प्रिय संपादक,
मज़दूर एकता लहर में प्रकाशित लेख “शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति के बिना आज़ादी अधूरी है“ से स्पष्ट होता है कि आज़ादी के बाद बहुत कम बदलाव आया है। हम, मज़दूर वर्ग और हमारे सहयोगी – लिंग, धर्म और जाति के आधार पर शोषण और उत्पीड़न का शिकार होते रहते हैं। संपूर्ण राज्य मशीनरी वैसी ही बनी हुई है। ब्रिटिश शासक वर्ग की सेवा के लिए विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, पुलिस और सशस्त्र बलों को तैनात किया गया था; आज, राज्य के ये भाग हिन्दोस्तानी शासक वर्ग की सेवा करते हैं। संविधान राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक क़ानूनों को लागू करना जारी रखता है। यदि जनता अभी भी पीड़ा झेल रही है तो हम किसकी आज़ादी का जश्न मना रहे हैं?
वर्तमान व्यवस्था से पूर्णतः मुक्ति और हिन्दोस्तान के नव-निर्माण के लिए मज़दूर एकता लहर का आह्वान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जब हम निजी संपत्ति की रक्षा में राज्य की अपरिवर्तनीय भूमिका को समझते हैं, तो हमें एहसास होता है कि सत्ता में पार्टी बदलने से हमारी जीवन की परिस्थितियों में सुधार नहीं होगा। हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे प्रणालीगत हैं – मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी, सांप्रदायिक हिंसा, महिला उत्पीड़न, बाढ़ और सूखा। ये सभी समस्याएं पूंजीवाद में निहित हैं; वे तब उत्पन्न होती हैं जब उत्पादन लोगों की ज़रूरतों की ओर उन्मुख नहीं होता है। पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने पर ही हम वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं।
आज, जीवन की बदतर परिस्थितियों में भी, लाखों लोग हम पर थोपे गए सभी विभाजनों को पार करते हुए, मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी और जन-विरोधी नीतियों का विरोध करने के लिए एकजुट हो रहे हैं। कर्मचारी सक्रिय रूप से निजीकरण के खि़लाफ़, रिक्तियों और पेंशन सहित अन्य मुद्दों पर संघर्ष कर रहे हैं।
जब हम अपनी तात्कालिक मांगों के लिए लड़ते हैं, तो हम अपने रणनीतिक लक्ष्य – मज़दूर वर्ग की सत्ता स्थापित करना – को नहीं भूल सकते। केवल मज़दूर वर्ग की सत्ता ही सभी प्रकार के शोषण से मुक्ति सुनिश्चित करेगी और हमें सच्ची आज़ादी देगी! हम क्या चाहते हैं? हम एक सभ्य जीवन चाहते हैं जिसमें हमें अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष न करना पड़े। हम एक ऐसा समाज चाहते हैं जिसमें लोग न केवल जीवित रहें बल्कि फलें-फूलें भी! इससे कम पर क्यों समझौता करें?
मज़दूरों, छात्रों, युवाओं और जागरुक नागरिकों के रूप में यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम राजनीतिक सत्ता पर क़ब्ज़ा करने और मज़दूर वर्ग का शासन स्थापित करने की दिशा में काम करें।
अपराजिता, मुंबई