संपादक महोदय
करोना की इस महामारी के दौरान मौजूदा स्वास्थ्य सेवा की पोल खुल गयी है। समाचार माध्यम के ज़रिए पता चलता है कि देष के अधिकांश अस्पतालों में डाक्टरों, नर्सों और स्वाथ्यकर्मियों के पास सुरक्षा के उपकरण पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। इन अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में न तो डाक्टर और नर्स हैं और न स्वाथ्यकर्मी। इसके बावजूद, डाक्टर, नर्स और कर्मचारी अपनी जान पर खेल कर लोगों का इलाज कर रहे हैं।
देश में स्वास्थ्य सेवा की यह परिस्थिति निजीकरण की नीति की देन है। निजी पूंजीवादी घरानों, फोर्टिस, मैक्स, अपोलो, आदि के अस्पताल मरीजों को लूटकर बहुत बड़े बनते जा रहे हैं, परंतु सरकारी स्वास्थ्य सेवा जिस पर देश की मेहनतकश गरीब जनता निर्भर है, को सुनियोजित तरीके से ख़त्म किया गया है।
अधिकांश अस्पतालों में काम करने वाले सभी कर्मचारी नर्स, वार्ड ब्वाय, स्वीपर, सिक्योरिटी गार्ड इत्यादी ठेके पर हैं। अधिकांश लैब टेक्नीशियन, एक्सरे सहित अन्य विभागों के कर्मी ठेके पर हैं। इन्हें न्यूनतम कुशलता और न्यूनतम वेतन पर, अस्थायी रूप से काम पर रखा जाता है और अनुबंध का समय पूरा हो जाने पर निकाल दिया जाता है। यह आम जनता की स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है।
सरकार की यह सोची-समझी नीति है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा को बद से बदतर बनाया जाये ताकि निजी अस्पतालों का ज्यादा से ज्यादा प्रसार हो सके और निजी पूंजीपति स्वास्थ्य के क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बना सकें। कोरोना संकट के वक्त सभी निजी अस्पतालों ने अपने हाथ खड़े कर दिये हैं। इनमें जांच या इलाज बहुत महंगा और आम मज़दूर की पहुंच के बाहर है।
सरकारी अस्पताल और उनमें काम करने वाले डाक्टर, नर्स सहित सभी स्वास्थ्यकर्मी कोरोना के खि़लाफ़ युद्ध में मुख्य सेनापति बने हुए हैं। ये हमारे सच्चे हीरो हैं।
धन्यवाद।
ब्रिजेश नाथ, दिल्ली