आइये, एकजुट होकर अपने अधिकारों पर हमलों का जमकर विरोध करें!

मजदूर एकता कमेटी का आह्वान, 18 मई, 2020

मज़दूर साथियों,

कोरोना वैश्विक महामारी के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा घोषित आपातकालीन स्थिति का फायदा उठाकर, पूंजीपति वर्ग हमारे अधिकारों पर अप्रत्याशित हमले कर रहा है।

आज देश में विशाल पैमाने का संकट है। देश व्यापी लॉक डाउन, जिसके दो महीने पूरे होने जा रहे हैं, की वजह से करोड़ों-करोड़ों मज़दूरों ने अपनी नौकरियां और रोजी-रोटी के स्रोत खो बैठे हैं। करोड़ों भूखे और बेरोज़गार मज़दूर, जिनके सर के ऊपर छत भी नहीं है, अब हज़ारों मीलों दूर अपने गाँवों को पहुँचने के लिए, खेतों, जंगलों, रेल की पटरियों और महामार्गों पर चल पड़े हैं। सैकड़ों पुरुष, स्त्री और बच्चे चलते-चलते, भूख, थकान या दुर्घटनाओं के कारण दम तोड़ चुके हैं।

हमारे हुक्मरानों की क्रूरता की कोई सीमा नहीं है। हमारे स्वास्थ्य कर्मी, सफाई कर्मी, यातायात कर्मी और दूसरी आवश्यक सेवाओं के कर्मी अपनी जानों को जोखिम में डालकर, कोरोना वायरस का मुकबाला करने में समाज की सहायता कर रहे हैं। लॉक डाउन की वजह से करोड़ों-करोड़ों मज़दूर, किसान और मेहनतकश अपना रोज़गार खो बैठे हैं। परन्तु हमारे हुक्मरानों के लिए इतना काफी नहीं है। वे अब इस संकट का पूरा बोझ मज़दूर वर्ग पर लादना चाहते हैं।

केंद्र सरकार और राज्य सरकारें लॉक डाउन का फायदा उठाकर, मज़दूर वर्ग के अधिकारों पर सब-तरफा हमला कर रही हैं। वे पूंजीपति वर्ग के इशारे पर ऐसा कर रही हैं। हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों ने हर सरकार से श्रम कानूनों में जो-जो परिवर्तन मांगे थे, वे सभी उन्हें अब चांदी की थाली पर परोस कर दिए जा रहे हैं। परन्तु हम मज़दूरों ने हर सरकार से अपनी रोजी-रोटी और अधिकारों की हिफाज़त में जो-जो परिवर्तन मांगे हैं, उन्हें पूरा-पूरा नज़रन्दाज़ किया गया है।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और कुछ अन्य राज्यों की सरकारों ने ऐसे अध्यादेश जारी किये हैं, जिनके चलते मज़दूरों के कई मौजूदे अधिकार छीने जायेंगे। दस राज्यों की सरकारों ने प्रतिदिन काम के घंटों को 8 से 12 तक बढ़ाने और प्रति हफ्ते काम के घंटों को 48 से 72 तक बढ़ाने के सरकारी आदेश जारी कर दिये हैं।

इसके साथ-साथ, केंद्र सरकार हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों की मांगों को पूरा करने के इरादे से, तरह-तरह के नीतिगत कदमों की घोषणा कर रही है, जैसे कि रक्षा क्षेत्र में एफ.डी.आई. की सीमा बढ़ाना, कई क्षेत्रों में निजीकरण करना और कृषि व्यापार को देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के लिए खोल देना।

हुक्मरान पूंजीपति वर्ग और उसके राजनीतिक प्रतिनिधि यह सोच रहे हैं कि लॉक डाउन करके और राजनीतिक जनसभाओं पर रोक लगाकर, वे मजदूर वर्ग को कुचल सकते हैं। वे सोच रहे हैं की वे बेरोकटोक, हमारे अधिकारों को आसानी से छीन लेंगे। परन्तु यह उनकी गलत फ़हमी है। हम उन्हें अपनी आवाज़ को दबाने नहीं देंगे।

हमारे अधिकारों पर सरकार के हमलों की देश भर के मज़दूरों की खिलाफ़त को प्रकट करने के लिए, केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को सर्व-हिन्द विरोध दिवस आयोजित करने की घोषणा की है।

मज़दूर एकता कमेटी अपने सभी सदस्यों से आह्वान करती है कि देश के हर राज्य में 22 मई को अपने ज़ोरदार विरोध कार्यक्रमों को सफल बनाएं।

दस केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने 15  मई, 2020 को एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसे हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं ।

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