मुम्बई के रेल चालकों ने अपने ऊपर हमलों का विरोध किया

19 अगस्त, 2011 को मुम्बई में पश्चिम रेलवे की सबर्बन सेवाओं के चालकों ने शाम के 4:30 से 5:30 तक आकस्मिक हड़ताल की। वे अपने सहकर्मी की बर्खास्तगी के खिलाफ़ प्रतिरोध कर रहे थे। इस हड़ताल की वजह से पश्चिम रेलवे की सेवायें पूरी तरह ठप्प हो गयीं। रेल चालकों के इस एकजुट प्रतिरोध को देखकर, अधिकारियों को बर्खास्त मजदूर को वापस लेना पड़ा।

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वोलटास के मजदूरों का संघर्ष जारी

वोलटास लिमिटेड (एक टाटा समूह कंपनी) के मजदूर, अपने यूनियन, वोलटास एम्पलाइज़ यूनियन की अगुवाई में, अपनी शिकायतोंको लेकर मुम्बई में कंपनी के मुख्यालय पर कई महीनों से श्रृंखलाबध्द भूख हड़ताल कर रहे हैं।

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Maruti Suzuki Employees Union

मारूती-सुजुकी इम्प्लाईज यूनियन ने रैली निकली

Maruti Suzuki Employees Union12 सितम्बर, 2011 को मारूती-सुजुकी इम्प्लाईज यूनियन ने गुड कंडक्ट बांड की शर्त को हटाने, यूनियन के पदाधिकारियों सहित अन्य सभी मजदूरों को काम पर वापस लेने, यूनियन को मान्यता देने की मांग को लेकर गुड़गांव के कमला नेहरू पार्क से लेकर सचिवालय तक एक विशाल रैली निकाली। इस रैली में गुड़गांव और मानेसर स्थित अलग-अलग कंपनियों की यूनियनों और उनके कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

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भ्रष्ट हिन्दोस्तानी लोकतंत्र के खिलाफ़ जन आंदोलन :

लोगों को सत्ता में लाने के लक्ष्य के इर्द-गिर्द बढ़ती राजनीतिक एकता

वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के खिलाफ़ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिये, देश के कोने-कोने में, समाज के सभी तबकों से करोड़ों लोग सड़कों पर उतर आये। वे अन्ना हजारे और उनके सत्याग्रह का समर्थन करने को प्रेरित हुये। कई दूसरे जन संगठनों के साथ मिलकर उन्होंने ऐलान किया कि ''हम हिन्दोस्

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जनता का मत सर्वोच्च है, संसद का मत नहीं!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 28 अगस्त, 2011

जन आंदोलन से जनता में यह जागरुकता बढ़ गयी है कि वर्तमान लोकतंत्र की व्यवस्था में मूल समस्या यह है कि इसमें बड़े-बड़े व्यावसायिक हित और उनकी भ्रष्ट पार्टियां लोक सभा पर नियंत्रण करती हैं। इस बात का भी और ज्यादा पर्दाफाश हुआ है कि बहुपार्टीवादी प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बड़े-बड़े शोषकों, भ्रष्ट मंत्रियों और अफसरों को हमारी भूमि और श्रम को लूटने की खुली छूट मिलती है।

हाल की गतिविधियों से मुख्य सवाल यह उठकर आया है कि सर्वोच्च ताकत कहां है और उसे कहां होना चाहिये। कौन संप्रभु है? क्या जनता का मत सर्वोच्च है या संसद का मत और मंत्रीमंडल का मत?

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फैसले लेने की ताकत

फैसले लेने की ताकत

फैसले लेने की ताकतहिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की आवाज़ “फैसले लेने की ताकत” इस प्रकाशन में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति द्वारा 1,18 और 28 अगस्त 2011 को जारी किये गए तीन बयान है.

(PDF दस्तावेज को डाउनलोड करने के लिए कवर चित्र पर क्लिक करें)

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9/11 की दसवीं वर्षगांठ पर

मनगढ़ंत बहानों के आधार पर अन्यायपूर्ण युध्दों और संप्रभुता के उल्लंघनों के दस वर्ष

न्यूयार्क और वाशिंगटन में 11 सितंबर 2001 को हुये आतंकवादी हमलों के बाद के पिछले दस वर्ष, आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर लगातार युध्द और बर्बादी के दस वर्ष रहे हैं।

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असहमति के खिलाफ़ मनमोहन सिंह सरकार की कड़ी कार्यवाही का विरोध करें!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के केन्द्रीय समिति का बयान, 18 अगस्त, 2011

15 अगस्त की शाम से दिल्ली तथा देश के अन्य अनेक जगहों पर आम जनता की भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ रैलियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए हिन्दोस्तान की सरकार ने अपने सुरक्षा बल तैनात किये। 16 अगस्त को सुबह-सुबह, पूर्वनियोजित तरह से, गृह मंत्रालय की कमान में सुरक्षा बलों ने अन्ना हज़ारे तथा आंदोलन के अन्य नेताओं को पकड़ कर ''निरोध हिरासत'' में रखा। उसके साथ समर्थन जताने वालों में से हज़ारों लोगों को भी गिरफ्तार किया गया।

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फैसले लेने की ताकत लोगों द्वारा पुनः प्राप्त करने का वक्त

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 1 अगस्त, 2011

 हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि संसदीय लोकतंत्र और पार्टी आधिपत्य वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वर्तमान व्यवस्था आज वक्त से कदम नहीं मिलाती। यह व्यवस्था और इसका आधारभूत सिद्धांत, न केवल यूरोप से आयातित है, बल्कि यह कई सैकड़ों साल पुराना भी है। इसकी बनावट ही ऐसी है कि इसमें फैसले लेने की ताकत मुट्ठीभर विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित है।लोगों की सहमति से तैयार किये गये लोकपाल विधेयक को संसद में भेजने के आंदोलन और सत्तारूढ़ व विपक्षी पार्टियों द्वारा इस आंदोलन की विरोधता से एक अहम प्रश्न उठता है।

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