15 अगस्त को इंग्लैंड के लंदन में हजारों की संख्या से भी ज्यादा लोगों ने लड़ाकू रैली में हिस्सा लिया। हिन्दोस्तान में किसान आंदोलन के लिए इंग्लैंड में हिन्दोस्तानी मज़दूरों और छात्रों के समर्थन को व्यक्त करने के लिए इस विरोध रैली का आयोजन किया गया था। विरोध रैली में भाग लेने वाले कई संगठनों में इंडियन वर्कस एसोसिएशन (जी.बी.) भी शामिल था। प्रदर्शनकारी, लंदन में हिन्दोस्तानी उच्च आयोग के बाहर इकट्ठा हो हुए। भागीदारी इतनी ज्यादा थी कि आस-पास की सभी सड़कें भी प्रदर्शनकारियों से भरी हुई थीं।
प्रदर्शनकारियों ने तीन किसान-विरोधी कानूनों को रद्द न करने के लिए हिन्दोस्तानी सरकार की निंदा की। विभिन्न संगठनों के वक्ताओं ने बताया कि हिन्दोस्तान की आज़ादी केवल एक छोटे से तबके को लाभ पहुंचा रही है जबकि बहुसंख्य आबादी घोर ग़रीबी की मार झेल रही है। हिन्दोस्तानी सरकार टाटा, बिरला, अडानी जैसे अन्य बड़े पूंजीपतियों कि हितों का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने मांग की कि तीन किसान-विरोधी काले कानूनों के साथ-साथ चार मज़दूर विरोधी-कानूनों को रद्द किया जाए। उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन के दौरान हिन्दोस्तानी सरकार की कार्यवाही स्पष्ट रूप से यह दिखाती है कि हिन्दोस्तान में कोई लोकतंत्र नहीं है और यहां लोगों की मांगों को अनदेखा किया जाता है।
लंदन में हिन्दोस्तानी उच्च आयोग कि बाहर हुए प्रदर्शन में इंडियन वर्कस एसोसिएशन (जी.बी.) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूरे ब्रिटेन में विभिन्न शाखाओं से आये कार्यकर्ताओं ने जोशीले नारे लगाए और हिन्दोस्तानी सरकार की निंदा करते हुए भाषण दिए। उन्होंने बताया कि हिन्दोस्तानी राज्य लगभग 150 इजारेदार पूंजवादी घरानों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है जो विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही है। किसान-विरोधी और मज़दूर-विरोधी कानूनों का एकमात्र उद्देश्य हिन्दोस्तान के मज़दूरों और किसानों की क़ीमत पर हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों को समृद्ध बनाना है। हिन्दोस्तान की आज़ादी ब्रिटिश उपनिवेशवाद से उनके सहयोगियों को सत्ता का हस्तांतरण मात्र थी जो अब हिन्दोस्तान के नए स्वामी हैं। इन काले कानूनों का उद्देष्य हमारे देश के श्रम और संसाधनों का शोषण और तेज़ करना है।
वक्ताओं ने इस बात पर बहुत गर्व व्यक्त किया कि किसान आंदोलन ने पूरे हिन्दोस्तान में किसानों, मेहनतकश लोगों, युवाओं और महिलाओं के सभी वर्गों को एकजुट किया है। लोग जाति और धर्म से ऊपर उठकर एकजुट हुए हैं। पिछले नौ महीने के दौरान बहुत लोगों ने बलिदान दिए और चल रहे संघर्ष के दौरान कई लोगों की मृत्यु हुई है। किसान आंदोलन ने पूरे विश्व में लोगों को प्रभावित किया है और इस भ्रम का पर्दाफाश किया है कि हिन्दोस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हिन्दोस्तान में लड़ रहे किसानों ने पूरी दुनिया में न्याय पसंद लोगों का समर्थन हासिल किया है। हिन्दोस्तानी सरकार इस संघर्ष से हिल गई है और तीन किसान-विरोधी कानूनों और मज़दूर-विरोधी कानूनों को रद्द करने के लिए लड़ रहे बहादुर जनसमूह को तोड़ने और उन्हें बाटंने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
आई.डब्ल्यू.ए. (जी.बी.) के कार्यकर्ताओं ने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि तथाकथित मुख्य विचारधारा की पार्टियां जैसे कि भाजपा, कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी और इसी तरह की अन्य पार्टियां हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के हितों की सेवा करना जारी रखेंगी और बहुसंख्य जनता किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकती है। वे छल-कपट और लुभावने नारों के ज़रिए आते हैं, लेकिन वह हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के मज़दूरों के शोषण और किसानों की लूट को तेज़ करके खुद को समृद्ध बनाने के एजेंडे को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वक्ताओं ने मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश वर्गों के बीच एकता से प्रेरणा ली।
किसान मज़दूर एकता जिंदाबाद के नारे पूरे प्रदर्शन में गूंजते रहे। यह शोषक हिन्दोस्तानी राज्य के ख़िलाफ़़ अपने आम संघर्षों में किसानों और मज़दूर वर्ग की बढ़ती एकता और एकजुटता का प्रतीक था।
शहीद भगत सिंह, शहीद ऊधम सिंह, मदन लाल ढींगरा, करतार सिंह सराभा जैसे हमारे शहीदों को याद करने वाले नारे बार-बार उन्हें याद करते हुए लगाए जा रहे थे कि हमारे लोगों कि लिए वास्तविक आज़ादी का सपना पूरा नहीं हुआ है। इंकलाब जिंदाबाद के नारे हर ओर सुने जा सकते थे, यह संदेष देते हुए कि हमारे प्यारे देशभक्तों के लक्ष्य को क़ायम रखने के लिए क्रांति ही एकमात्र समाधान है। केवल व्यवस्था को बदलकर ही मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश वर्गों का शासन में आकर, बहुसंख्यकों के लिए एक सुरक्षित आजीविका और एक उज्ज्वल भविष्य मुहैया करा सकता है। इंकलाब ही समाधान है!
(इंडियन वर्कस एसोसिएशन (जीबी) और ग़दर इंटरनेशनल के प्रतिनिधियों से प्राप्त रिपोर्ट, प्रकाशन के लिए)