार्टी की स्थापना की 43वीं वर्षगांठ

संपादक महोदय,

पार्टी के सभी साथियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। पार्टी की स्थापना की 43वीं वर्षगांठ के भाषण को पढ़कर शरीर की ऊर्जा में और वृद्धि हो जाती है, इस बात की उम्मीद और बढ़ जाती है कि वह दिन अब दूर नहीं जब समाज में फै़सले लेने की ताक़त मज़दूर वर्ग और सभी मेहनतकष लोगों के हाथों में होगी।

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बीमा – ‘डर’ का व्यापार

संपादक महोदय, मज़दूर एकता लहर के अंक सितंबर 1-15, 2023 में प्रकाशित लेख ‘फ़सल बीमा के ज़रिए किसानों की पूंजीवादी लूट’ को पढ़ा। यह लेख काफ़ी जानकारी भरा है। यह केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा फ़सल बीमा के ज़रिए पूंजीपतियों द्वारा किसानों की लूट की सच्चाई को सामने लाता है। जब मैं इस लेख को पढ़ रहा था, तब यह

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आज़ादी अधूरी है!

प्रिय संपादक,

मज़दूर एकता लहर में प्रकाशित लेख “शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति के बिना आज़ादी अधूरी है“ से स्पष्ट होता है कि आज़ादी के बाद बहुत कम बदलाव आया है। हम, मज़दूर वर्ग और हमारे सहयोगी – लिंग, धर्म और जाति के आधार पर शोषण और उत्पीड़न का शिकार होते रहते हैं। संपूर्ण राज्य मशीनरी वैसी ही बनी हुई है।

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लोगों को हमारे असली दुश्मनों के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने के लिए लामबंध करें

संपादक महोदय, मज़दूर एकता लहर में आज़ादी की 76वीं वर्षगांठ पर प्रकाशित लेख ‘शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति के बिना आज़ादी अधूरी हैं’ को मैंने पढ़ा। लेख को पढ़ने के बाद मेरे मन में पहला सवाल आता है कि क्या, हमें सच में आज़ादी मिली हैं? तो इसका जवाब है कि ‘नहीं’। हम आज भी गुलामी की ज़िन्दगी जी

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