कोविड-19 संयुक्त कार्यबल (टास्क फोर्स) की सिफारिशें

25 मई, 2020 को इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आई.पी.एच.ए.), इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आई.ए.पी.एस.एम.) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ एपिडेमियोलॉजिस्ट (आई.ए.ई.) के विशेषज्ञों ने कोविड-19 (कोविड महामारी) पर दूसरा संयुक्त बयान जारी किया।
मज़दूर एकता लहर इस बयान को यहाँ प्रकाशित कर रहा है :

इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आई.पी.एच.ए.),

इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आई.ए.पी.एस.एम.) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट (आई.ए.ई.)

कोविड-19 संयुक्त कार्यबल

हिन्दोस्तान में कोविड-19 महामारी पर दूसरा संयुक्त बयान

कोविड-19 नियंत्रण के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण

25 मई, 2020

देश में कोविड-19 महामारी के रोकथाम में, भारत सरकार की सहायता के लिए अप्रैल 2020 में, आई.ए.पी.एस.एम. और आई.पी.एच.ए., द्वारा हिन्दोस्तान के प्रख्यात सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का एक संयुक्त कार्य बल (टास्क फोर्स) गठित किया गया था। इसके बाद इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट (आई.ए.ई.) भी इस टास्क फोर्स में शामिल हुआ।

संयुक्त टास्क फोर्स के दिए गए निर्देश इस प्रकार थे 1) राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर भारत में कोविड-19 महामारी से संबंधित वैज्ञानिक साहित्य को इकट्ठा करना और उसकी समीक्षा करना; 2) कोविड-19 रोग महामारी के बारे में वैज्ञानिक जानकारी और विभिन्न प्रचलित धाराओं के आधार पर चर्चा करके, विशेषज्ञों के बीच एक आम सहमति विकसित करना और सर्वसम्मति के आधार पर एक कार्य योजना विकसित करना; 3) सर्वसम्मति से बनाये गए इस बयान और कार्य योजना को सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े संगठनों और अन्य महत्वपूर्ण सांझेदारों के बीच व्यापक रूप से प्रसारित करना; 4) केंद्र और राज्य के उच्चतम स्तर पर नीति निर्माताओं के साथ आम सहमति से बयान को सांझा करना।

आई.पी.एच.ए., आई.ए.पी.एस.एम., आई.ए.ई. कोविड-19 संयुक्त कार्य बल के सदस्य इस प्रकार हैं :

(वर्णमाला क्रम के अनुसार)

  1. डॉ. ए.सी. धारीवाल, एन.वी.बी.डी.सी.पी. के पूर्व निदेशक, एन.सी.डी.सी. और एन.वी.बी.डी.सी.पी. के सलाहकार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार
  2. डॉ. अनिल कुमार, अध्यक्ष, आई.ए.ई. और डिप्टी डी.जी.एच.एस. (बधिरता), निर्माण भवन, नई दिल्ली
  3. डॉ. ए.एम. कादरी, सचिव, आई.ए.पी.एस.एम.
  4. डॉ. चंद्रकांत एस. पांडव, पूर्व अध्यक्ष आई.पी.एच.ए. और आई.ए.पी.एस.एम., पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख, सामुदायिक चिकित्सा केंद्र (सी.सी.एम.), ए.आई.आई.एम.एस., नई दिल्ली और अध्यक्ष, आई.सी.सी.आई.डी.डी.
  5. डॉ. डी.सी.एस. रेड्डी, पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख, सामुदायिक चिकित्सा, आई.एम.एस., बी.एच.यू.
  6. डॉ. फारूक अहमद, पूर्व निदेशक एन.ई.आई.जी.आर.आई.एम.एस. और प्रोफेसर वी.सी. के.बी.एन. विश्वविद्यालय
  7. डॉ. कपिल यादव, एडिशनल प्रोफेसर, सी.सी.एम., ए.आई.आई.एम.एस., नई दिल्ली
  8. डॉ. एम.के. सुदर्शन, मुख्य संपादक, इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ (आई.जे.पी.एच.)
  9. डॉ. पुनीत मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष, आई.ए.पी.सी.एम. और प्रोफेसर, सी.सी.एम., ए.आई.आई.एम.एस., नई दिल्ली
  10. डॉ. राजेश कुमार, पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख, पी.जी.आई.एम.ई.आर., चंडीगढ़
  11. डॉ. राजीब दासगुप्ता, प्रोफेसर, सामुदायिक स्वास्थ्य, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
  12. डॉ. संघमित्रा घोष, महासचिव, आई.पी.एच.ए. और सी.एम.ओ. (एस.जी.) रक्षा मंत्रालय, कोलकाता
  13. डॉ. संजय के. राय, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आई.पी.एच.ए. और प्रोफेसर, सी.सी.एम., ए.आई.आई.एम.एस., नई दिल्ली
  14. डॉ. संजय झोडपे, अध्यक्ष, आई.ए.पी.एस.एम. और उपाध्यक्ष-शिक्षाविद्, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पी.एच.एफ.आई.), नई दिल्ली
  15. डॉ. संजीव कुमार, पूर्व कार्यकारी निदेशक, एन.एच.एस.आर.सी., और अध्यक्ष, इंडियन एकेडमी ऑफ़ पब्ल्कि हेल्थ (आई.ए.पी.एच.)
  16. डॉ. शशि कांत, पूर्व अध्यक्ष आई.ए.पी.एस.एम. और प्रोफेसर और प्रमुख, सी.सी.एम., ए.आई.आई.एम.एस., नई दिल्ली
कार्यकारी सारांश और कार्य योजना
पृष्ठभूमि

माननीय प्रधानमंत्री  ने 24 मार्च, 2020 को राष्ट्रीय चिकित्सा से जुड़े पेशेवर संघों को आमंत्रित किया और कोविड-19 की रोकथाम और नियंत्रण के लिए सुझाव मांगे। आई.पी.एच.ए. और आई.ए.पी.एस.एम. के राष्ट्राध्यक्षों ने इस बैठक में भाग लिया। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में आंतरिक चर्चाओं और विचार-विमर्श के बाद, पहला संयुक्त बयान, माननीय प्रधानमंत्री, माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, नीति आयोग, सचिव (एच.एफ.डब्ल्यू.) और सचिव (डी.एच.आर.) को, 11 अप्रैल, 2020 को प्रस्तुत किया गया था।

तब से संयुक्त कार्य बल ने, विश्व स्तर पर और देश के भीतर उत्पन्न, नए सबूतों की समीक्षा की है। टास्क फोर्स के सदस्यों ने कई अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों से जुड़े राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर काम करने वाले पेशेवरों के साथ भी बातचीत की है। विभिन्न पेशेवर एसोसियेशनों के सोशल मीडिया से भी सुझाव लिए गए हैं। हाल ही में इकट्ठा किये गए इन सब सबूतों के आधार पर यह इस टास्क फार्स के संयुक्त बयान का यह दूसरा संस्करण है।

स्थिति विश्लेषण

चल रही कोविड-19 महामारी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है जिसके गंभीर परिणाम संपूर्ण विश्व के लोग भुगत रहे हैं। वैश्विक समुदाय के एक हिस्से के रूप में, हिन्दोस्तान पर भी इस महामारी का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है – एक प्रलयकारी दुगने बोझ ’से प्रभावित 145,000 से ज्यादा कोविड संक्रमण के मामले और 4,000 से अधिक मौतें और इसके साथ ही एक अभूतपूर्व मानवीय संकट जिसमें अनुमानित 11.4 करोड़ नौकरियों का नुकसान (जिनमें 9.1 करोड़ दैनिक मज़दूरी करने वाले और 1.7 करोड़ वेतन पाने वाले बेरोज़गार शामिल है), क्योंकि 2,71,000 बड़े कारखाने और 6.5-7 करोड़ छोटे और सूक्ष्म उद्योग बंद हो गए हैं।

30 जनवरी, 2020 को पहले कोविड पॉजिटिव केस का पता चलने के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया से संक्रमण की तीव्र प्रगति पर कुछ लगाम लगी और देश के सभी लोगों ने अपने दैनिक जीवन के सभी पहलुओं में शारीरिक दूरी को स्वीकार किया। कोरोना वायरस के नियंत्रण के लिए क्लीनिकल, महामारी वैज्ञानिक और प्रयोगशाला ज्ञान के आधार पर यह संकेत मिल रहे हैं कि मानव जाति को “वायरस के साथ जीना” होगा। और इसलिए अपनी संचालन रणनीतियों को तेज़ी से बदलना होगा। ज़रूरत है कि हम उन उपायों को अपनाएं जिससे इस वायरस को सीमित रखने की बजाय, उन उपायों से लोगों की सुरक्षा हो सके। सभी सबूत, जो उभर कर सामने आ रहें हैं, यही संकेत दे रहे हैं कि कोविड-19 ने स्वास्थ्य क्षेत्र में वर्तमान असमानताओं को और भी बदतर कर दिया है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपायों में बदलाव की चर्चा करते समय, इस चिंता को केंद्रबिंदु में लाने की अत्यंत आवश्यकता है। राष्ट्रव्यापी समुदाय और जो भी स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े हैं सभी सहयोग कर रहे हैं और इस महामारी पर जो भी जानकारी मिल रही है उसको सभी के साथ सांझा कर रहे हैं। सभी यह कोशिश कर रहे हैं कि जितनी जल्दी हो सके इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए एक व्यापक, प्रभावी, कुशल और टिकाऊ रणनीति और कार्ययोजना तैयार करें। इसके साथ ही, हर देश के भीतर प्रत्येक क्षेत्र में, इस सामान्य कार्य योजना को अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार, उसमें जो भी बदलाव चाहिए उनके साथ, अपनी परिस्थितियों के अनुकूल अमल में लाने की ज़रूरत है। न केवल वैज्ञानिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ बल्कि, वास्तव में बड़े पैमाने पर जनता के साथ खुला और पारदर्शी डेटा (इस महामारी के बारे में जानकारी) सांझा करने की सख्त ज़रूरत है। और इसे जल्द से जल्द सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह महामारी पर नियंत्रण पाने के उपायों को मज़बूत करेगा, देश के आम लोगों में एक सर्वसम्मति का निर्माण करने में और देश में एक सहयोग और विश्वास का वातावरण पैदा करने में भी सहायता करेगा।

25 मार्च, 2020 से 30 मई, 2020 तक हिन्दोस्तान का देशव्यापी “लॉकडाउन” सबसे अधिक सख़्त क़दमों में से एक रहा है फिर भी कोविड संक्रमण के फैलने की गति में, बहुत ही तेज़ी से वृद्धि हुई है – 25 मार्च को 606 कोविड पॉजिटिव केस बढ़कर 24 मई को 1,38,845 हो गये। इस सख़्त “लॉकडाउन” का आधार, संभवतः, एक प्रभावशाली संस्थान के द्वारा प्रकाशित मॉडलिंग के द्वारा किये गए, “सबसे ख़राब स्थिति वाले अनुमान” के नतीजे थे। इसी नमूने के अनुसार, दुनियाभर में अनुमानित 22 लाख करोड़ मौतों की भविष्यवाणी भी शामिल है। इसके बाद की घटनाओं से यह साबित हुआ है कि इस नमूने की भविष्यवाणियां हक़ीक़त से बहुत दूर थीं।

भारत सरकार ने यदि महामारी पर जानकारी रखने वाले विज्ञानियों से परामर्श किया होता, जो मॉडलर्स की तुलना में संक्रामक रोग के फैलने की गतिशीलता की बेहतर समझ रखते थे तो शायद बेहतर होता।

सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध सीमित जानकारी के अनुसार, ऐसा लगता है कि सरकार को मुख्य रूप से चिकित्सकों और उन वैज्ञानिकों द्वारा सलाह दी गई थी, जिनका महामारी के बारे में प्रशिक्षण और कौशल बहुत ही सीमित था। नीति निर्माता स्पष्ट रूप से सामान्य प्रशासनिक नौकरशाहों की सलाह पर ज्यादा निर्भर रहे।

महामारी विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, निवारक दवा और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श बहुत ही सीमित था।

हिन्दोस्तान इस समय दोनों ही मोर्चों पर, एक भारी क़ीमत चुका रहा है। एक तरफ देश बहुत ही गहरे मानवीय संकट से जूझ रहा है और दूसरी तरफ कोविड बीमारी भी बड़े पैमाने पर फैल रही है। नीति निर्माताओं ने महामारी विज्ञान के आधार पर अच्छी तरह से सोची-समझी एक रणनीति अपनाने की बजाय, राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुत ही असंगत और दिन पर दिन तेज़ी से रणनीतियों और नीतियों में बदलाव करने वाली पद्धति अपनाई। ये इस तथ्य के प्रतिबिंब हैं कि उन्हें इस महामारी से लड़ने के लिए अपनी समझ में स्पष्टता और अपने निर्णयों पर विश्वास का अभाव था।

अधिकांश कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति, लक्षणों के बिना होते हैं। कुछ लोगों में भले ही रोगसूचक लक्षण हों, ये लक्षण हल्के होते हैं और जानलेवा नहीं होते हैं। अधिकांश रोगियों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है और उनका इलाज अनुशासित तरीके से, न्यूनतम दूरी बनाये रखने के नियमों का पालन करके, उनके अपने घर में भी किया जा सकता है।

महामारी की शुरुआत में ही, जब बीमारी बड़े पैमाने पर फैली नहीं थी, यदि प्रवासी व्यक्तियों को अपने घर जाने की अनुमति दी जाती तो वर्तमान स्थिति जिसमें लाखों लोग घर से दूर, बिना रोज़गार और ज़िन्दा रहने के साधनों से वंचित अनजान जगहों पर फंसे हुए हैं, इसकी नौबत ही नहीं आती। इस मानवीय संकट को टाला जा सकता था। लौटने वाले प्रवासी अब देश के प्रत्येक कोने में संक्रमण ले जा रहे हैं, ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में, ऐसे जिलों में जहां पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली (और क्लिनिकल निगरानी) बहुत ही कमजोर है।

इस समय जब सामुदायिक प्रसार देश के बड़े वर्गों या उप-आबादी में पहले से ही अच्छी तरह से स्थापित है यह उम्मीद करना अवास्तविक है कि इस चरण में कोविड-19 महामारी को समाप्त किया जा सकता है। हालांकि इस समय दुनिया में सबको उम्मीद है कि कुछ दवाएं और टीके, होनहार उम्मीदवार की तरह सफल होंगे। पर इस कटु सच को नकारा नहीं जा सकता है कि न तो कोई टीका या प्रभावी उपचार उपलब्ध है न ही ऐसा लगता है कि वे निकट भविष्य में उपलब्ध होंगे।

इस कड़े राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से यही अपेक्षा की जा रही थी कि यह महामारी बहुत ही जल्दी से फैलने की बजाय, धीरे-धीरे और भी विस्तारित अवधि में फैले ताकि स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली पर गहरा प्रभाव न हो और सरकार को समय मिले कि स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था को योजनाबद्ध तरीके से और भी मज़बूत किया जा सके और संक्रमित रोगियों को प्रभावी ढंग से स्वास्थ्य सेवायें प्रदान की जा सकें।

ऐसा लगता है कि हम अब उस स्थिति में हैं जो, सभी को असाधारण असुविधा, अर्थव्यवस्था और आम जनता के जीवन में व्यवधान के साथ और चौथे लॉकडाउन के बाद हासिल की गयी है। हिन्दोस्तान में इस महामारी से मृत्यु की दर अपेक्षाकृत नीचे की तरफ ही रही है और ज्यादातर उच्च जोखिम वाले समूहों (बुजुर्गों की आबादी और पहले से मौजूद गंभीर बीमारियों आदि के साथ) तक ही सीमित है। यह भी सच है कि लॉकडाउन अनिश्चित काल के लिए लागू नहीं किया जा सकता। कहीं ऐसा न हो कि जितनी ज़िंदगियां लॉकडाउन लागू करके कोविड रोगियों को बचाने के उपायों से बचाई जायें, नहीं तो हम इस लॉकडाउन के कारण उत्पन्न परिस्थतियों के कारण उससे कहीं ज्यादा ज़िंदगियाँ खो देंगे। जैसा कि सबको पता है कि इस लॉकडाउन के दुष्परिणाम – नियमित स्वास्थ्य सेवाओं का बंद होना और देश के गरीबों में से अधिकांश की आजीविका का छिन जाना, जो हमारी आबादी का लगभग आधा हिस्से हैं। इनसे भी लाखों लोगों के जीवन ख़तरे में हैं।

हिन्दोस्तान में राज्य और जिला स्तर पर, इस समय महामारी को नियंत्रित करने के लिए प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप और उपाय उपलब्ध हैं। इन उपायों को लागू किया जाना चाहिए परन्तु इसके साथ ही ग़रीबों और हाशिए पर बैठे लोगों की आजीविका के लिए उपयुक्त प्रावधान सुनिश्चित करना भी सरकार का फर्ज़ है। इसके साथ ही, सभी के लिए स्वास्थ्य देखभाल का प्रावधान, विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं और पुराने रोगों से पीड़ित लोगों के लिए चिकित्सा पर ध्यान देने की आवश्यकता वाली स्थितियां और आपात स्थिति से ग्रस्त रोगियों को, उचित सुविधाएं प्रदान करवाना भी उतना ही ज़रूरी है।

सिफारिशें
सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षाविदों, चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के एक बहुत व्यापक समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए, हिन्दोस्तान में हम सर्वव्यापी महामारी कोविड-19 के दौरान निम्नलिखित 11 सूत्रीय कार्य योजना पर विचार करने की सलाह देते हैं:
  1. सार्वजनिक स्वास्थ्य और और मानवतावादी संकट, दोनों को संबोधित करने के लिए केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर सामाजिक, वैज्ञानिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य और निवारक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक पैनल का गठन।
  2. एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आयोग का गठन और सार्वजनिक क्षेत्र में इस महामारी से जुड़े सभी जानकारी और आंकड़ों का मुफ्त सांझाकरण : इस महामारी से संबंधित परीक्षा परिणाम सहित सभी आंकडों को बिना नाम के साथ सार्वजनिक क्षेत्र में अनुसंधान समुदाय (नैदानिक, प्रयोगशाला, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक विज्ञान से जुड़े हुए वैज्ञानिकों) के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए जिससे वे इस डाटा का विश्लेषण करके, तुरंत महामारी को नियंत्रित करने के लिए, संदर्भ-विशिष्ट समाधानों को ढूंढ निकालने में सक्षम हों और वे उन उपायों को सभी के साथ सांझा करें। कार्य- विशिष्ट कार्य समूहों के साथ एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आयोग का तत्काल गठन होना चाहिए जो सरकार को समय-समय पर तकनीकी सलाह दे सके। इस समय दोनों केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्ध कराने में पारदर्शिता का अभाव है और इसलिए अब तक के आंकड़े जो स्वतंत्र शोध और महामारी से लड़ने के लिए उचित उपायों को ढूंढ निकालने के लिए एक बहुत ही ज़रूरी शर्त है, इस समय इनका अभाव सभी वैज्ञानिकों और शोध कर्मियों के रास्ते में एक गंभीर रुकावट है।
  3. लॉकडाउन को हटा कर अब निर्देशों को समूह (क्लस्टर) प्रतिबंधों में बदलें : जारी देशव्यापी लॉकडाउन को हटाने और समूह निर्दिष्ट प्रतिबंधों को प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता है (महामारी विज्ञान के अनुसार मूल्यांकन के आधार पर) वर्तमान परिस्तिथियों में महामारी के नियंत्रण के लिए देश में उचित मापदंड और लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए और इस हक़ीक़त को भी ध्यान में रखते हुए कि कोविड पॉजिटिव मामलों की दूसरी लहर भी संभव है। लॉकडाउन का आधार और लक्ष्य, देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की तैयारी और उसमें मज़बूती लाना है। सरकार को इस संबंध में स्पष्ट निगरानी योग्य, उपयुक्त मानक प्रस्थापित करने की ज़रूरत है।
  4. सभी नियमित स्वास्थ्य सेवाओं को फिर से शुरू करना : यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है कि सभी नियमित चिकित्सा सेवाओं (प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक) और देखभाल के सभी स्तरों पर स्वास्थ्य सेवाएं तुरंत शुरू की जायें और इस वादे के साथ कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े सभी स्वास्थयकर्मियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उचित उपायों का पूरा इंतजाम किया जायेगा। पर्याप्त सबूत सामने आए हैं कि नियमित रूप से बीमार, रोगियों के लिए नियमित स्वास्थ्य सेवाओं के ठप्प होने के कारण, जिन लोगों की जानलेवा बीमारियों जैसे मायोकार्डिअल इन्फरक्तिओन (हृदय का दौरा) और स्ट्रोक, पुरानी संक्रामक बीमारी जैसे टी.बी. और टीकाकरण समय पर न होने के कारण, जो मौतें हुई हैं उनकी संख्या कोविड से संक्रमित मौतों से कहीं ज्यादा है। यह बहुत ही ख़तरनाक स्थिति है। नियमित स्वास्थ्य सेवाएं ठप्प होने की वजह से मरने वालों की संख्या, आने वाले दिनों में और भी अधिक हो सकती हैं।
  5. सार्वजनिक जागरुकता बढ़ाने और इसके अभ्यास के माध्यम से करोना के स्रोत में कमी के उपाय और नियमित निवारक उपाय : कोरोना वायरस के नियंत्रण के लिए सबसे प्रभावी रणनीति, संक्रमण फैलने के सभी चरणों के दौरान प्रसार के स्रोत में कमी करने की रणनीति है। फेस मास्क (घर का बना और अन्य) का सार्वभौमिक उपयोग, हाथ की सफाई (साबुन और पानी से धोना और या हैण्ड सेनेटाइज़र का उपयोग) और खांसने का सही तरीका, इन सभी जाने-माने उपायों को जन जीवन में लागू करने के अनुशासन पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ उन सब का विशेष ध्यान रखना जो उच्च जोखिम वाली जनसंख्या में आते हैं।
  6. सामाजिक सौहार्द के साथ, न्यूनतम शारीरिक दूरी सुनिश्चित करें, कोविड संक्रमित लोगों पर सामाजिक लांछन लगाने की ख़तरनाक आदत से बचें : करोना संक्रमण के प्रसार को धीमा करने के लिए, दो व्यक्तियों के बीच में न्यूनतम दूरी रखने के मापदंडों का अभ्यास करने की आवश्यकता है। लेकिन इसके साथ-साथ कोविड और लॉकडाउन से जुड़ी चिंताओं से लड़ने के लिए, मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत करने के लिए सामाजिक सौहार्द बढ़ाने जैसे उपायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। सामाजिक लांछन लगाने और लोगों के प्रति भेदभाव करने की प्रवृति और प्रथा, विशिष्ट जनसंख्या समूहों (जैसे धार्मिक समूह या वापस जाने वाले प्रवासियों) के साथ जुड़ा हुआ है, भले ही उन समूहों में हर कोई विशेष रूप से करोना संक्रमित भी नहीं है। यहां तक कि कोविड संक्रमण के कारण अलग रहने की अवधि ख़त्म होने के बाद भी उस व्यक्ति के साथ भेदभाव होता है। यह ख़तरनाक है। सरकारों, मीडिया और स्थानीय संगठनों को लोगों को जागरुक करके और सक्रिय करने की आवश्यकता है जिससे कि लोग कोविड-19 से संक्रमित लोगों के साथ सहानुभूति और सम्मान से पेश आये।
  7. प्रहरी और सक्रिय निगरानी : इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों (आई.एल.आई.) और श्वसन संबंधी बीमारियों (एस.ए.आर.आई.), के बारे में आशा/ए.एन.एम./एम.पी.डब्ल्यू द्वारा व्यापक निगरानी की सख़्त ज़रूरत है। चिकित्सा संस्थानों (निजी अस्पतालों सहित) के माध्यम से इस तरह की बीमारियों के फैलने का पता लगाने के लिए और भौगोलिक और स्थानीय क्लस्टरिंग की पहचान करने के लिए दैनिक रिपोर्टिंग (हॉट स्पॉट/क्लस्टर इवेंट) आदि उपायों की व्यवस्था करने की ज़रूरत है। ये सब क़दम, महामारी में प्रशिक्षित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा समर्थित होना चाहिएं जो स्थानीय मेडिकल कॉलेज और सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों से जुड़े हुए हैं। भविष्य में, पहले से मौजूद एच.आई.वी. सीरोलॉजिकल सर्विलांस प्लेटफॉर्म, सीरोलॉजिकल सर्विलांस करने का एक किफ़ायती तरीक़ा हो सकता है जिससे स्थानीय निगरानी और बीमारी का बोझ और प्रवृत्ति का अनुमान, वैक्सीन की ज़रूरतों और अन्य निवारक रणनीतियों के प्रभाव जैसे कई क़दमों के बारे में इस प्लेटफार्म के द्वारा आंकड़ा इकट्ठा किया जा सकता है।
  8. परीक्षण, ट्रैक और उनको अलग रखने के उपाय के लिए, डायग्नोस्टिक सुविधाओं की स्केलिंग : हालांकि हिन्दोस्तान में जांच दर में काफी वृद्धि हुई है। फिर भी कुछ राज्यों में काफी कम टेस्टिंग हो रही है जनसंख्या मानकों पर आधारित मानक (जैसे कि हर हज़ार लोगों के लिए प्रतिदिन, इतने टेस्ट करने का मापदंड), इस महामारी से लोगों की सुरक्षा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। कुछ राज्यों में टेस्टिंग करने की संख्या बहुत कम है। हर दिन जांच की संख्या के लिए एक मानक स्थापित करना और टेस्ट के नतीजे मिलने की अवधि को कम करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सरकारों को निजी प्रयोगशालाओं में निःशुल्क परीक्षण का समर्थन करने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे (संभावित) संपर्कों की संख्या के साथ-साथ वापस जाने वाले प्रवासियों की संख्या देशभर में तेज़ी से बढ़ती जा रही है, होम क्वारनटाइन की ज़रूरत है और उसका प्रचार करने की ज़रूरत है। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि होम क्वारनटाइन के सभी नियमों का सही पालन किया जाये और इसमें स्थानीय समुदाय और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी और सहयोग आवश्यक है।
  9. आई.सी.यू. में देखभाल क्षमता को मज़बूत करना : गहन देखभाल और निगरानी के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित और पर्याप्त रूप से संरक्षित, स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की ज़रूरत है। कुछ नयी जानकारी के अनुसार, कोरोना संक्रमित लक्षण सहित रोगियों और एस.ए.आर.आई. केसेस में ऑक्सीजन और अन्य सहायक उपायों के द्वारा इस बीमारी से ग्रस्त लोगो को प्रभावी ढंग से संभाला जा सकता है। महाराष्ट्र के मुंबई में जुगाड़ू (फेंगकेंग) अस्पताल पहले से ही स्थापित किए जा रहे हैं और हिन्दोस्तान के अन्य शहरों में भी इस तरह के अस्पताल बनाने की ज़रूरत पड़ सकती है क्योकि कोविड पॉजिटिव मामले लगातार बढ़ रहे हैं और इन सब रोगियों की उचित चिकित्सा और देखभाल के लिए अस्पताल और उचित स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ेगी।
  10. अग्रिम स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए ज़रूरी पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) : कोविड-19 का अस्पताल में संक्रमण, स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों (एच.सी.पी.) की सुरक्षा और मनोबल को प्रभावित करने वाली, एक गंभीर चुनौती है। यह भी सच है कि स्वस्थ्य कर्मचारी भी अगर संक्रमित हो जाते हैं और उनको इसका पता तक नहीं है तो वे भी संक्रमण प्रवर्धन और उसके विस्तार के महत्वपूर्ण साधन बतौर “सुपर-स्प्रेडर्स” बन सकते हैं। स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों (एच.सी.पी.) में आत्मविश्वास स्थापित करने के लिए, उनको उपयुक्त पी.पी.ई. की सुविधा की जानी चाहिए और उनको लम्बी ड्यूटी से उत्पन्न, या तो थकान या संक्रमण के कारण क्वारंटाइन करने के लिए छुट्टी लेने की ज़रूरत आदि की संभावनाओं का एक ही उपाय है कि उनको डयूटी करने के लिए वैकल्पिक टीमों को तैयार रहना चाहिए। हिन्दोस्तान ने अब पी.पी.ई. का उत्पादन करने की क्षमता देश में बढ़ा दी है और उत्पादन में तेजी लाने के लिए, इसे जारी रखना चाहिए।
  11. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली/संस्थानों/अनुशासन को मज़बूत करना : ऐतिहासिक तौर पर देखा जाये तो देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को एक महत्वपूर्ण पेशे बतौर सम्मान नहीं मिला है और उसकी नियमित तौर पर उपेक्षा की गयी है। और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों की देश की नीति निर्माण प्रक्रिया और रणनीति तैयार करने में गैर-भागीदारी का दुष्परिणाम हमारे सामने है विशेष रूप से वर्तमान महामारी के संकट के समय में। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं (चिकित्सा सहित देखभाल) में तेज़ी से वृद्धि – दोनों सेवाएं और अनुसंधान के क्षेत्रों में – युद्धस्तर पर किया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की 5 प्रतिशत की धन राशि, स्वास्थ्य पर व्यय के लिए, निर्धारित की जानी चाहिए।

हम इस नोट का अंत एक सकारात्मक लेकिन सतर्क बिंदु पर करते हैं। साक्ष्य-आधारित वैज्ञानिक और मानवतावादी नीतियां ही मानव जीवन, सामाजिक संरचनाओं और अर्थव्यवस्था में कम से कम नुकसान के साथ, इस आपदा पर काबू पाने में हमारी मदद करेंगी। प्रकृति ने एक बार फिर से हमें इस व्यापक ब्रह्मांड में हमारी कठिन परिस्थितियों की याद दिला दी है। यह समय है कि मानव जाति, प्रकृति की इस चेतावनी के संकेतों पर ध्यान दे और इस तरह की आपदा फिर न दोहराए उसके लिए तुरंत जो भी क़दम उठाने चाहिएं उन पर तत्काल उचित प्रयत्न की शुरुआत की जाये। “वसुधैव कुटुम्बकम’” (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत पर आधारित दुनिया के सभी मनुष्यों और अन्य प्राणियों के बीच आवश्यक सामंजस्य सुनिश्चित करना और “वन वर्ल्ड वन हेल्थ” (एक दुनिया समान स्वास्थ्य सेवा) का दृष्टिकोण, सभी नीति निर्माण प्रक्रिया और रणनीति तैयार करने के केंद्र बिंदु में होना चाहिए। सभी का सम्मान और ध्यान रखना, चाहे वे जीवित प्राणी और या निर्जीव प्राणी हों, कोविड-19 के बाद की दुनिया में आगे बढ़ने का यही एक मात्र रास्ता है। यदि हम, एक ऐसी त्रासदी जो एक सदी में केवल एक बार आयी है और जिसने मानवीय और स्वास्थ्य संकट के साथ, दुनिया में इस स्तर पर तबाही मचा दी है, कि उसका सही मूल्याकंन करके और सही सबक सीख कर, अपने जीवन और कार्य शैली में विशेष रूप से स्वास्थ्य नीति निर्माण में, तुरंत कुछ मूलभूत परिवर्तनों को नहीं लाते हैं। तो हमारा भविष्य बहुत ही दर्दनाक होगा क्योंकि इस वर्तमान महामारी की तरह की आपदा फिर से और शायद और भी जल्दी आयेगी और हमको अपनी लापरवाही की बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

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