2 मार्च, 2020 को दिल्ली की ट्रेड यूनियनों ने केन्द्र सरकार द्वारा पेश किए गए बजट के विरोध में कनाट प्लेस स्थित बैंक ऑफ़ बड़ौदा से लेकर जंतर-मंतर तक जुलूस निकाला।
यह जुलूस लाल बैनरों और झंडों से सजा हुआ था। बैनरों पर लिखे नारे थे – ‘इंक़लाब ज़िन्दाबाद!’, ‘प्रस्तावित बजट वापस लो!’, ‘धर्म के नाम पर मज़दूर वर्ग की एकता को तोड़ना बंद करो!’, ‘न्यूनतम वेतन 21,000 लागू करो!’, ‘राज्य प्रायोजित हिंसा मुर्दाबाद!’, ‘जन-विरोधी बजट वापस लो!’, ‘संसद इजारेदार पूंजीपतियों का साधन है!’, ‘निजीकरण और उदारीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण के कार्यक्रम के खि़लाफ़ एकजुट संघर्ष तेज़ करें!’
सैकड़ों मज़दूरों का यह जुलूस जंतर-मंतर पर आकर एक सभा में तब्दील हो गया।
सभा को संबोधित करने वालों में शामिल थे – इंटक से अशोक सिंह, एटक से धीरेन्द्र शर्मा, सीटू से अनुराग सक्सेना, मज़दूर एकता कमेटी से संतोष कुमार, एच.एम.एस. से तरनी पासवान, ए.आई.यू.टी.यू.सी. से आर.के. शर्मा, यू.टी.यू.सी. से मोन्टू सरकार और सेवा से लता।
ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने अपने संबोधन में बताया कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने जो बजट पेश किया है वह जन-विरोधी और देश-विरोधी है। सरकार द्वारा 2019 में पूंजीपतियों को टैक्स में 1,44,000 करोड़ रुपये की छूट दी गयी थी। कुल मिलाकर पिछले 6 महीने में पूंजीपतियों को 1,69,000 करोड़ रुपये का सीधा फ़ायदा पहुंचाया गया है। इस बजट के ज़रिये बड़ी-बड़ी इजारेदार कंपनियों को सालाना 25,000 करोड़ रुपये का सीधा-सीधा फ़ायदा पहुंचाया जायेगा।
देश में आर्थिक मंदी आने का सीधा कारण है कि मज़दूरों किसानों की क्रय शक्ति कम हो गई है। अगर देश को आर्थिक मंदी से निकालना है तो लोगों का वेतन बढ़ाना होगा। अगर पूंजीपतियों को दिये जाने वाले वाले 1,69,000 करोड़ रुपये मज़दूरों और किसानों की आय को बढ़ाने में लगाये जायें तो आर्थिक मंदी को कम किया जा सकता है। सरकार का कहना है कि 2,10,000 करोड़ की आमदनी का लक्ष्य है। यह आमदनी सरकार सार्वजनिक संस्थानों – भारतीय जीवन बीमा निगम, भारतीय रेल, आयुध फैक्ट्रियां, बी.एस.एन.एल., एयर इंडिया आदि को कौड़ियों के दाम पर इजारेदार पूंजीपतियों को बेचेगी। यह सब उदारीकरण और निजीरकण के ज़रिये भूमंडलीकरण की नीति के तहत किया जा रहा है।
8 जनवरी की हड़ताल में 25 करोड़ से ज्यादा मज़दूरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल की थी। आज केन्द्र सरकार, धर्म के आधार पर नागरिक संशोधन अधिनियम को लाकर मज़दूर वर्ग और किसानों की एकता में फूट डालने का काम कर रही है। जिसका नतीजा है उत्तर-पूर्व दिल्ली का हत्याकांड। यह हिन्दोस्तानी राज्य द्वारा किये गये 1984 में सिखों के जनसंहार की तरह है। इससे राज्य का सांप्रदायिक चेहरा उजागर होता है। हमें मज़दूरों और किसानों के एक राज्य की स्थापना करनी होगी, जहां लोगों को सुख-सुरक्षा प्रदान करना राज्य की ज़िम्मेदारी होगी।
‘इंक़लाब ज़िन्दाबाद!’, ‘मज़दूर एकता ज़िन्दाबाद!’, ‘मज़दूर-विरोधी बजट वापस लो!’, ‘हम सब एक हैं!’, ‘न्यूनतम वेतन 21,000 रुपये लागू करो!’, आदि नारों के साथ सभा का समापन किया गया।