संपादक महोदय,
आज गणतंत्र के 62 वर्ष होने के बाद भी देश की स्थिति काफी खराब है।
आगे पढ़ेंसंपादक महोदय,
मैंने जनवरी 16-31 अंक 2में प्रकाशित लेख, 'पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा!' को पढ़ा। इस अंक में प्रकाशित लेख से पूरी तरह सहमत हूं।
आगे पढ़ेंसंपादक महोदय,
मैंने मजदूर एकता लहर के अंक जनवरी 16-31, 2012 में आपके अखबार में प्रकाशित लेख ''पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा'' को बड़े ध्यान से पढ़ा।
आगे पढ़ेंविभिन्न ट्रेड यूनियनों और मजदूर संगठनों के 400 से अधिक कार्यकर्ता 27 जनवरी, 2012 को मुंबई में एक गोष्ठी में एकत्रित हुए। 28 फरवरी, 2012 को मजदूर वर्ग की प्रस्तावित सर्वहिन्द आम हड़ताल की तैयारी करने के लिए यह गोष्ठी आयोजित की गई थी।
आगे पढ़ें62 वर्ष पहले, 26 जनवरी, 1950 को वर्तमान हिन्दोस्तानी गणतंत्र की घोषणा की गई थी। इसके साथ ही, हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों की राज्य सत्ता को मजबूत किया गया। जब हिन्दोस्तानी लोगों के बढ़ते संघर्षों की वजह से बर्तानवी उपनिवेशवादियों को छोड़कर जाना पड़ा, तब हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने उनसे राज्य सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। इस नये पूंजीवादी गणतंत्र की मूल विधि या संविधान और इसके सारे संस्थान स्थापित
आगे पढ़ेंलोक पाल और लोकायुक्त बिल, 2011 को लोकसभा में चर्चा के लिये 23 दिसंबर, 2011 को पारित किया गया। इस बिल के मसौदे को एक संविधान संशोधन बिल के साथ-साथ पारित किया गया। इनका मकसद था एक संविधानीय दर्जे वाला भ्रष्टाचार विरोधी जांचकारी आयुक्त बनाना, जिसकी जिम्मेदारी होगी कार्यकारिणी, यानि सभी सरकारी कर्मचारियों तथा प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों के खिलाफ़ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करना (बेशक इसमे
आगे पढ़ें28 जनवरी को केन्द्रीय सशस्त्र बलों के फासीवादी राज की हालतों में, मणिपुर के लोगों को एक बार फिर विधान सभा के सदस्यों को चुनने के लिये कहा जा रहा है।
आगे पढ़ेंहाल के वर्षों में, विश्व स्थिति की सबसे स्पष्ट विशेषता यह रही है कि पूंजीवादी देशों में शोषित जनसमुदाय और इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में शोषकों के बीच अन्तर्विरोध तेज़ हो रहे हैं।
आगे पढ़ेंमजदूर वर्ग और मेहनतकशों की हिमायत करने वाले अखबार और संगठन बतौर, हम मेहनतकशों के नेताओं से यह सवाल कर रहे हैं कि 20 वर्ष पहले शुरू किये गये सुधारों के परिणामों के बारे में हिन्दोस्तान के मेहनतकशों का क्या विचार है। क्या उन सुधारों से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को फायदा हुआ है या नुकसान?
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