महोदय,
मैंने, मज़दूर एकता लहर के आनलाइन अंक मई 1-15 में प्रकाशित लेख ‘करोना वायरस के लिये मुसलमानों को दोषी ठहराना बहुत ख़तरनाक है’ को पढ़ा। यह लेख राज्य और उसकी मषीनरी द्वारा मुस्लिम धर्म के लोगों के खि़लाफ़ फैलाए जा रहे जहरीले प्रचार का पर्दाफाष करता है। मरकज की घटनाओं का पूंजीवादी मीडिया ने ऐसा प्रचार किया जैसे कि कोरोना का प्रसार सिर्फ तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने किया है। तबलीगी जमात द्वारा आयोजित सभा की सूचना गृह मंत्रालय के मातहत आने वाली सभी एजेंसियों – आईबी, दूतावास, और स्थानीय पुलिस को थी। तबलीगी जमात के आयोजकों ने लाकडाउन के शुरू के दिनों में मरकज से लोगों को निकालने का निवेदन स्थानीय पुलिस से किया था। राज्य और पुलिस ने कोई क़दम नहीं उठाया।
इसी तरह से हिन्दोस्तान में कई घटनाओं को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है। जैसे कि पालघर की घटना को भी सांप्रदायकि रंग दिया गया है। इस तरह धर्म विशेष के लोगों के प्रति सांप्रदायिक नफ़रत और घृणा फैलाकर, उसकी आड़ में करोड़ो मज़दूरों के पलायन के फलस्वरूप उनका उत्पीड़न, किसानों की बर्बादी, स्वास्थ्य सेवा में ज़रूरी व्यक्तिगत सुरक्षा कवच उपकरणों सहित कोरोना जांच किट के अभाव के कारण डाक्टरों, नर्सों सहित स्वाथ्यकर्मियों की समस्याओं को आम जनता की नज़रों के सामने आने से रोका जा रहा है।
देश में हिन्दू-मुस्लिम की एकता को तोड़ने के लिये जहरीला सांप्रदायिक प्रचार पहले अंग्रेजों से शुरू हुआ। देश की सत्ता में रहने वाली हरेक हुकूमत कम या ज्यादा इसी प्रकार के जहरीले प्रचार का सहारा लेती है। वर्तमान सरकार भी यही कर रही है।
इस प्रचार के विपरीत देश के कम्युनिस्ट, समाजसेवी संगठन, शांति-अमन पसंद लोग, देश के मज़दूर, किसान, औरत और जवान इस जहरीले प्रचार से टक्कर ले रहे हैं, और मुझे विश्वाश है कि इस बार भी हम इस जहरीले प्रचार को असफल कर देंगे।
धन्यवाद
संतोष कुमार, दिल्ली