पानीपत के औद्योगिक क्षेत्र में ज्यादातर होजरी और धागे के कारखाने हैं। इस औद्योगिक क्षेत्र में हजारों की संख्या में मजदूर काम करते हैं, जो कि आस-पास की कालोनियों में किराये के मकानों में रहते हैं।
पानीपत के औद्योगिक क्षेत्र में ज्यादातर होजरी और धागे के कारखाने हैं। इस औद्योगिक क्षेत्र में हजारों की संख्या में मजदूर काम करते हैं, जो कि आस-पास की कालोनियों में किराये के मकानों में रहते हैं।
इस औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों के शोषण का कोई हिसाब नहीं है। मजदूरों को 12 से 18 घंटे काम करना पड़ता है। न्यूनतम वेतन से बहुत ही कम वेतन पर मजदूरों को काम करने पर मजबूर होना पड़ता है। ओवर टाईम का पैसा भी बहुत ही कम मिलता है। जिन मजदूरों को स्थाई रूप से रखा गया है उनके पदों को कम करके रखा जाता है ताकि उन्हें कम वेतन देना पड़े। उदाहरण के लिये एक कंपनी में एक मजदूर से काम तो फिटर का करवाया जाता है लेकिन उसको वेतन हेल्पर का दिया जाता है। ऐसी स्थिति होना वहां के लिये आम बात है। यहां की कंपनियों में महिला मजदूरों को दोहरे शोषण का सामना करना पड़ता है। महिला मजदूरों को उस वेतन से भी कम पर काम करना पड़ता है, जो कि पुरुष मजदूरों को न्यूनतम वेतन की जगह पर दिया जाता है।
पानीपत औद्योगिक क्षेत्र से तौलिये, बिछाने की चादरें, ओढ़ने की चादरें, गाऊन और अन्य कपड़े की वस्तुओं का निर्यात भारी मात्रा में किया जाता है। लेकिन यहां के मजदूरों के लिये कोई भी श्रम कानून लागू नहीं हो रहे हैं। यहां के मजदूरों को यूनियन का सदस्य बनने से रोका जाता है और यदि कोई यूनियन का सदस्य बन जाता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है।
मजदूरों को कंपनियों में टेंपरेरी तौर पर रखा जाता है ताकि उन्हें निकालने में किसी समस्या का सामना न करना पड़े और उन्हें दूसरी सुविधायें भी न देनी पड़े। जो मजदूर इन सब सुविधाओं के लिये आवाज़ उठाते हैं उन्हें या तो नौकरी से निकाल दिया जाता है या फिर गुंडों के ज़रिये डराया-धमकाया जाता है। यहां पर लेबर डिपार्टमेंट के इंस्पेक्टरों का काम भी देश के दूसरे हिस्सों जैसा ही है। वे भी पूंजीपतियों के मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिये, तथा अपनी जेबे भरने के लिये कोई कार्यवाही नहीं करते हैं। ज्यादातर मजदूरों को यहां पर ठेकेदारी के तहत ही रखा जाता है। कई कंपनियों में तो स्थाई मजदूरों से ज्यादा ठेकेदार के मजदूर हैं और ठेकेदारों के पास ठेके को लेने का कोई लाइसेंस नहीं है।
इन सब कठिन परिस्थितियों के बीच वहां पर मजदूरों के संघर्ष लगातार चल रहे हैं। एक कंपनी में मजदूरों ने लगभग एक महीने तक कंपनी के गेट पर धरना दिया, जिससे मैनेजमेंट दबाव में आया और मजदूरों की कुछ मांगों को माना। कुछ मजदूरों को बाहर कर दिया गया, तो वे इसके खिलाफ़ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। कई कंपनियों के मजदूरों ने अपने यूनियन स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कई कंपनियों के मजदूरों ने स्थापित यूनियन न होने के बावजूद अपना संघर्ष जारी रखते हुये, अन्य मजदूरों को लामबंद करना शुरू किया है।
यह बात तो साफ है कि पूंजीवादी व्यवस्था में सरकारों का काम होता है कि वे पूंजीपतियों के मुनाफों को सुनिश्चित करें। इसलिये कम्युनिस्टों को चाहिये कि मजदूर वर्ग को फौरी संघर्ष के साथ-साथ राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने और इस शोषण की पूंजीवादी व्यावस्था को उखाड़ फैकने के लिये लोगों को सचेत करे। इस पूंजीवादी व्यवस्था की जगह पर समाजवादी व्यवस्था स्थापित करने व कम्युनिज़्म की ओर बढ़ने के लिये संघर्ष करें।