संपादक महोदय,
यह दिन-ब-दिन सही साबित हो रहा है कि “पूंजीवाद एक अमानवीय व्यवस्था है जिसका मक़सद है लाखों-लाखों लोगों की जानों को कुर्बान करके; मुट्ठीभर अति-अमीरों की अमीरी को बढ़ाते रहना”; जैसा कि मई दिवस 2020 पर कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के बयान में कहा गया है।
कर्नाटक की सरकार ने 5 मई से प्रवासी मज़दूरों को उनके गृह प्रदेश को वापस ले जाने के लिए निर्धारित की गयी सभी विशेष ट्रेनों को रद्द कर दिया। सरकार ने यह क़दम भवन निर्माण की बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिकों के संगठन (कन्फेडरेशन ऑफ़ रियल इस्टेट डेवलपरर्स एसोसिएशंस ऑफ़ इंडिया) के साथ बैठक करने के बाद उठाया। बैठक में भवन-निर्माता मालिकों ने शहर से श्रमिकों के पलायन को लेकर मुख्यमंत्री के समक्ष चिंता प्रकट की कि यदि प्रवासी मज़दूरों को अपने-अपने राज्य वापस जाने की अनुमति दे दी गई तो शहर में निर्माण कार्य के लिए मज़दूरों की कमी पड़ जाएगी।
इसके साथ ही कर्नाटक सरकार ने रेल मंत्रालय को बाकायदा लिखित में बताया कि 6 मई से प्रवासियों के लिए विशेष ट्रेन सुविधा की आवश्यकता नहीं है। कर्नाटक सरकार ने मंत्रियों को यह निर्देश भी दिया है कि प्रवासी मज़दूरों पर दबाव डालें कि वे अपने गाँव वापस न जायें।
इससे पूर्व कर्नाटक सरकार ने रेलवे के साथ मिलकर, प्रवासियों के लिये रविवार से आठ ट्रेनों का संचालन किया था और 9,583 श्रमिकों के जाने की व्यवस्था की थी। इन प्रवासियों को तीन ट्रेनों के ज़रिए, भुवनेश्वर, हटिया, लखनऊ, बड़का काना और जयपुर भेजा गया।
कर्नाटक में फंसे हुए 2 लाख 40 हजार प्रवासियों ने गांव जाने के लिए खुद को सरकार के पास पंजीकृत कराया हुआ है। सरकार द्वारा अचानक लिए गए इस फैसले से प्रवासी मज़दूरों में बहुत गुस्सा है। कई जगह पुलिस और मज़दूरों के बीच झड़प भी हुई है।
भवन निर्माण से जुड़े मज़दूरों ने बताया कि लाकडाउन के पहले ही ठेकेदारों के पास उनका तनखा बकाया है। लाकडाउन के दौरान उनको कोई तनखा नहीं दी गई है। कई प्रवासी मज़दूरों ने बताया कि अब राशन खरीदने के लिये भी पैसे नहीं बचे हैं। वे एक छोटे और दमघोंटू कमरे में रह रहे हैं। भोजन के नाम पर उन्हें मात्र खिचड़ी मिल रही है।
यह सच्चाई फिर से सामने आ रही है कि पूंजीपतियों के इस वहशी राज के चलते, हर फैसला बड़े से बड़े पूंजीपतियों के हितों को नज़र में रखकर ही किया जाता है। सभी सरकारें पूंजीपतियों के हितों की ही रक्षा करती हैं, और लोगों को बुद्धू बनाने के लिए श्रमिकों के बारे में घड़ियाली आंसू बहाती हैं। पूंजीपतियों और उनकी सेवा करने वाली सरकारों के लिये मज़दूर इंसान नहीं माने जाते; सिर्फ पूंजीपतियों के मुनाफों को बढ़ाने के साधन माने जाते हैं, जिन्हें जब चाहे काम पर लगाया जाये और जब चाहे उठाकर फेंक दिया जाये।
कोरोना वैश्विक महामारी के चलते, यह साफ़ है कि पूंजीपतियों की सरकारें समाज के असली उत्पादनकर्ताओं, यानि श्रमिकों की खुशहाली की रक्षा करने में नाक़ामयाब हैं। पूंजीपतियों के राज का समय अब पूरा हो चुका का है। अब मज़दूर वर्ग को, सभी शोषित और दबे-कुचले लोगों को अपने साथ एकजुट करके, एक ऐसे नए समाज की रचना करनी होगी जिसमें सबकी खुशहाली सुनिश्चित होगी, न कि सिर्फ चंद बड़े पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ेगी।
आपका पाठक
कमल सिंह, गाज़ियाबाद