संपादक महोदय,
कामरेड लेनिन के जन्म की 150 वीं वर्षगाठ पर इस महत्वपूर्ण लेख को प्रकाशित करने के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। कामरेड लेनिन की यह वर्षगाँठ एक ऐसे समय आई है, जब पूरी दुनिया भयंकर महामारी से जूझ रही है। दुनियाभर के पूंजीपति बार-बार हज़ार लाखों बार मार्क्स और लेनिन द्वारा ख़ोज किये सामाजिक विकास के सिद्धांतों को झुठलाने और उसे गलत साबित करने की कोशिश करते आये है, लेकिन मानव समाज के निरंतर अनुभव के आधार पर, हर एक बार इन सिद्धांतों की न केवल पुष्टि होती आई है, बल्कि उन सिद्धांतों पर अमल करके दुनिया को हमेशा के लिए शोषण और दमन पर आधारित इस परजीवी व्यवस्था से मुक्ति देने के लिए क्रांति की राह पर चलने की ज़रूरत हर दिन बढ़ती ही जा रही है। जबकि दुनिया भर के लोग इस महामारी से खुद बचने और औरों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे है, पूंजीपति और उनकी सरकारों का एक ही एजेंडा नजर सामने आ रहा है। उनका एजेंडा है इस संकट का इस्तेमाल अपनी डूबती व्यवस्था को किसी तरह बचाना, लोगों को गुमराह करना, प्रतिरोध की आवाजों को कुचलना, और ऐसे अवसर तलाशना जिससे अधिक से अधिक मुनाफे बनाये जा सकें, वह चाहे सुरक्षा उपकरणों का उत्पादन और खरीदी हो या फिर कोरोना वायरस से बचाव के लिए टीके की खोज।
जैसे कि इस बेहद महत्वपूर्ण लेख में बताया गया है, दुनियाभर के पूंजीपति लोगों को इस महामारी से बचाने में पूरी तरह से नाकामयाब साबित हुए है। सबसे बड़े पूंजीवादी देशों में लाखों हजारों लोग इस महामारी के शिकार हुए है और उनकी कमजोर बनायीं गयी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खुल गयी है। लेकिन यह बात भी सामने आ रही है कि जिस सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को अकार्यक्षम साबित करने और उसे बर्बाद करने के लिए तमाम तर्क दिये गए थे, आज उसी के स्वास्थ्य कर्मी, सफाई मजदूर, और अन्य आवश्यक सेवाओं से जुड़े मजदूर, सुरक्षा के इंतजाम और उपकरणों के अभाव के बावजूद, अपनी जान को जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाने में लगे हुए है। बरसों से यही मजदूर अपने और समाज के सभी सदस्यों के अधिकारों की हिफाजत में सडकों उतरते रहे थे, तो इन्ही पूंजीवादी राज्यों के हुक्मरान उन्हें बदनाम करने के मकसद से उनके खिलाफ झूठा प्रचार चलाया करते थे।
सोवियत संघ के विघटन के बाद “क्रांति के पीछे हट” के दौर में दुनियाभर में चलायी गयी उदारीकरण निजीकरण के रास्ते भूमंडलीकरण की नीतियों के चलते, तमाम सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्थाओं की बर्बाद कर दिया गया है। हिन्दोस्तान सहित सभी पूंजीवादी राज्य साल दर साल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की लिए बजट में कटौती करती आई है, और अधिक से अधिक लोगों को निजी और महंगी स्वास्थ्य सेवाओं की और धकेलती आई है, जिससे निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों, निजी अस्पतालों और दवाई बनाने वाली कंपनियों का मुनाफा बढ़े। इसके साथ-साथ सैनिकी और हथियारों पर खर्च को लगातार बढ़ाया गया है, और इसे जायज़ साबित करने के लिए तमाम तरह से लोगों के बीच कभी किसी देश के खिलाफ तो कभी किसी धर्म के खिलाफ, खौफ फैलाया गया है।
शीत युद्ध के समाप्त होने पर यह दावा किया गया कि सोवियत संघ के विघटन से युद्ध की संभावना खत्म हो जाएगी और एक नयी जागतिक व्यवस्था (न्यू वर्ल्ड आर्डर) का सपना दिखाया गया। लेकिन जैसे की लेख में बताया गया है, पिछले 30 वर्षों में युद्ध खत्म होने के बजाय हथियारों का कारोबार बढ़ता ही गया है, और दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इलाका बचा है जहां एक या दुसरे बहाने से साम्राज्यवादी जंग नहीं चल रही हो। पूंजीवादी राज्यों द्वारा सामाजिक सुविधाओं पर किया जा रहा खर्चा, सेना और हथियारों पर किये जा रहे खर्चे का अंश मात्र है। जैसे की लेनिन ने 100 वर्ष से पहले साम्राज्यवाद के अपने विश्लेषण में बताया था, आज पुष्टि दुनिया के सामने रोज़ हो रही है। पूंजीवादी राज्य कोरोना वायरस जैसी महामारी से लोगों बचाव करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन आज उनके पास इतना बड़ा हथियारों का इतना बड़ा जखीरा है, जिससे वे दुनिया का कई बार विनाश कर सकते है।
कोविड महामारी के दौरान मजदूरों के प्रति देश के पूंजीपतियों और उनकी सरकार का जो नजरिया है, वह साफ़ दिखता है कि वे मज़दूर मेहनतकश लोगों को कीड़े मकोड़ों से अलग नहीं समझते है। महामारी के समय मेहनतकश लोगों की सुरक्षा का सवाल हो, रोज़गार का सवाल हो, या अपने घर सुरक्षित जाने का सवाल हो, उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया गया है, और हजारों लाखों लोग भूखे, बेहाल, पैदल ही अपने घरों की ओर चल पड़ने के लिए मजबूर हो गए है। इस हाल में भी उनपर तमाम तरह से अत्याचार किये जा रहे है। इस दौरान किसानों का भी हाल बद से बदतर हुआ है। आने वाले समय में हालात और अधिक बिगड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है।
यह अनुभव हम सभी मेहनतकश को फिर एक बार सिखा रहा है, कि जब तक देश में मजदूरों और किसानों का राज कायम नहीं हो जाता, हम मेहनतकश लोगों को कभी भी सुख और सुरक्षा हासिल नहीं हो सकती।
कामरेड लेनिन के जन्म की 150वीं वर्षगाँठ पर इस बात पर विचार करना ज़रूरी है कि यदि ऐसे हालत में मज़दूर किसानों का राज होता तो वह किस तरह के कदम उठता, जिससे इस महामारी को रोका भी जा सकता, और साथ ही मेहनतकश लोगों के सभी अधिकारों की सुरक्षा की जाती। मजदूर, मेहनतकश, किसान, महिलाओं और नौजवानों, छोटे उत्पादकों, छोटे व्यापारियों, शिक्षकों, डॉक्टर, नर्स, पेशेवर, स्वछता और यातायात कर्मचारियों के संगठन इस महामारी को रोकने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का पहिया चलता रखने में क्या भूमिका अदा करते? एक आधुनिक सार्वजनिक कृषि-उत्पाद ख़रीदी प्रणाली किस तरह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ तालमेल में सभी लोगों के लिए पर्याप्त मात्र में खाद्यान वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करती? खाद्यानों के व्यापार के राष्ट्रीकरण से इस कार्य को किस तरह से सुचारू रूप से चलाया जा सकता था? एक जनहित-मुखी सुरक्षा बल इस विपदा की घडी में क्या भूमिका अदा करती? ऐसे और कई सवाल इस संदर्भ में फिर एक बार उठकर सामने आ रहे है। जैसे कि इस लेख में बताया गया है 1917 की बोल्शेविक क्रांति की धुरी मजदूरों, किसानों और सैनिकों की सोवियते थी, जिनका उदय 1905 की क्रांति के दौरान हुआ था, और 1917 में जब क्रांति का लोहा गरम हुआ, सही समय पर हथौड़ा चलाकर परिस्थिति को क्रांति, मजदूर किसानों के राज और समाजवाद की दिशा में मोड़ दिया। कामरेड लेनिन का जीवन और कार्य दुनियाभर के मजदूरों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीख पेश करता है जिसे कामरेड लेनिन ने इन शब्दों में बयान किया है – “मजदूर वर्ग की ताक़त संगठन में बसी हुई है। जब तक जनसमुदाय संगठित नहीं है, श्रमजीवी शक्तिहीन है। यदि जनसमुदाय संगठित है, तो वह सबसे बलशाली है!”। कामरेड लेनिन का यह बयान हम सभी को संगठित होने और सर्वहारा वर्ग की लेनिनवादी पार्टी बतौर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी को मज़बूत करने की प्रेरणा देता है!
आपका
विवेक कुमार
फरीदाबाद