तिरुपुर के मजदूरों की दुर्दशा

22 मई, 2011 को नई दिल्ली में तामिलनाडु के तिरुपुर इलाके में कपड़ा मजदूरों की आत्महत्याओं पर कमेटी ऑफ कंसंर्ड सिटीजन-स्टुडेंट्स एण्ड यूथ द्वारा गठित फैक्ट फाइडिंग टीम ने मानव अधिकार

22 मई, 2011 को नई दिल्ली में तामिलनाडु के तिरुपुर इलाके में कपड़ा मजदूरों की आत्महत्याओं पर कमेटी ऑफ कंसंर्ड सिटीजन-स्टुडेंट्स एण्ड यूथ द्वारा गठित फैक्ट फाइडिंग टीम ने मानव अधिकार

कार्यकर्ताओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच एक रिपोर्ट पेश की तथा उस पर चर्चा की। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी और मजदूर एकता कमेटी के कार्यकर्ताओं ने चर्चा में भाग लिया और मंच से अपनी बातें रखीं।

रिपोर्ट के अनुसार, तामिलनाडु के तिरुपुर में पिछले दो सालों में लगभग 800 मजदूरों ने आत्महत्याएं की हैं। इन मजदूरों ने काम की अमानवीय  परिस्थितियों के हालातों से तंग आकर यह आत्महत्याएं की हैं। मजदूरों को वहां पर 12-12 घण्टे लगातार ठेकेदारी प्रथा के तहत काम करना पड़ता है। यहां काम करने वाले ज्यादातर मजदूर ठेकेदारों द्वारा बिहार, उड़ीसा, राजस्थान तथा झारखण्ड से लाये जाते हैं। इन मजदूरों को डॉरमेट्री (शयनशाला) में रखा जाता है। इन मजदूरों को ई.एस.आई., पी.एफ. नहीं मिलता है। ये मजदूर किसी भी यूनियन के सदस्य नहीं हैं और न ही इन्हें यूनियन बनाने दिया जाता है।

विदित है कि तिरुपुर कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। यहां पर अनेकों बहुराष्ट्रीय कंपनियों – वॉलमार्ट, सी.एण्ड.ए., डिज़ल, फिला, रिबॉक आदि के लिये उत्पादन किया जाता है, जिससे कि इन कंपनियों को प्रत्येक वर्ष करोड़ों का मुनाफा होता है। यहां से लगभग 12 हजार करोड़ रुपये प्रति वर्ष का निर्यात होता है।

रिपोर्ट पर चर्चा करते हुये वक्ताओं ने बताया कि पूंजीवादी व्यवस्था में मूल उद्देश्य ही श्रम का शोषण करके अत्यधिक मुनाफा बनाना है। इस तरह की घटनाएं हिन्दोस्तान में आम हो चुकी हैं। देश के कोने-कोने में मजदूर और किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और यह सिलसिला ब्रिटिश हुकूमत के समय से लेकर आज तक लगातार जारी है। भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर में, जब हिन्दोस्तानी पूंजीपति विश्वस्तरीय खिलाड़ी बनने चले हैं, यह शोषण और अमानवीय होता जा रहा है। वक्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने के लिये हमें एकजुट होकर संघर्ष करना होगा और एक नयी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने के लिये देश भर में मजदूरों और किसानों को लामबंध करना होगा।

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