कार्ल मार्क्स की 202वीं सालगिरह के अवसर पर :

पूंजीवाद की जगह पर समाजवाद स्थापित करना आज वक्त की मांग है

“हुक्मरान वर्गों को कम्युनिस्ट क्रांति के डर से कांपने दो। श्रमजीवियों के पास अपनी जंजीरों के सिवाय और कुछ खोने का नहीं है। उनके पास जीतने के लिए सारी दुनिया है। सभी देशों के मज़दूरों, एक हो!” कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र की यह जानी-मानी ललकार 5 मई, कार्ल मार्क्स के जन्म दिवस पर पूरी दुनिया में गूंज उठी। वह उन करोड़ों-करोड़ों श्रमजीवियों के दिलों में गूंज उठी, जिनमें हुक्मरान सरमायदार वर्ग के खि़लाफ़ गुस्सा इस समय चरम सीमा पर पहुंच गया है।

कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के चलते, दुनिया की अधिकतम पूंजीवादी सरकारों ने लॉकडाउन लागू कर रखा है। इसके कारण मज़दूर तबाह हो गए हैं। परन्तु नस्लवादी और सांप्रदायिक प्रचार तथा लोकतान्त्रिक अधिकारों पर हमलों के ऊपर कोई लॉकडाउन लागू नहीं है। अंतर-साम्राज्यवादी स्पर्धा, सैन्यीकरण और जंग पर कोई लॉकडाउन लागू नहीं है। यहां तक कि अमरीका चीन को दुनिया में इस वायरस को फैलाने के लिए दोषी ठहराने की कोशिश कर रहा है।

Karl_Marxआज यह स्पष्ट हो गया है कि पूंजीवाद एक अमानवीय व्यवस्था है जिसका मक़सद है करोड़ों-करोड़ों लोगों की जानों को कुर्बान करके, मुट्ठीभर अति-अमीरों की अमीरी को बढ़ाते रहना। कोरोना वैश्विक महामारी के चलते, ज्यादातर पूंजीवादी सरकारें समाज के सभी सदस्यों की तंदुरुस्ती और खुशहाली की रक्षा करने में नाक़ामयाब साबित हुयी हैं।

सभी तथ्यों और गतिविधियों से मार्क्स का वह वैज्ञानिक निष्कर्ष सही साबित हो रहा है कि पूंजीपति वर्ग अब समाज को चलाने के क़ाबिल नहीं रहा है। अगर समाज को आगे बढ़ना है तो श्रमजीवी वर्ग को हुक्मरान वर्ग बनना होगा और पूंजीवाद की जगह पर समाजवाद की स्थापना करनी होगी।

सरमायदार बार-बार यह झूठा प्रचार करते रहते हैं कि मार्क्स के सैद्धांतिक निष्कर्ष और सबक अब पुराने हो गए हैं और आज की हालतों के अनुकूल नहीं हैं। इस झूठे प्रचार के पीछे उनका उद्देश्य है इस आदमखोर और संकट-ग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था के जीवन काल को लम्बा खींचना। वे श्रमजीवी वर्ग को उस क्रांतिकारी सिद्धांत से लैस होने से रोकना चाहते हैं, जिससे मार्गदर्शन लेकर श्रमजीवी वर्ग पूंजीवाद का तख्तापलट करने और समाजवादी समाज का निर्माण करने के अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।

हिन्दोस्तान में, लॉकडाउन के बीते डेढ़ महीनों में करोड़ों-करोड़ों श्रमजीवी अपनी रोज़ी-रोटी के साधन खो बैठे हैं। उनके पास जो भी थोड़ा पैसा बचा था, वह ख़त्म हो चुका है। अब वे अपने-अपने गांवों को वापस जाने का हक़ मांग रहे हैं। परन्तु पूंजीपति नहीं चाहते हैं कि मज़दूर शहरों से चले जायें। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पूंजीपतियों के हितों के अनुसार काम कर रही हैं। पूंजीपति चाहते हैं कि जब लॉकडाउन ख़त्म होता है तब बेरोज़गार मज़दूरों की बड़ी फ़ौज उनके पास उपलब्ध हो। मज़दूर अधिकारियों का मुक़ाबला कर रहे हैं और जगह-जगह पर मज़दूरों व पुलिस के बीच घमासान लड़ाइयां हुयी हैं।

पूंजीपति वर्ग महामारी की इस अस्वाभाविक स्थिति का फ़ायदा उठाकर, मज़दूरों के शोषण को और तेज़ करने की कोशिश कर रहा है। कई राज्य सरकारें फैक्ट्रियों में काम के समय को 8 घंटे प्रतिदिन से बढ़ाकर 12 घंटे प्रतिदिन करने की घोषणा कर चुकी हैं। उत्तर प्रदेश की सरकार ने अगले तीन सालों के लिए सभी श्रम कानूनों को रद्द करने का फैसला घोषित किया है।

कोरोना वायरस की वजह से लागू किये गए इस लॉकडाउन में देश के करोड़ों-करोड़ों मज़दूर पूंजीवादी व्यवस्था के अमानवीय चरित्र को साफ-साफ देख रहे हैं। मज़दूर यह भी समझ रहे हैं कि उनकी असली ताक़त उनकी विशाल संख्या में है और समाज को चलाने में उनकी अहम भूमिका में।

मार्क्स की 202वीं सालगिरह के अवसर पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी फिर से यह कसम खाती है कि पूंजीपति वर्ग की हुकूमत का तख़्तापलट करने, मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने और एक आधुनिक लोकतांत्रिक व समाजवादी हिन्दोस्तान की नींव डालने के संघर्ष में, सभी शोषित-पीड़ित लोगों को एकजुट करके, श्रमजीवी वर्ग को अगुवाई देती रहेगी।

कार्ल मार्क्स के मुख्य सैद्धांतिक निष्कर्ष

मार्क्स ने मानव समाज के विकास के आम नियम (वर्ग संघर्ष का सिद्धांत) और पूंजीवादी समाज की गति के ख़ास नियम (बेशी मूल्य का सिद्धांत) को खोज निकाला। उन्होंने समझाया कि वेतन-मज़दूरी का शोषण ही पूंजीवादी मुनाफ़े का स्रोत है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मानव समाज वर्ग संघर्ष के ज़रिये, आदिम काल के पड़ाव से विकसित होकर क्रमशः उच्चतर पड़ावों पर पहुंचता है। उन्होंने यह स्थापित किया कि जब उत्पादन के मौजूदा संबंध उत्पादक ताक़तों के विकास के रास्ते में रुकावट बन जाते हैं, तो समाज के विकास के लिए क्रांति की ज़रूरत होती है।  मार्क्स इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पूंजीवादी समाज ही वर्गों में बंटे समाज का अंतिम रूप है। उन्होंने यह विचार पेश किया कि पूंजीवाद का अगला पड़ाव वर्ग-हीन समाज होगा, यानी आधुनिक कम्युनिस्ट समाज, जिसका प्राथमिक पड़ाव समाजवाद होगा।

मार्क्स ने यह पहचाना कि पूंजीवाद का मौलिक अंतर्विरोध उत्पादन के सामाजिक चरित्र और उत्पादन के साधनों की निजी मालिकी के बीच में है। जब श्रम के शोषण के ज़रिये पूंजीवादी मुनाफ़े को बढ़ाते रहना ही मुख्य उद्देश्य बन जाता है, तो यह उत्पादक ताक़तों के निर्विरोध विकास के रास्ते में रुकावट बन जाता है, और इसकी वजह से अत्यधिक उत्पादन के संकट बार-बार होते रहते हैं। इन संकटों के दौरान, उत्पादन घट जाता है और उत्पादक ताक़तें नष्ट होती हैं, क्योंकि मेहनतकशों के पास उन चीजों को खरीदने के पैसे नहीं होते, जो पूंजीपति उन्हें बेचना चाहते हैं।

मार्क्स ने पूंजीवाद के इस मौलिक अंतर्विरोध के समाधान का रास्ता दिखाया। उत्पादन के साधनों को निजी हाथों से हटाकर सामाजिक संपत्ति में तब्दील करना होगा, ताकि उत्पादन का लक्ष्य समाज की ज़रूरतों को पूरा करना हो, न कि पूंजीपतियों की लालच को पूरा करना। मार्क्स ने पहचाना कि श्रमजीवी वर्ग ही वह क्रांतिकारी वर्ग है, जिसमें पूंजीवाद से समाजवाद तक समाज के परिवर्तन को अगुवाई देने की क्षमता भी है और रुचि भी।

मार्क्स ने यह स्वीकार किया कि उनसे पहले भी कई विचारकों ने वर्ग संघर्ष को सामाजिक विकास की प्रेरक शक्ति माना था। मार्क्स का बेमिसाल योगदान यह निष्कर्ष था कि आधुनिक समाज में वर्ग संघर्ष का अनिवार्य परिणाम सरमायदारों के अधिनायकत्व का तख़्तापलट और श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व की स्थापना होगा। यह समाज में सभी वर्ग विभाजनों को समाप्त करने की पूर्व संध्या होगी।

 

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