लोको रनिंग स्टाफ का विरोध कार्यक्रम
आल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसियेशन की अगुवाई में भारतीय रेल के रेल चालक अपनी मांगों को लेकर 15 से लेकर 19 जून तक विरोध कार्यक्रम आयोजित करेंगे।
5 दिनों तक चलने वाले इस विरोध कार्यक्रम के दौरान रेल चालक काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। साथ ही साथ लोको लाबियों पर प्रदर्शन आयोजित किये जाएंगे। 19 जून को मंडल रेल प्रबंधक (डी.ए.एम.) के कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन करके ज्ञापन दिया जाएगा।
आल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसियेशन की मांग है कि:
- श्रम कानूनों में श्रमिक-विरोधी संशोधन बंद किये जाएं।
- मंहगाई भत्ता वृद्धि पर रोक का आदेश रद्द किया जाए।
- लाकडाउन, मासिक वेतन में स्पेयर दिनों का रनिंग भत्ता दिया जाए।
- अवकाश वापसी में फंसे रनिंग स्टाफ को अवकाश भत्ता दिया जाए।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार के अनुसार, कार्यस्थल, लोको कैब व रनिंग रूम में कोरोना संक्रमण से बचाव के उपाय सुनिश्चित किये जाएं।
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नई दिल्ली लाॅबी | रतलाम लाॅबी |
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सहारनपुर लाॅबी | गाजियाबाद लाॅबी |
डाक्टरों को तीन महीने से वेतन नहीं!
डाक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मचारियों, शिक्षकों, शहर को साफ रखने और उसका रख-रखाव करने वाले कर्मचारियों, आदि पर सरकार की ओर से दबाव है कि वे वेतन पाने के अपने अधिकार सहित, अपनी अन्य ज़रूरी मांगों के लिए आंदोलन न करें, क्योंकि उनकी सेवाएं ‘ज़रूरी सेवा’ की श्रेणी में आती हैं।
नई दिल्ली के दरियागंज स्थित कस्तूरबा गांधी अस्पताल के रेसिडेंट डाक्टर्स एसोसियेशन ने कहा है कि अगर 16 जून तक उनका वेतन नहीं मिला तो सभी डाक्टर सामूहिक रूप से इस्तीफा दे देंगे।
यह अस्पताल उत्तरी दिल्ली नगर-निगम के तहत आता है। बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल, महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल, गिरधारी लाल मातृत्व अस्पताल और राजन बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड तपेदिक जैसे अस्पताल भी उत्तरी दिल्ली नगर-निगम के अंतर्गत आते हैं।
इन सभी अस्पतालों में कम से कम 1,000 वरिष्ठ डॉक्टर, 500 रेजिडेंट डॉक्टर और 1,500 नर्सिंग ऑफिसर कार्यरत हैं। उत्तरी नगर-निगम के तहत आने वाले अस्पतालों में काम करने वाले जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर, नर्सिंग ऑफिसर और कुछ अन्य मेडिकल स्टाफ को फरवरी के लिए अंतिम वेतन दिया गया था।
कस्तूरबा गांधी अस्पताल के रेसिडेंट डाक्टर्स एसोसियेशन ने उच्च अधिकारियों को बकाए वेतन को लेकर नोटिस में लिखा है कि उन्हें मार्च (2020) से वेतन नहीं मिला है। यहां तक कि वे घर का किराया देने की स्थिति में नहीं हैं।
वे लिखते हैं कि आज वे खुद और अपने परिवार की जान को जोखिम में डालकर निरंतर कोविड-19 महामारी के खि़लाफ़ लड़ रहे हैं। वे कोविड-19 फ्रंटलाईन के योद्धा हैं, लेकिन बिना वेतन काम नहीं कर सकते हैं।
अस्पतालों में डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों को वेतन न देने का यह मामला पहली बार नहीं है। हरेक साल ऐसा होता है। जून 2015, फिर मई 2017 और फिर से मई 2019 में लगातार 2-3 महीनों के लिए वेतन रोक दिया जाता रहा है। सिर्फ इसी अस्पताल में कार्यरत डाक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मी भुक्तभोगी नहीं हैं। बल्कि नगर-निगम में काम करने वाले अन्य शिक्षक, सफाई कर्मचारी, पेरा-मेडिकल स्टाफ, इंजीनियरिंग, बागवानी मज़दूर भी शामिल हैं।