आर्थिक संकट

संपादक महोदय,

मजदूर एकता लहर के अंक 1-15 जनवरी, 2012 में 'पूंजीवादी सरकारों के पास गहराते आर्थिक संकट का कोई समाधान नहीं है', इस लेख का अध्ययन हमने पार्टी के अपने एक बुनियादी संगठन में किया और चर्चा की, इसके बाद हम अपनी समझ के अनुसार यह पत्र आपको लिख रहे हैं।

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भ्रष्टाचार मिटाने का संसदीय पार्टियों का नाटक

संपादक महोदय,

मैंने मजदूर एकता लहर के 16-31 जनवरी के अंक में छपे लेख 'लोक पाल बिल पर संसदीय वाद-विवाद का नाटक' को पढ़ा। इस लेख में इस संसदीय व्यवस्था की सच्चाई को साफ-साफ बताया गया है। इस लेख को प्रकाशित करने के लिये मैं आपका धन्यवाद करता हूं।

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पार्टी की निडरता के लिए धन्यवाद!

संपादक महोदय,

मैंने जनवरी 16-31 अंक 2में प्रकाशित लेख, 'पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा!' को पढ़ा। इस अंक में प्रकाशित लेख से पूरी तरह सहमत हूं।

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भ्रम पैदा करने वाला गणतंत्र

संपादक महोदय,

मैंने मजदूर एकता लहर के अंक जनवरी 16-31, 2012 में आपके अखबार में प्रकाशित लेख ''पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा'' को बड़े ध्यान से पढ़ा।

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आर्थिक सुधार कार्यक्रम पर मजदूर-मेहनतकशों के विचार

मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की हिमायत करने वाले अखबार और संगठन बतौर, हम मेहनतकशों के नेताओं से यह सवाल कर रहे हैं कि 20 वर्ष पहले शुरू किये गये सुधारों के परिणामों के बारे में हिन्दोस्तान के मेहनतकशों का क्या विचार है। क्या उन सुधारों से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को फायदा हुआ है या नुकसान?

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28 फरवरी की आम हड़ताल की तैयारी

विभिन्न ट्रेड यूनियनों और मजदूर संगठनों के 400 से अधिक कार्यकर्ता 27 जनवरी, 2012 को मुंबई में एक गोष्ठी में एकत्रित हुए। 28  फरवरी, 2012 को मजदूर वर्ग की प्रस्तावित सर्वहिन्द आम हड़ताल की तैयारी करने के लिए यह गोष्ठी आयोजित की गई थी।

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पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा

62 वर्ष पहले, 26 जनवरी, 1950 को वर्तमान हिन्दोस्तानी गणतंत्र की घोषणा की गई थी। इसके साथ ही, हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों की राज्य सत्ता को मजबूत किया गया। जब हिन्दोस्तानी लोगों के बढ़ते संघर्षों की वजह से बर्तानवी उपनिवेशवादियों को छोड़कर जाना पड़ा, तब हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने उनसे राज्य सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। इस नये पूंजीवादी गणतंत्र की मूल विधि या संविधान और इसके सारे संस्थान स्थापित

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लोक पाल बिल पर संसदीय वाद-विवाद का नाटक

लोक पाल और लोकायुक्त बिल, 2011 को लोकसभा में चर्चा के लिये 23 दिसंबर, 2011 को पारित किया गया। इस बिल के मसौदे को एक संविधान संशोधन बिल के साथ-साथ पारित किया गया। इनका मकसद था एक संविधानीय दर्जे वाला भ्रष्टाचार विरोधी जांचकारी आयुक्त बनाना, जिसकी जिम्मेदारी होगी कार्यकारिणी, यानि सभी सरकारी कर्मचारियों तथा प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों के खिलाफ़ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करना (बेशक इसमे

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मणिपुर विधान सभा चुनाव :

मुद्दा है सशस्त्र बल (विशेष-अधिकार) अधिनियम और सैनिक शासन को स्थायी रूप से खत्म करना!

28 जनवरी को केन्द्रीय सशस्त्र बलों के फासीवादी राज की हालतों में, मणिपुर के लोगों को एक बार फिर विधान सभा के सदस्यों को चुनने के लिये कहा जा रहा है।

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