औद्योगिक और कृषि मज़दूरों, किसानों, नौजवानों और छात्रों के कई संगठनों से जुड़े हजारों लोगों ने 10 मार्च को लुधियाना में जालंधर बाई-पास पर एक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने सी.ए.ए., एन.आर.सी. और एन.पी.आर. तथा हाल में दिल्ली में मुसलमानों पर राज्य द्वारा आयोजित हिंसा का विरोध किया।
प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए: “हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आपस में हैं भाई-भाई!”, “फासीवाद मुर्दाबाद!”, आदि। उन्होंने अपनी मांगों के समर्थन में एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें कहा गया कि सी.ए.ए., एन.आर.सी. और एन.पी.आर. को फौरन वापस लिया जाये, सभी डिटेंशन सेंटरों को बंद किया जाये, उनमें बंद सभी लोगों को रिहा किया जाये, सांप्रदायिक हिंसा भड़काना बंद किया जाये और हिंसा भड़काने वालों को गिरफ़्तार करके सज़ा दी जाये। प्रस्ताव में यह भी मांग की गयी कि शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों समेत सभी प्रदर्शनकारियों पर हर प्रकार के हमले रोके जायें तथा जे.एन.यू. और जामिया मिलिया के छात्रों पर हमले आयोजित करने वाले पुलिस अफ़सरों पर कार्यवाही की जाये।
सहभागी संगठनों के प्रतिनिधियों ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि दिल्ली में हाल में मुसलमानों पर किये गए हमलों और 1984 में सिखों के क़त्लेआम, दोनों में बहुत सी समानताएं हैं। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ये “सांप्रदायिक दंगे” नहीं थे, बल्कि सत्ताधारी पार्टी ने पूरे राज्य तंत्र के सहयोग के साथ इन्हें आयोजित किया था और अंजाम दिया था। वक्ताओं ने भाजपा सरकार की निंदा की, क्योंकि वह सी.ए.ए., एन.आर.सी. और एन.पी.आर. के ज़रिये लोगों को बांट रही है और मज़दूरों व किसानों की रोज़ी-रोटी पर हमलों, सार्वजनिक क्षेत्र के कारोबारों व शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी अत्यावश्यक सामाजिक सेवाओं के निजीकरण, हमारे जनवादी अधिकारों पर बढ़ते हमलों, आदि से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है। वक्ताओं ने उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं, दलितों और हुक्मरानों के कार्यक्रम का विरोध करने वाले सभी लोगों पर किये जा रहे हमलों की निंदा की।
प्रदर्शनकारियों ने सभी समुदायों, जातियों और धर्मों की महिलाओं, नौजवानों, छात्रों, बुद्धिजीवियों, किसानों और मज़दूरों से आह्वान किया कि एकजुट होकर नाजायज़ कानूनों के खि़लाफ़ और हमारे जनवादी अधिकारों पर किये जा रहे हमलों के खि़लाफ़ संघर्ष करें।