साम्राज्यवादियों, लिबिया छोड़ो!

अगस्त में नाटो के हथियारों के सहारे से लिबिया की बाग़ी ताक़तों ने राजधानी त्रिपोली पर कब्ज़ा जमाया। इसके पहले यही संकेत मिल रहे थे कि अमरीका, बर्तानिया तथा और देशों के लोग तेजी से लिबिया में दखलंदाज़ी का विरोध कर रहे थे और उन सरकारों पर दबाव बढ़ रहा था। अब जब अभूतपूर्व बमबारी के सहारे सेनायें त्रिपोली में घुस गयीं, तब लिबिया में नाटो के खूनी और बर्बर हस्तक्षेप को तुरंत “कामयाब” घ

अगस्त में नाटो के हथियारों के सहारे से लिबिया की बाग़ी ताक़तों ने राजधानी त्रिपोली पर कब्ज़ा जमाया। इसके पहले यही संकेत मिल रहे थे कि अमरीका, बर्तानिया तथा और देशों के लोग तेजी से लिबिया में दखलंदाज़ी का विरोध कर रहे थे और उन सरकारों पर दबाव बढ़ रहा था। अब जब अभूतपूर्व बमबारी के सहारे सेनायें त्रिपोली में घुस गयीं, तब लिबिया में नाटो के खूनी और बर्बर हस्तक्षेप को तुरंत “कामयाब” घोषित करके अमरीकी, बर्तानवी तथा फ़्रांसीसी सरकारों ने उसे जायज़ ठहराया है।

लिबिया के नेता मुअम्मर गद्दाफी के बलों तथा एन.टी.सी. (नैशनल ट्रांजि़शनल काउंसिल) के तहत संगठित हुए बागी बलों के बीच अब भी लड़ाई जारी है। इसके बावजूद, नाटो के राज्यों ने बहुत जल्दबाज़ी से एन.टी.सी. को लिबिया की नयी सरकार बतौर मान्यता दी है तथा गद्दाफी सरकार का अंत घोषित किया है।

उसी के साथ, बर्तानवी प्रधान मंत्री कैमेरान ने जाहिर किया है कि नाटो लिबिया में अपनी कार्यवाही जारी रखेगा। उसकी वहां की भूमिका खत्म करने की कोई तारीख जाहिर करने से उन्होंने इंकार किया।

गद्दाफी को सत्ता से हटाने की 6महीनों की मुहिम के दौरान अमरीकी, बर्तानवी, फ़्रांसीसी, इत्यादि सरकारों ने अपने-अपने देशों में जो लिबियाई सरकार की परिसंपत्ती थी, उसे अवैध तरीके से रोक दिया है। अब उन्होंने बहुत तत्परता से घोषित किया है कि यह पैसा एन.टी.सी. को उपलब्ध होगा।

लिबिया के तेल आदि के संसाधन तथा संबंधित प्रतिष्ठान दुनिया के सबसे वैभव संपन्नों में आते हैं। उनमें बहुत बढि़या तरीके से विकसित की गयी तेल रिफायनरीज़, पंपिंग स्टेशन्स, गैस लाइन्स, बंदरगाह तथा सीधे यूरोप में पहुंचने वाली पाइप लाइन्स का समावेश है। उन सब पर नियंत्रण जमाने की पागलों जैसी स्पर्धा शुरू हो गयी है।

नाटो की बमबारी से छिन्न-विछिन्न किये गये लिबिया के “पुनर्निर्माण” के बहुत बड़े ठेकों की तरफ भी विदेशी इज़ारेदार लालची नज़र से देख रहे हैं। विकसित पूंजीवादी देशों में गहरी आर्थिक मंदी की आज की परिस्थिति में ऐसे ठेके बहुत ही महत्वपूर्ण बन जाते हैं। एन.टी.सी. ने घोषित किया है कि सर्व प्रथम ये ठेके उन राज्यों को मिलेंगे जिन्होंने उनकी मदद की है – इसका मतलब होता है खास करके अमरीका, बर्तानिया और फ्रांस को मिलेंगे।

इस साल के पहले, संयुक्त राष्ट्र संगठन के अनुसार, मानव विकास सूचकांकों के आधार पर, पूरे अफ्रीका में लिबिया का पहला नम्बर था। इन सूचकांकों में अनुमानित आयुर्मान, माता और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम होना, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, आदि का समावेश है। अमरीकी कब्जे़ के बाद इराक में क्या हुआ, इस अनुभव से हम अनुमान लगा सकते हैं कि अब लिबिया के मूल्यवान संसाधनों को मुनाफ़ाखोर तथा विदेशी इज़ारेदार लूट लेंगे। उनका जनता की भलाई में निवेश नहीं किया जाएगा।

बड़ी बेशर्मी से फ्रांसीसी राष्ट्रपति सार्कोज़ी ने घोषित किया है कि नाटो के हस्तक्षेप से लिबिया को “नये भविष्य” के निर्माण में मदद मिलेगी। लिबिया और उसके लोगों का भविष्य तय करना, यह फ्रांस, बर्तानिया, अमरीका या किसी भी विदेशी ताकत का काम नहीं है। विदेशी हुक्मों के बगैर खुद के मामले खुद तय करने का तथा अपनी मर्जी से अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने का अधिकार सिर्फ़ लिबिया के लोगों का है, और किसी का नहीं।

स्वाधीन राज्यों की संप्रभुता के असूल के खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन के सिलसिले में लिबिया सबसे नयी मिसाल है। “मानवतावादी मदद” के नाम पर किया हुआ नाटो द्वारा हमला, यह मानवता के खि़लाफ़ एक बहुत बड़ा अपराध है। अपनी सेना के बल पर साम्राज्यवादी ताकतों ने अवैधता से लिबिया पर कब्ज़ा जमाया है, और एक ऐसे अवैध कठपुतली शासन को राजगद्दी पर बैठने का समर्थन दे रहे हैं जो उनके नियंत्रण में हो। अपने स्वार्थी,खुदगर्ज हितों के लिए “सत्ता परिवर्तन” के उनके कार्यक्रम की वजह से लिबिया में असीमित हानि हुई है। उसकी वजह से पूरे उत्तरी अफ्रीका में तनाव और अस्थिरता बढ़ रही है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *