हरियाणा के किसान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ एकजुट हुए

संप्रग सरकार संसद के वर्षा सत्र में भूमि अधिग्रहण पर एक बिल का मसौदा पेश करने वाली है। बीते कई वर्षों से देश भर में किसान बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ लड़ाकू संघर्ष करते आ रहे हैं। किसान अच्छी तरह समझ रहे हैं कि “सार्वजनिक हित” के नाम पर उनसे छीनी गयी भूमि देशी-विदेशी बड़े-बड़े पूंजीपतियों के निजी हितों और अधिकतम मुनाफों के लिए इस्तेमाल की जा रही है। किसान यह समझ रहे हैं कि अ

संप्रग सरकार संसद के वर्षा सत्र में भूमि अधिग्रहण पर एक बिल का मसौदा पेश करने वाली है। बीते कई वर्षों से देश भर में किसान बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ लड़ाकू संघर्ष करते आ रहे हैं। किसान अच्छी तरह समझ रहे हैं कि “सार्वजनिक हित” के नाम पर उनसे छीनी गयी भूमि देशी-विदेशी बड़े-बड़े पूंजीपतियों के निजी हितों और अधिकतम मुनाफों के लिए इस्तेमाल की जा रही है। किसान यह समझ रहे हैं कि अपनी भूमि के लिए उन्हें चाहे कोई भी मुआवज़ा मिले, पर रोजी-रोटी के परंपरागत साधन के नुकसान को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है।

देश भर के किसान इस बात पर चिंतित हैं कि सरकार नए भूमि अधिग्रहण बिल को किसानों की रोजी-रोटी सुनिश्चित करने के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों के लिए भूमि अधिग्रहण को और आसान बनाने के लिए पास करना चाहती है।

भूमि अधिग्रहण की समस्या और इस बिल के ऊपर चर्चा करने के लिए हरियाणा के अलग-अलग भागों से आये किसान नेताओं ने 11जून, 2011को जींद में एक गोल मेज वार्ता में भाग लिया। लोक राज संगठन समेत कई राजनीतिक संगठनों के नेताओं ने इस में भाग लिया।

लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष और राजस्थान के शिक्षक संघ के वरिष्ठ नेता कामरेड हनुमान प्रसाद शर्मा ने इस बात का पर्दाफाश किया कि सरकार किस तरह किसानों की उपजाऊ भूमि का बलपूर्वक अधिग्रहण करके उसे बड़े पूंजीपतियों को सौंप रही है। उन्होंने बताया कि इस भूमि अधिग्रहण को जायज़ ठहराने के लिए सरकार “सार्वजनिक हित” की मनमानी से परिभाषा दे रही है। अगर कहीं इसे विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना के नाम पर किया जा रहा है तो कहीं और इसे औद्योगिक विकास के नाम पर किया जा रहा है। सरकार का इरादा है कि बड़े पूंजीपतियों के लिए जनता की भूमि और संसाधनों को लूट कर अधिकतम मुनाफ़ा बनाना और आसान हो जाए, यह स्पष्ट करते हुए उन्होंने इसके खिलाफ़ एकजुट संघर्ष का आह्वान दिया।

उन्होंने ऐलान किया कि जनहित के कई काम हो सकते हैं जिनके लिए भूमि की जरूरत हो सकती है। अगर सरकार पर्यावरण को बचाने के इरादे से वन उगाने या स्कूल या अस्पताल खोलने के लिए भूमि अधिग्रहण करना चाहती है, यानि ऐसे काम के लिए जिससे समाज के सभी लोगों को फायदा होगा, तो सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जिन किसानों की भूमि ली जा रही है, उनका सही रूप से पुनर्वास हो तथा उन्हें निर्वासित करने से पहले दूसरी भूमि और रोजगार के स्रोत दिए जाएँ। निर्वासित किसानों के साथ समाज के जिन-जिन तबकों के लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुयी है – जैसे कि खेत मजदूर, छोटे दुकानदार, नाई, आदि – उनका पुनर्वास भी किया जाना चाहिए और उन्हें भी वैकल्पिक रोजगार के स्रोत दिलाने चाहिए।

कामरेड हनुमान प्रसाद शर्मा ने यह भी बताया कि जिन किसानों की भूमि का अधिग्रहण होने वाला है, सरकार उनसे इस अधिग्रहण के पीछे मकसद पर बातचीत करे। उस भूमि के साथ जिन किसानों और दूसरे मेहनतकशों की रोजी-रोटी जुड़ी है, उनकी सहमति के बिना सरकार को भूमि अधिग्रहण नहीं करना चाहिए।

भूमि अधिग्रहण का सही मुआवजा क्या होना चाहिए, इस पर भी बातचीत हुयी। एक राय यह थी कि तत्कालीन बाज़ार दर से दस गुना मुआवजा होना चाहिए। एक और राय यह थी कि किसानों को दूसरी भूमि दी जानी चाहिए। कुछ सहभागी जमीन पर बनायी जा रही परियोजनाओं में नौकरी की मांग कर रहे थे। लोक राज संगठन के प्रतिनिधि ने इस बात पर जोर दिया कि मूल असूल यह है कि बलपूर्वक विस्थापन नहीं होना चाहिए। हमें एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए काम करना चाहिए जिसमें सब की खुशहाली सुनिश्चित हो।

एक और बात पर चर्चा हुयी, कि कई परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया है पर वहां कई सालों तक कोई परियोजना नहीं बनी है। यह मांग रखी गयी कि भूमि अधिग्रहण से पहले सरकार को परियोजना की शुरुआत और समाप्ति का समय स्पष्ट कर देना चाहिए। अगर समय पर परियोजना पर काम नहीं शुरू होता, तो वह जमीन किसानों को वापस दी जानी चाहिए और साथ ही, मुआवजा भी वापस नहीं दिया जाएगा।

सभी सहभागी इस बात पर सहमत थे कि पूंजीपतियों के अधिकतम मुनाफों की लालच के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं होना चाहिए। जब तक एक नया क़ानून नहीं बनता जिससे किसान और उनके संगठन सहमत हों, तब तक सभी भूमि अधिग्रहण को रोक देना चाहिए। संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए यह फैसला लिया गया कि सभी किसान संगठनों और संघर्ष समितियों का एक संघ बनाया जाएगा। यह मांग रखी गयी कि सरकार सन् 2000से देश में हुए सभी भूमि अधिग्रहणों पर एक श्वेत पत्र जारी करे, ताकि लोग जान सकें कि अधिग्रहित भूमि के साथ क्या किया गया है। यह मांग रखी गयी कि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ संघर्ष करने वाले किसानों पर लगाए गए सभी कानूनी मामलों को फ़ौरन वापस लिया जाए। ग्राम सभाओं की सहमति के बिना कोई भूमि अधिग्रहण नहीं होना चाहिए। अंत में यह फैसला हुआ कि उपरोक्त निर्णयों के आधार पर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ संघर्ष को और तेज किया जाएगा।

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