विद्युत विधेयक संशोधन बिल का मसौदा लोकहित में नहीं है 

उर्जा मंत्रालय ने 17 अप्रैल, 2020 को विद्युत कानून-2003 के संशोधन विधेयक का मसौदा पेश किया और टिप्पणियों, सुझावों और आपत्तियों को 8 मई, 2020 तक प्रस्तुत करने को कहा है।

मंत्रालय द्वारा चर्चा के लिए पेश किया गया यह चैथा मसौदा है। उर्जा मंत्रालय ने पहला मसौदा 2014 में तैयार किया था और उसे लोक सभा में में पेश किया था लेकिन लोक सभा भंग होने के कारण वह बिल वहीं रह गया। दूसरे और तीसरे मसौदों को 2018 और 2019 में पेश किया गया था। उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। लोगों के कोविड संकट से जूझने में तल्लीन होने का फ़ायदा उठाकर उर्जा मंत्रालय पुनः इस लोक-विरोधी, मजदूर-विरोधी बिल को पारित कराने की कोशिश कर रहा है।

MSEDL_strickबिल का मसौदा वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के निजीकरण और बिन-रियायत खर्च पर आधारित बिजली दर को निर्धारित करने पर ज़ोर देता है। वह औद्योगिक ग्राहकों पर अभी लगाये जाने वाले सरचार्जों को कम करने की भी बात करता है। परिणामस्वरूप, लोगों के रोज़ाना उपयोग के लिए घरेलू बिजली दर आज के स्तर से काफी बढ़ जाएगी जबकि उद्योगों को चलाने वाले पूंजीपतियों के लिए यह दर कम हो जाएगी। एक अनुमान के अनुसार, घरेलू बिजली दर 10 रुपये तक बढ़ सकती है।

अभी बिजली दर राज्य विद्युत नियामक आयोग (एस.ई.आर.सी.) द्वारा निर्धारित की जाती है। विधेयक का प्रस्ताव है कि राज्य आयोग खुदरा बिजली दर कोई भी रियायत दिए बिना निर्धारित करें। यदि किन्हीं विशेष उपभोक्ताओं को रियायत दी जानी है तो सरकार उन्हें सीधे प्रत्यक्ष लाभ हस्तारंतर (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, डी.बी.टी.) के द्वारा भुगतान करे। संशोधन इस बात पर भी ज़ोर देता है कि यह दर बिजली आपूर्ति खर्च पर आधारित होनी चाहिए और औद्योगिक उपभोक्ताओं पर लगाए जा रहे सरचार्जों को तथा क्रॉस सब्सिडियों को कम किया जाना चाहिए।

मज़दूरों और उपभोक्ताओं के कड़े विरोध के बावजूद जब से 2003 में विद्युत अधिनियम को संशोधित किया गया था, तब से बिजली वितरण के निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि कुछ इलाकों में बिजली वितरण को निजी ऊर्जा कंपनियों को सौंप दिया गया है लेकिन  देश के अधिकांश भागों में वह अभी भी राज्य की मलिकी की डिस्कॉमों के हाथों में है। विधेयक के मसौदे में प्रावधान है कि राज्य की मालिकी की डिस्कॉम निजी कंपनियों को सब-लाइसेंसी या फ्रेंचाइजी नियुक्त कर उन्हें वितरण सौंप सकते हैं जिसके लिए निजी कंपनी को एस.ई.आर.सी. से अलग से लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ेगी। सब-लाइसेंसिंग द्वारा बिजली वितरण को निजी कंपनियों को सौंप कर राज्य सरकारों को बिजली वितरण के निजीकरण को चोरी-छिपे करने का मौका मिलेगा। फ्रेंचाइजी मॉडल पहले से ही महाराष्ट्र के ठाणे जिले के भिवंडी शहर में लागू कर दिया गया है जहाँ राज्य की मलिकी के महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी (महावितरण) ने टौरेंट कंपनी को कॉन्ट्रेक्ट दे रखा है।

विधेयक का एक प्रावधान विद्युत कॉन्ट्रेक्ट प्रवर्तन प्राधिकरण (ई.सी.ई.ए.) की नियुक्ति से संबंधित है जिसका उद्देश्य पूंजीपतियों को उनके पूंजी निवेश की सुरक्षा का आश्वासन देना है। पूंजीपति चाहते हैं कि निजी बिजली उत्पादन कंपनियों और राज्य की मालिकी के डिस्कॉम (राज्य विद्युत बोर्ड) के बीच हुए करारों का तब तक पालन किया जाए जब तक वे उनके लिए लाभ-दायक हैं। साथ-साथ, वे उन करारों में संशोधन की छूट चाहते हैं जब कभी परिस्थितियां उन्हें आवश्यक लाभ से वंचित करती हैं।

हाल में, जब आंध्र प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड ने निजी कंपनियों की अत्याधिक बिजली दर के बारे में शिकायत की तो राज्य सरकार ने पिछली सरकार द्वारा निजी उत्पादन कंपनियों के साथ किये गए सभी बिजली खरीदी करारों (पी.पी.ए.) के पुनरीक्षण का निर्णय लिया। पूंजीपतियों ने इसका कठोर विरोध किया और कहा कि यह करार का उल्लंघन है। साथ ही, आयातित कोयले के आधार पर चलने वाले विशाल पावर प्लांटों के मालिक अपने बिजली खरीद करारों में बदलाव की मांग कर रहे हैं। आयातित कोयले की क़ीमत में बहुत वृद्धि के कारण ये प्लांट अब लाभकारी नहीं रहे हैं।

बिजली संशोधन विधेयक मसौदे का ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन (ए.आई.पी.ई.एफ.) सहित देशभर के बिजली मज़दूरों द्वारा कड़ा विरोध किया गया है।

आज बिजली जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। उसे सभी लोगों द्वारा वहन करने योग्य दर पर उपलब्ध कराना राज्य की ज़िम्मेदारी है। विधेयक में प्रस्तावित खर्च के आधार पर बिजली दर निश्चित करने के सिद्धांत के अनुसार बिजली दर को अत्याधिक कर के निजी कंपनियों को अधिकतम लाभ सुनिश्चित कराना मंजूर नहीं है।

बिजली उत्पादन और वितरण एक आवश्यक सार्वजानिक सेवा है। वह निजी लाभ का स्रोत नहीं हो सकता और न होनी चाहिए। बिजली वितरण का निजीकरण एक लोक-विरोधी क़दम है। वह समाज के हितों के खि़लाफ़ है।

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