मुंबई के धारावी से पत्र

संपादक महोदय,

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च, 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी जो 14 अप्रैल तक जारी रहने वाला था। अब इस लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया गया है। लोगों को कहा गया है कि वे घरों में रहें और आपस-बीच में दूरी बना कर रखें।

मैं मुंबई के बीचों-बीच धारावी में रहता हूं जो एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती है। यहां पर तकरीबन 7 लाख लोग रहते हैं जिनमें से अधिकांश मज़दूर या स्वरोज़गार प्राप्त लोग हैं। यहां रहने वालों में, बड़ी संख्या में दिहाड़ी मज़दूर हैं और उनकी आजीविका रोज़ाना काम मिलने से ही चलती है। उनके परिवार उनके पैतृक स्थानों में रहते हैं और ये परिवार इन मज़दूरों द्वारा हर महीने भेजे गये पैसे पर निर्भर हैं। धारावी में मज़दूर बहुत ही छोटे कमरों में रहते हैं और एक ही कमरे में कई मज़दूर रहते हैं। यहां 10 बाई 10 फुट के बिना हवा के प्रवाह वाले बहुत से कमरों में 10-10 लोग रहते हैं। ये लोग पारियों में काम करते थें और पारियों में ही सोते थे। लाॅकडाउन के लागू होने के बाद उन्हें एक ही कमरे में बंद रहना पड़ रहा है, जो सभी के एक साथ रहने योग्य नहीं हैं। धारावी के घर बहुत सकरी गलियों में हैं और इन गलियों में एक दूसरे को छुये बगैर लोगों का आना-जाना बहुत मुश्किल है। इतना ही नहीं उन्हें सार्वजनिक शौचालयों का प्रयोग करना पड़ता है जो बहुत ही गंदी अवस्था में हैं। इन परिस्थितियों में शारीरिक दूरी रखना कैसे संभव हो सकता है?

गर्मियों के इन दिनों में धारावी के निवासी बिना ताजा हवा वाले अपने ”घरों“ में पूरी तरह से कैदियों के जैसे जी रहे हैं। पिछले तीन हफ्तों से भी अधिक के लाॅकडाउन में उन्होंने अपनी थोड़ी सी बचत को भी ज़रूरी वस्तुओं को खरीदने के लिये खर्च कर दिया है। उनके लिये आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है और अब वे भूख का सामना कर रहे हैं। उन्हें बताया जाता है कि तंदरुस्त रहने के लिये उन्हें पौष्टिक आहार खाना चाहिये, पर वे बिना पैसों के क्या ऐसा कर सकते हैं? उन्हें डर लग रहा है कि कोरोना वायरस की जगह वे भूख से मर जायेंगे। परिस्थिति इतनी बिगड़ गयी है कि परिवहन सुविधा न होने पर भी मज़दूर अपने घरों के लिये पैदल ही निकल जो रहे हैं। वे अपने देश के अलग-अलग राज्यों से हैं और अपने घरों को जाने के लिये तरस रहे हैं।

सरकार ने घोषणा की है कि आधार कार्ड वालों को 5 किला चावल और 5 किलो गेंहू निःशुल्क दिया जायेगा। लेकिन अब 20 दिनों के बाद भी मज़दूरों को कुछ नहीं मिला है। इसके अलावा इसे पाने के लिये लोगों को राशन दुकानों तक जाना होता है और अपने आधार कार्ड की फोटोकापी देनी होती है। लॉकडाउन की वजह से कोई भी फोटोकापी कराने की दुकानें चालू नहीं हैं और अपना निःशुल्क राशन पाने में असमर्थ हैं। इसके अलावा इस मुश्किल वक्त में राशन दुकानों के मालिक ग़रीब मज़दूरों से पैसे ऐंठने की कोशिश कर रहे हैं। चावल जो पहले 40 रुपये प्रति किलो मिलता था अब 62 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। राजमा जो 108 रुपये प्रति किलो होता था अब 160 रुपये प्रति किलो हो गया है। सब्ज़ियों की दुकानें सिर्फ सोमवार और शुक्रवार को 8 बजे से 11 बजे सुबह ही खुल रहीं हैं जिससे परिस्थिति और भी मुश्किल हो गयी है। अगले चार दिनों के लिये सब्ज़ियां खरीदने के लिये आजकल बाज़ारों में भीड़ लगी रहती है। इससे भी शरीरिक दूरी रखने की हर कोशिश विफल हो जाती है।

धारावी में कोविड-19 के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और अबतक 100 पार चुकी है। जैसा कि मैंने ऊपर समझाया है, लोग बहुत ही तंग जगहों पर रहने के लिये मजबूर हैं, जहां देह से दूरी रखना अत्यंत मुश्किल है। जांच केन्द्रों के अभाव की वजह से बहुत कम लोगों के टेस्ट हो रहे हैं। अतः जो इस वायरस से ग्रस्त हैं उन सबकी पहचान नहीं हो रही हैं और चुपचाप उनके द्वारा दूसरे लोगों में वायरस तेज़ी से फैल रहा है।

कोविड-19 एक महामारी है और लोग इसके खि़लाफ़ भाइचारे से संघर्ष कर रहे हैं। परन्तु गलत सूचना फैला कर कुछ लोग एक सम्प्रदाय को दूसरे के खि़लाफ़ भड़का रहे हैं। झूठ फैला कर वे साम्प्रदायिक द्वेष फैला रहे हैं। धारावी में पूरे देश से आये लोग रहते हैं और अलग-अलग धर्मों को मानते हैं। परन्तु दिल्ली में एक धार्मिक जमघट को लेकर वे मुसलमान सम्प्रदाय के लोगों को निशाना बना रहे हैं ताकि लोगों की एकता तोड़ी जा सके।

निर्माण करने वाले, फैक्टरियों में उत्पादन करने वाले, खानों में काम करने वाले, रेलगाड़ी चलाने वाले और रेलवे की देखरेख करने वाले मज़दूरों को तंग जगहों पर झुग्गी-झौपड़ियों में रहने को मजबूर करना दिखाता है कि अपने शासक कितने जन-विरोधी हैं। इस मुश्किल घड़ी में, जब समय का तकाजा लोगों को एक दूसरे से दूर रहने के लिये समर्थ बनाकर और उन्हें पौष्टिक आहार उपलब्ध कराकर, उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना है ताकि वे इस घातक वायरस का मुकाबला कर सकें, मज़दूरों को इनसे वंचित रखा जा रहा है। यह बड़े-बड़े दावों का पर्दाफाश करता है कि हिन्दोस्तान दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। धारावी में हम मज़दूरों की सबसे खराब परिस्थिति को देख सकते हैं। लेकिन देश के विभिन्न स्थानों में मज़दूरों की परिस्थिति धारावी जैसी ही है।

रवि

धारावी, मुंबई

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