तेज़ी से बढ़ते हवाई यात्रा उद्योग से अधिकतम मुनाफे कमाने की संभावना से आकर्षित होकर, देशी और विदेशी बड़ी-बड़ी निजी इजारेदार कंपनियां इस क्षेत्र पर हावी होने के लिये आपस में लड़ रही हैं। एयर इंडिया को दिवालिया बनाकर उसका निजीकरण करना इस खेल का एक हिस्सा है।
तेज़ी से बढ़ते हवाई यात्रा उद्योग से अधिकतम मुनाफे कमाने की संभावना से आकर्षित होकर, देशी और विदेशी बड़ी-बड़ी निजी इजारेदार कंपनियां इस क्षेत्र पर हावी होने के लिये आपस में लड़ रही हैं। एयर इंडिया को दिवालिया बनाकर उसका निजीकरण करना इस खेल का एक हिस्सा है।
मार्च 2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलयन करके नैशनल एवियेशन कंपनी आफ़ इंडिया (नासिल) नामक कंपनी बनाना निजीकरण की तैयारी करने का कदम था। इंडियन एयरलाइंस के मजदूरों के सख्त विरोध के बावजूद, तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री ने यह विलयन करवाया था। इस विलयन की जांच करने वाली संसदीय समिति ने 2010 में अपनी रिपोर्ट में यह ऐलान किया कि यह “दो असंगत व्यक्तियों का मेल है” । संसदीय समिति ने राजकीय कंपनी को नुकसान पहुंचाने के लिये जिम्मेदार संस्थानों व व्यक्तियों के खिलाफ़ कार्यवाही की मांग की। यह बताने की शायद कोई जरूरत नहीं है कि इस फैसले के लिये जिम्मेदार किसी भी संस्थान या व्यक्ति के खिलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की गई।
विलयन के साथ-साथ, कई ऐसे कदम उठाए गए हैं यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह नयी कंपनी नुकसान में जायेगी ताकि इसे बांटकर नष्ट किया जाये और इसका निजीकरण किया जाये।
एयर इंडिया के विमानों की संख्या बहुत बढ़ा दी गयी। यह बोईंग कंपनी को संकट से बचाने और एयर इंडिया को संकट में डालने के लिए किया गया। एयर इंडिया के विमानों की खरीदी की योजना को 24 से 68 तक बढ़ा दिया गया। विशाल तथा बहुत गैस खाने वाले बोईंग 777 और 787 आर्डर किये गए, जो सिर्फ लम्बी उड़ानों के लिए ही इस्तेमाल हो सकते थे। विदेशी एयरलाइन कंपनियों के साथ दुतरफा समझौते किये गए, जिनमें उन्हें हिन्दोस्तानी बाज़ार का बहुत बड़ा हिस्सा सौंपा गया। विदेशी एयरलाइन कंपनियों को देश में अनेक ऐसे हवाई मार्गों पर उड़ान करने दिया गया जिनसे एयर इंडिया हट गयी। खास तौर पर, एयर अरेबिया और एयर लुफ्थांसा को हिन्दोस्तान के हवाई मार्गों में बहुत ज्यादा इजाज़त दी गयी। इस तरह, नए विमानों की खरीदी से तथा अन्तर्राष्ट्रीय मार्गों में विदेशी एयरलाइन कंपनियों को बाज़ार का बहुत बड़ा हिस्सा सौंपकर, विलयित कंपनी को भारी नुकसान में डाल दिया गया। अन्तर्राष्ट्रीय मार्गों पर चुनिन्दा निजी एयरलाइन कंपनियों को उड़ान करने दिया गया, पहले जेट और फिर किंगफिशर, जो एयर इंडिया के साथ स्पर्धा करने लगे और बाज़ार का और ज्यादा हिस्सा हड़पने लगे।
2007 में विलयन के समय, इंडियन एयरलाइंस हिन्दोस्तान में सर्वोच्च स्थान पर था, उसका सबसे ऊंचा बाज़ार का हिस्सा था, 21.4 प्रतिशत। 2007 में उसकी 10 लाख सवारी ले जाने की क्षमता थी। तीन साल बाद वह तीसरे स्थान पर आ गयी, जेट और किंगफिशर के पीछे। जनवरी-जुलाई 2007 के दौरान उसने प्रति माह लगभग 6लाख सवारियों की उड़ान की। यह इस बात के बावजूद कि इस दौरान एयरलाइन यातायात बाज़ार में खूब वृद्धि हुयी। इस तरह इंडियन एयरलाइंस को नुकसान में डाला गया।
इंडियन एयरलाइंस पश्चिमी एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में उड़ान करती थी। इन क्षेत्रों में उसका बहुत बड़ा बाज़ार का हिस्सा था और उसकी उड़ानें भर-भर कर चलती थीं। इंडियन एयरलाइंस की इस शाखा को हटा दिया गया और एयर इंडिया एक्सप्रेस नामक एक नयी यूनिट को बनाया गया, जिसमें कोई फस्र्ट क्लास या बिजनेस क्लास न था। फ़ौरन सवारी इंडियन एयर लाइंस से हटकर जेट और दूसरी एयर लाइन कंपनियों में चले गए। इंडियन एयर लाइंस की अन्तर्राष्ट्रीय शाखा को काटने का काम जानबूझकर किया गया ताकि प्रतिस्पर्धी देशी-विदेशी निजी एयर लाइन कंपनियों को लाभ हो।
काफी बड़ी संख्या में विदेशी विमान चालकों को ऊंचे-ऊंचे वेतन देकर रखा गया है, हालांकि हिन्दोस्तानी विमान चालकों की कोई कमी नहीं है। इस तरह, वेतनों पर खर्चे को ऊंचा रखा गया है। यह हिन्दोस्तानी विमान चालकों की मनोभावना पर भी एक हमला है।
80 प्रतिशत से ज्यादा सवारी ले जाने वाले कम से कम 32मुनाफेदार हवाई मार्गों को कैंसल कर दिया गया है। पिछले महीने की हड़ताल के बाद, मैनेजमेंट ने कई और मुनाफेदार क्षेत्रों में उड़ानें कैंसल कर दी हैं, जैसा कि इंडियन कमर्शियल पायलेट्स एसोसियेशन ने बताया है। विभिन्न हवाई मार्गों पर सबसे ज्यादा मुनाफेदार स्थान निजी एयर लाइन कंपनियों को दिया गया है।
इस समय जब गर्मी की छुट्टियों के कारण भारी हवाई उड़ान हो रही है, तो एयर इंडिया ने कई मार्गों पर उड़ान कैंसल कर दिए हैं, यह कहकर कि ईंधन के लिए पैसा नहीं है। यह भी दावा किया गया है कि इन मार्गों पर उड़ान के लिए विमान चालक नहीं हैं। विमान चालकों और कैबिन कर्मियों को खाली बिठा कर रखा गया है। विमान चालक और कर्मी यह मांग कर रहे हैं कि एयर इंडिया ज्यादा उड़ान करे ताकि वे मुनाफ़ा बना सकें और निजी एयर लाइन कंपनियों से स्पर्धा कर सकें। मैनेजमेंट एक तरफ आश्वासन दे रही है कि ऐसा करेगी तो दूसरी तरफ उड़ानों की संख्या घटा रही है। यह एयर इंडिया को दिवालिया बनाने के कदम के सिवाय और क्या है?
राज्य द्वारा चलाई जा रही इंडियन एयर लाइंस देश के पूर्वोत्तर और अन्य भागों में बहुत महत्वपूर्ण सेवा देती रही है, क्योंकि इन मार्गों को निजी एयर लाइन मुनाफेदार नहीं समझते हैं। जब इंडियन एयर लाइंस को खत्म कर दिया जाएगा, तो इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को उड़ान के लिए निजी एयर लाइन कंपनियों को काफी ज्यादा भाड़ा देना पड़ेगा।
इस समय, एयर इंडिया के चालक, कैबिन कर्मी और जमीनी स्टाफ, जो अपने शोषण के खिलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं, दूसरी एयर लाइन कंपनियों के कर्मियों के लिए एक मापदंड और मिसाल हैं। एयर इंडिया के कर्मियों के विरोध संघर्ष की वजह से, दूसरे एयर लाइन कंपनियों के कर्मी भी संघर्ष करने को प्रेरित हुए हैं। मिसाल के तौर पर, जेट एयरवेज के चालक और कैबिन कर्मी अपना यूनियन बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जेट और किंगफिशर के कर्मी जानते हैं कि अगर एयर इंडिया दिवाला हो जाता है और उसका निजीकरण हो जाता है तो अपना संघर्ष भी कमजोर हो जाएगा।
एयर इंडिया को दिवाला कर देने और उसका निजीकरण करने के कदमों के खिलाफ़ एयर इंडिया के कर्मचारी इस समय जो संघर्ष कर रहे हैं, यह अत्यंत जायज़ संघर्ष है और देश के सम्पूर्ण मजदूर वर्ग और मेहनतकश लोगों को इसका समर्थन करना चाहिए।