मारूती-सुजुकी के मजदूर नेता के साथ साक्षात्कार:

11 जून, 2011 को मारूती सुजुकी के मजदूरों की टूल डाउन हड़ताल, जो 4 जून की दोपहर को शुरू हुई थी, ने अपना आठवां दिन पूरा किया। मजदूर एकता लहर के संवाददाता ने हड़ताली मजदूरों के नेता से बातचीत की। यहां हम साक्षात्कार के कुछ अंश प्रकाशित कर रहे हैं।

11 जून, 2011 को मारूती सुजुकी के मजदूरों की टूल डाउन हड़ताल, जो 4 जून की दोपहर को शुरू हुई थी, ने अपना आठवां दिन पूरा किया। मजदूर एकता लहर के संवाददाता ने हड़ताली मजदूरों के नेता से बातचीत की। यहां हम साक्षात्कार के कुछ अंश प्रकाशित कर रहे हैं।

मएल: आप हड़ताल पर क्यों गए?

मजदूर नेता: हम मारूती-सुजुकी के मजदूर बहुत ही कठोर हालतों में काम करने को मजबूर हैं। मैनेजमेंट हमारा खूब शोषण करता है। मौजूदे यूनियन ने कभी भी मजदूरों के हितों की हिफाज़त नहीं की और इन कठोर हालतों के खिलाफ़ कभी आवाज़ नहीं उठाई। उसने मैनेजमेंट की सांठगांठ में काम किया। इन हालतों में हम मजदूरों ने फैसला किया कि हम एक ऐसा यूनियन बनायेंगे जो हमारे हितों के लिये लड़ेगा।

11 मजदूर नेता 3 जून, 2011 को हमारे यूनियन के पंजीकरण से संबंधित कार्यवाही को पूरा करने के लिये श्रम विभाग से मिलने के उद्देश्य से चंडीगढ़ गये। उसी दिन सुबह श्रम विभाग के अफसरों ने हमारे यूनियन के पंजीकरण की अर्जी की सूचना मैनेजमेंट को फैक्स द्वारा भेज दिया। मैनेजमेंट ने फौरन फैक्ट्री में काम कर रहे मजदूरों को नये यूनियन में जुड़ने से रोकने के लिये, उन पर दबाव डालना शुरू कर दिया। मजदूरों को कोरे कागज पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया गया। एक और मारूती-सुजुकी प्लांट के वरिष्ठ अफसर भी इस काम में लग गये।

जैसे ही हमारे यूनियन के नेताओं को इसके बारे में पता चला, हमने मजदूरों को इसके खिलाफ़ लामबंध किया। 4 जून, 2011 की सुबह को हम संघर्ष करके मैनेजमेंट से कुछ हस्ताक्षर वाले कागज ले पाये। दोपहर तक यह स्पष्ट हो गया कि मैनेजमेंट हमारी एकता तोड़ने के लिये तरह-तरह की चालें चल रहा था। इन हालतों में हम 4 जून, 2011 के दोपहर से अचानक टूल डाउन हड़ताल पर जाने को मजबूर हुए।

मएल: क्या आप यह कहना चाहते हैं कि मैनेजमेंट ने मजदूरों को हड़ताल पर जाने को मजबूर किया है?

मजदूर नेता: हां। अगर कंपनी ने हमारे यूनियन को मान्यता दी होती और हमारी मांगों पर बातचीत शुरू करती तो हड़ताल नहीं होती। परंतु मैनेजमेंट ने शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाया है। पहले तो उन्होंने हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश की। इसके फौरन बाद उसने हमारे यूनियन के 11 नेताओं को निलंबित कर दिया। हमने अपनी एकता दर्शाने के लिये और लाक आउट रोकने के लिये फैक्ट्री परिसर के अंदर रहकर हड़ताल करने का फैसला किया। बीते आठ दिनों से 2000 से अधिक मजदूर फैक्ट्री के अंदर हैं। मैनेजमेंट ने फैक्ट्री गेट पर मजदूरों के आने-जाने पर रोक लगाने के लिये बाउंसर खड़ा कर रखा है। इस तरह अंदर के मजदूर फैक्ट्री से बाहर नहीं जा सकते। मैनेजमेंट ने बिजली और पानी की सप्लाई को काट रखा है और कैंटीन को बंद कर दिया है ताकि हमें तड़पाकर घुटनों पर ला सके।

मएलः क्या आप काम की हालतों का विवरण दे सकते हैं?

मजदूर नेता: हमें ठीक 30 मिनट का लंच ब्रेक और ठीक 5मिनट का चाय का ब्रेक मिलता है। कैंटीन काम की जगह से 400 मीटर दूर है। 30 मिनट के अंदर हमें अपने कपड़े और गोगल्स उतारकर, कैंटीन जाकर, लाईन में लगकर खाना लेना पड़ता है, फिर जल्दी-जल्दी खाना खाकर, शौचालय जाकर, फिर से कपड़े और गोगल्स पहनकर काम शुरू करना पड़ता है। कैंटीन में लाईन लंबी होती है क्योंकि सभी मजदूरों को एक ही साथ अवकाश मिलता है। अगर काम पर वापस आने में 1 मिनट भी देर होती है तो हमारे वेतन से 1000-1500 रुपये काट लिये जाते हैं। यह सोचिये, 5मिनट के चाय के अवकाश के अंदर हमें चाय और स्नैक्स लेकर फिर से काम शुरू करना पड़ता है। बीच में शौचालय जाने का भी अवकाश नहीं दिया जाता।

हममें से जो मजदूर कंपनी की बस को इस्तेमाल करते हैं, उन्हें गुड़गांव से फैक्ट्री के लिये प्रतिमाह 600 रुपये देने पड़ते हैं और मानेसर से फैक्ट्री के लिये प्रतिमाह 300 रुपये देने पड़ते हैं। जबकि होंडा, हीरो होंडा और दूसरी कंपनियों के मजदूरों को दिल्ली से यहां पहुंचने के लिये कंपनी बस को प्रतिमाह 100-180 रुपये देने पड़ते हैं।

दूसरी ऑटो फैक्ट्रियों के मजदूरों की तुलना में हमारे वेतन बहुत कम हैं। यहां स्थायी मजदूरों को प्रतिमाह 17,500 से 19,000 रुपये वेतन मिलते हैं। जबकि होंडा और हीरो होंडा के मजदूरों को प्रतिमाह 30,000 से 40,000 रुपये मिलते हैं। हमारे प्रबंधक यह दावा कर रहे हैं कि प्रतिदिन की हड़ताल से 40 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इससे पता चलता है कि वे प्रतिदिन हमारे खून-पसीने से कितना मुनाफा कमाते हैं। फिर भी वे हमारे वेतन बढ़ाने को तैयार नहीं हैं।

इसके बजाय, उन्होंने एक पी.पी.आर.एस. योजना चलाया है। इस योजना के अनुसार, हमारे वेतन का बहुत बड़ा भाग “काम की उत्पादकता“ से जुड़ा हुआ है। अगर हम किसी वजह से योजनाबद्ध छुट्टी लेते हैं, तो हमारे वेतन से 1500 रुपये काट लिया जाता है। अगर हम किसी वजह से अचानक छुट्टी लेते हैं (जैसे कि बीमारी हो या कोई पारिवारिक समस्या) तो हमारे वेतन से 1700 रुपये काट लिये जाते हैं। अगर महीने में 5 ऐसी छुट्टियां लेनी पड़े तो 8000-9000 रुपये का घाटा होता है। हमें सालाना अवकाश, बीमारी अवकाश और कैजुअल छुट्टी मिलनी चाहिए परंतु इस योजना के तहत हमें कुछ नहीं मिलता।

मएल: इस प्लांट में कितने मजदूर काम करते हैं?

मजदूर नेता: यहां 1000 से 1200 स्थायी मजदूर हैं। इसके अलावा, 400-500 प्रशिक्षु मजदूर, 400 अप्रेंटिस और लगभग 1000-1200 केजुअल मजदूर हैं। पूरी फैक्ट्री में 3000 से अधिक मजदूर हैं।

यहां के अप्रेंटिस आईटीआई के छात्र हैं। उन्हें सरकारी नियमों के अनुसार प्रतिमाह 3,500 से 4,000 रुपये मिलते हैं। प्रशिक्षु मजदूर कंपनी द्वारा भर्ती किये जाते हैं और उन्हें तीन साल का कोर्स पूरा करके, एक परीक्षा देकर फिर नौकरी पर रखा जाता है। पहले साल में उन्हें टैक्नीकल टैक्नीशियन-1 (टीटी-1), दूसरे साल में टीटी-2 और तीसरे साल में टीटी-3 कहा जाता है। टीटी-1 को 8,000 रुपये, टीटी-2 को 9000 रुपये और टीटी-3 को 10,000-11,000 रुपये मिलते हैं।

कैजुअल मजदूर भी आईटीआई से प्रशिक्षित मजदूर हैं। उन्हें प्रतिमाह 6,000-6,500 रुपये मिलता है। कैजुअल मजदूरों के लिये भी एक दिन की छुट्टी के लिये वेतन से 1,200 रुपये काट लिये जाते हैं।

मएल: 8दिन की हड़ताल के बाद मजदूरों की कैसी मनोभावना है?

मजदूर नेता: हमारी मनोभावना बहुत लड़ाकू है क्योंकि हम अपने अधिकारों और इंसाफ के लिये लड़ रहे हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, सभी मजदूर एकजुट हैं। फैक्ट्री के अंदर इतने लंबे समय तक बंद रहना आसान नहीं है। परंतु हम अपनी जीत तक लड़ने को तैयार हैं। हम अपने यूनियन की मान्यता चाहते हैं। हम लिखित में आश्वासन चाहते हैं कि सभी 11 निलंबित नेताओं को वापस लिया जायेगा और उन पर कोई उत्पीड़न नहीं होगा। हड़ताल की अवधि के लिये वेतन नहीं कटना चाहिए। कंपनी को प्रतिदिन जो 40 करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है, उसके लिये मैनेजमेंट की हरकतें जिम्मेदार हैं और हम उसका भार नहीं उठायेंगे।

मैनेजमेंट हूडा सरकार के जरिये हमारे ऊपर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। पिछली रात को हूडा सरकार ने हमारी हड़ताल को ”गैरकानूनी“ करार दिया है। हम इस दबाव में नहीं आयेंगे। कंपनी पर बहुत से डीलरों तथा पुर्जों के सप्लायरों से भी दबाव है कि हमारे साथ बातचीत करके हड़ताल को जल्दी से समाप्त करें क्योंकि उन सभी को भी नुकसान हो रहा है। सबसे अहम बात यह है कि गुड़गांव-मानेसर क्षेत्र की दूसरी फैक्ट्रियों के मजदूरों से, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी और मजदूर एकता लहर से हमें जो समर्थन मिला है, उससे हमारी ताकत काफी बढ़ गयी है।

आपने देखा कि 9 जून, 2011 को 56 से अधिक फैक्ट्रियों के हजारों मजदूरों ने अपना भाईचारा दर्शाने के लिये धरने में भाग लिया। कल शाम को इस इलाके के ट्रेड यूनियनों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी, जिसने उस धरने को आयोजित किया था, ने हमें बताया कि इस क्षेत्र के सभी यूनियनों ने अपने-अपने प्रबंधकों को पत्र लिखा है कि अगर 2 दिन के अंदर हमारे साथ समझौता नहीं होता है तो वे सभी और कार्यवाहियां तथा पूरे मानेसर में बंद आयोजित करने को मजबूर होंगे।

मएल: हमारे साथ बातचीत करने के लिये धन्यवाद। हम आपके संघर्ष की सफलता की कामना करते हैं।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *