संपादक महोदय,
लगभग 75 साल बीत चुके हैं देश को आज़ाद हुए। जमींदारी, साहूकारी का दौर ख़0त्म हुआ और बैंकों की संख्या और धंधे में बहुत इजाफा हुआ, परन्तु उनका एकमात्र मकसद ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाना था। आज़ादी के बाद भी ग़रीब मजलूमों का शोषण करने की सोच वैसी ही रही बल्कि और तेज़ हुईं; हाँ तौर तरीके ज़रूर बदल गए।
मुंबई के नजदीक भिवंडी शहर में एम.पी.जे. (मूवमेंट फॉर पीस एंड जस्टिस) तथा आसरा जैसे संगठनों ने बैंकों के आचरण के विपरीत एक नई सोच पेश की। उन्होंने दिखा दिया कि बैंकों का नियंत्रण करने वाले हाथ यदि गरीबों के हों और यदि उनका दिल मज़दूरों के झुलसते हुए चेहरों को देखकर पसीजता हो तो बैंकों की मुनाफे़ कमाने की प्रवृत्ति को मोड़कर उसे समाज कल्याण, ग़रीब कल्याण की ओर लगाया जा सकता है। रोटी बैंक जैसे अनोखे बैंक को निर्मित किया गया जिसका एक मात्र उद्देश्य इस महामारी एवं लॉकडाउन में बेरोज़गारों, उनके परिवारों, राष्ट्रीय महामार्ग पर भारी मात्रा में पलायन कर रहे मज़दूरों तक रोटियां पहुंचाना है।
भिवंडी शहर का सीधा संबंध 1857 की आज़ादी की लड़ाई से है। अंग्रेजी राज द्वारा जब भारी पैमाने पर कत्लेआम हुए, गांव के गांव जलाकर उजाड़ दिए गए तब बड़े पैमाने पर जुलाहों ने भिवंडी और मालेगांव जैसे शहरों में शरण ली और वे यहीं बस गए। भिवंडी के कपड़ा उद्योग का दर्दभरा इतिहास है। पहले नोटबंदी, फिर जी.एस.टी. और अब दो महीनों के इस अचानक लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है। बिना कमाई के मज़दूर कारीगरों की हालत बद से बदतर हो गयी है। लाखों करोड़ों की मदद का ढोल पीटने वाली सरकारी योजनाएं उन तक नहीं पहुंची और विवश मज़दूर हजारों किलोमीटर पैदल चलने के लिए कतार में लग गए हैं।
एम.पी.जे. तथा आसरा जैसे संगठनों ने भूखे मज़दूरों के लिए भिवंडीवासियों से अपील की कि जो इस मुश्किल समय में हर रोज 5 से 10 रोटियों का दान कर सकते हैं वे दान करें। भूखों को रोटियां देना ही सबसे बड़ी इबादत होगी, अपने घर यूपी, बिहार, झारखण्ड तथा और भी कई प्रान्तों में जा रहे भूखे मज़दूर भाइयों-बहनों तक रोटी पहुंचाना ही सबसे बड़ी नेकी होगी। 5,000 से अधिक रोटियां हर दिन जमा की जाती हैं। सिर्फ रोटियां ही नहीं अपनी मर्जी से और भी कई व्यंजन, पुलाव, खिचड़ी तथा अन्य कई खाने का सामान लोग जमा कर जाते हैं। जो लोग दान करने के लिए लॉकडाउन के कारण पहुंच नहीं पाते, कॉल करने पर सदस्यों द्वारा उसे इकट्ठा किया जाता है। सैकड़ों की तादाद में जवानों ने इस रोटी बैंक में हिस्सा लिया है ताकि हर एक तक सेवा मुहैया की जा सके।
एम.पी.जे. और आसरा तथा कई अन्य संगठनों ने पहल लेकर अपनी कई टीमें बना रखीं हैं जो एक तरफ रोटियां बैंकों में जमा करने का काम करती हैं तो दूसरी ओर कई टीमें मुंबई नाशिक महामार्ग पर मज़दूरों को रोटियां बांटने का काम करती हैं। रमजान के इस महीने में रोटी बैंक का काम करते करते ज़रूर थक जाते हैं परन्तु जोश कम नहीं होता।
मन में गुस्सा भी है कि इस केंद्र सरकार ने सिर्फ चंद घरानों के प्रति ही अपनी वफादारी दिखाई है। चिकनी-चुपड़ी बातें, लुभावने आंकड़ों की घोषणा और फिर छल के अलावा पिछले पचास दिनों से भिवंडी में कोई राहत का सामान सरकार की तरफ से नहीं पहुंचा है। सिर्फ लोगों ने ही लोगों को सहारा दिया है। एक कंधे ने दूसरे मजबूर कंधे को झुकने से बचाया है। गालों पर सूख कर निशान बन चुके आंसुओं को उन्होंने ही ढांढस बंधाया है। सिसकते होठों पर हल्की मुस्कान लाने की उन्होंने ही एक नाकाम कोशिश की है। राज्य ने तो सिर्फ कपट किया है और मज़दूरों पर लाठियां बरसायी हैं।
यह रोटी बैंक और लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने यही इस रमजान के पाक महीने में हमारी दुआ है।
मुदस्सिर, एक पांच वक्त का नमाजी
भिवंडी, महाराष्ट्र