महाराष्ट्र में तारापुर के लोगों का अनुभव

सरकार पीडि़त लोगों की परवाह किये बिना परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम चला रही है

सरकार परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर चला रही है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, तामिलनाडु, गुजरात आदि जैसे कुछ राज्यों में लोग इसका डटकर विरोध कर रहे हैं। पर कई नेता और सरकारी वक्ता परमाणु प्लांट के आस-पास रहने वाले लोगों को होने वाले खतरों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं। देश भर में वैज्ञानिक और जनहित कार्यकर्ता इन कोशिशों का पर्दाफाश कर रहे हैं।

इस संदर्भ में तारापुर के लोगों का अनुभव एक बहुत ज्वलंत मिसाल है। हाल में मजदूर एकता लहर के एक संवाददाता तारापुर गये और वहां उन्होंने जिन भयानक सच्चाइयोंकी जानकारी प्राप्त की, उसे हम अपने पाठकों के सामने पेश कर रहे हैं।

तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (टी.ए.पी.एस.) मुम्बई से सिर्फ 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सरकार की पहली परमाणु ऊर्जा परियोजना थी जो 1967 में शुरु की गयी थी। प्रथम दो सत्रों के लिये वहां के हजारों निवासियों को अपनी पारंपरिक भूमि और घर-बार खोना पड़ा था। सरकार ने उन्हें दूसरी जगह पर मकान और रोजगार दिलाने का वादा किया था, परन्तु प्लांट के शुरु होने के 40 वर्ष बाद भी ये वादे पूरे नहीं हुए हैं। परियोजना के आस-पास के पूरे इलाके में एक पतली पक्की सड़क है  जो कुछ ही साल पहले बनी थी। गांव वासियों ने देश को बिजली दिलाने के लिये अपनी जमीन और घर-बार त्याग दी, परन्तु उन्हें खुद को बहुत ही अनियमित बिजली की सप्लाई मिलती है, जिसमें प्रतिदिन 8-10 घंटे का पावर कट होता है। तीसरे और चौथे सत्र को 2005 में ही शुरु किया गया। पुलिस ने बलपूर्वक और बुलडोजर सहित हजारों घरों को तोड़ा, इसका विरोध करने वाले लोगों को बांधकर पुलिस के ट्रकों पर बिठाकर, दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। सरकार ने निवासियों को रोजगार देने का वादा भी किया था पर यह वादा भी उसने पूरा नहीं किया। सरकार ने दावा किया था कि परमाणु ऊर्जा प्लांट से मछली पकड़ने पर कोई असर नहीं होगा परन्तु तारापुर के मछुआरों की अलग ही कहानी है।

सरकार और उसके वक्ता यह दावा करते हैं कि परमाणु प्लांट से विकिरण की वजह से बहुत कम खतरा है क्योंकि सरकार ने बहुत सारे ऐतिहाती बचाव के कदम लिये हैं। परन्तु तारापुर के निवासियों की पीड़ा से इस झूठ का पर्दाफाश होता है। 15,000 की आबादी वाले एक गांव में ही प्रतिवर्ष 10से 15लोग कैंसर से मरते हैं! इन मरीजों के इलाज के लिये वहां आसपास कोई अस्पताल नहीं हैं। उन्हें अपना पैसा खर्च करके मुम्बई में इलाज कराने जाना पड़ता है। लकवा, जोड़ों में दर्द, स्त्री रोग, गर्भपात, इत्यादि जैसे विकिरणों के बुरे प्रभावों की बहुत सी रिपोर्टें मिलती हैं।

सरकार यह दावा करती है कि उसने परमाणु दुर्घटना का सामना करने के लिये विशेष प्रबन्ध कर रखा है। हाल में प्रधानमंत्री ने सभी परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं की विशेष आडिट का आदेश दिया था। दो हफ्ते पहले मीडिया में यह घोषणा की गई कि तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन इलाके में एक मौक ड्रिल सफलतापूर्वक किया गया। परन्तु वहां के निवासियों का कहना है कि मौक ड्रिल एक बड़ा नाटक था और अधिकतम निवासियों को उसके बारे में कोई खबर नहीं थी! हालांकि इन गांवों में हजारों लोग रहते हैं, पर इनकी सड़कें इतनी पतली हैं कि किसी भी आपातकालीन हालत में लोगों को निकालने में कई घंटे लगेंगे। घिवाली नामक गांव एक पतली सी जमीन की टुकड़ी पर स्थित है जिसके तीनों तरफ अरब सागर है। आपातकालीन हालत में निवासियों को प्लांट की ओर ही भागना पड़ेगा क्योंकि निकलने का कोई और रास्ता नहीं हैं! कई सालों से गांव वासी मुख्य भूमि से उन्हें जोड़ने वाले एक पुल की मांग करते आ रहे हैं। यह पुल कुछ 100मीटर लम्बा ही होगा परन्तु सरकार अभी तक इसे नहीं बना पायी हैं।

घिवाली गांव, जिसकी 5000 की आबादी है, गरीब मेहनतकशों के प्रति सरकार की लापरवाही का एक उदाहरण है। तारापुर परमाणु प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों की कालोनी प्लांट से कम से कम 8 किलोमीटर की दूरी पर है, परन्तु यह गांव प्लांट के तीसरे और चैथे सत्र से मात्र 600 मीटर की दूरी पर है! इस बात को नज़रअंदाज किया जा रहा है, हालांकि सरकारी कानूनों के अनुसार प्लांट से 5 किलोमीटर की दूरी तक क्षेत्र को विकिरणों के असर के लिये खतरनाक माना जाता है और प्लांट से 1.5 किलोमीटर की दूरी तक कोई रिहायशी बस्ती की इज़ाज़त नहीं है।

हिन्दोस्तान के पूंजीपति एक बड़ी वैश्वीक ताकत बनने की कोशिश कर रही है और इस कोशिश के तहत अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को पूरा बढ़ावा दे रही है। वे चाहते हैं कि सरकार इस कार्यक्रम को लागू करने के लिये जरूरी बल प्रयोग और धोखाधड़ी का प्रयोग करे। परन्तु पूंजीपतियों की इन कोशिशों के खिलाफ़ जनता का विरोध भी बढ़ रहा है।

मजदूर एकता लहर यह मांग करती है कि तथाकथित “राष्ट्रीय सुरक्षा” की आड़ में, परन्तु ऊर्जा प्लांटों के बारे में गोपनीयता का पर्दा हटाया जाये और पूरी सच्चाई लोगों के सामने लायी जाये। हम यह मांग करते हैं कि लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी देकर, लोगों की सहमति लिये बिना कोई ऐसी परियोजना शुरु न की जाये। हम यह मांग करते हैं कि जनता की सहमति के बिना चलायी जा रही सभी ऐसी परियोजनाओं को फौरन रोका जाये। हम यह भी मांग करते हैं कि मौजूदे परमाणु प्लांटों के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की पूरी मेडिकल जांच की जाये, जांच के नतीजे सबके सामने रखे जायें और सभी पीडि़त लोगों को फौरन पूरी मेडिकल सहायता और मुआवज़ा दी जाये।

तारापुर के निवासी क्या कहते हैं?

“हमने देशभक्ति के खातिर अपने हितों की कुर्बानी करने में गर्व महसूस किया और यह उम्मीद की कि बाकी देशवासियों के साथ-साथ हमारे जीवन में भी उन्नति आयेगी, परंतु…”  – संघर्ष के एक स्थानीय नेता

”2005 में पूरे पुलिस और अर्ध-सैनिक बलों ने हमें पोफरन गांव में हमारे घरों से बड़ी बेरहमी निकाल दिया। आज तक हमें कोई मुआवजा नहीं मिला है। वर्षा के समय जब ढांडी में मछली नहीं पकड़ सकते हैं, उस समय हम पोफरन गांव में 4-5महीने काम करते थे परंतु अब रोजगार का वह स्रोत भी हमसेछीन लिया गया है…” – 15,000 से अधिक आबादी वाले एक प्रभावित गांव ढांडी के कार्यकर्ता

 “परमाणु ऊर्जा प्लांट में हम में से कुछ लोगों को नौकरी मिल जाती है परंतु ठेके पर, जिसके लिए हमें प्रतिदिन सिर्फ 200-250 रुपये मिलता है। यह काम खतरों से भरा है और पूरे साल के लिए भी नहीं मिलता है। ऊर्जा प्लांट के बनने से पहले हम मछली पकड़कर हर रोज 400-500 रुपये आसानी से कमा लेते थे…”  – ढांडी  के नौजवान”1967 में इस परियोजना के शुरू होने से पहले हमें बड़ी मात्रा में मछली, झींगा आदि मिलते थे। परंतु परियोजना के प्रथम दो सत्रों के बाद इनकी संख्या बहुत कम हो गई। 2005 में तीसरे और चैथे सत्रों पर काम शुरू होने के बाद मछली की संख्या और घट गई है। हमारे गांव में 450 से अधिक मशीनी मछली पकड़ ट्रालर हुआ करते थे पर अब 150 से  कम बचे हैं। पहले हमें समुद्र तट से कुछ ही किलोमीटर के अंदर बहुत सी मछली मिल जाती थी परंतु अब हमें दूर समुद्र में जाना पड़ता है, जो कि खतरनाक भी है और महंगा भी…“ – ढांडी  और घिवाली के मछुवारे “मेरे अपने ही घर में एक नजदीक के संबंधी का कैंसर का इलाज चल रहा है। हर साल मैं खुद कैंसर से मरे हुए कम से कम 10-15 लोगों की दफन क्रिया करता हूं…” – गांव में दफन क्रिया करवाने वाले निवासी

 “मेरे कई मित्र और मैं खुद उन इलाकों में काम करते हैं जहां काफी तेज़ विकिरणों को झेलना पड़ता है। थोड़े साल काम करने के बाद ही हम सभी को सुबह उठने के समय जोड़ों में और पूरे शरीर में बहुत दर्द महसूस होता है। नियमित तौर पर हमारा मेडिकल जांच अवश्य होता है परंतु जांच के नतीजे हमें नहीं दिखाये जाते…परमाणु परियोजनाओं से संबंधित सभी जानकारी पर गोपनीयता का भारी पर्दा डाला हुआ है” – प्लांट में ठेके पर काम कर रहा शिक्षित नौजवान “हालांकि हम कई पीढि़यों से इसी इलाके में निवास कर रहे हैं, परंतु घिवाली गांव रेवेन्यू विभाग के रिकार्ड में मौजूद नहीं है! यानि हमारा संघर्ष अपने अस्तित्व को साबित करने के साथ शुरू होता है!”  – मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे स्थानीय नेता

 

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