स्पेन में रोजी-रोटी पर हमलों के खिलाफ़ जनसामूहिक प्रदर्शन

मई 2011 के आखिरी दो हफ्तों में स्पेन में दसों-हजारों लोग धरनों और प्रदर्शनों में निकल कर आ रहे हैं। राजधानी मैड्रिड में पुर्टा डेल सोल और कई अन्य सार्वजनिक इमारतों व स्थानों पर ये धरने और प्रदर्शन किये जा रहे हैं। लोग बेरोजगारी और सरकार के “कमर कसो” कदमों का विरोध कर रहे हैं, जिनके चलते स्वास्थ्य और जनकल्याण सेवाओं, पेंशन तथा सरकारी कर्मचारियों के वेतनों में कटौती की जा रही है पर

मई 2011 के आखिरी दो हफ्तों में स्पेन में दसों-हजारों लोग धरनों और प्रदर्शनों में निकल कर आ रहे हैं। राजधानी मैड्रिड में पुर्टा डेल सोल और कई अन्य सार्वजनिक इमारतों व स्थानों पर ये धरने और प्रदर्शन किये जा रहे हैं। लोग बेरोजगारी और सरकार के “कमर कसो” कदमों का विरोध कर रहे हैं, जिनके चलते स्वास्थ्य और जनकल्याण सेवाओं, पेंशन तथा सरकारी कर्मचारियों के वेतनों में कटौती की जा रही है पर साथ ही साथ, बैंकों और बड़े पूंजीपतियों को तमाम सहूलियतें दी जा रही हैं।

मैड्रिड, बारसेलोना, वैलेंसिया, सेविल्ल, ज़ारागोज़ा और बिलबाओ जैसे शहरों में सरकारी कटौतियों से खास रूप से पीडि़त नौजवानों ने प्रदर्शनों में पहल ली। इसके बाद अधिक से अधिक संख्या में सभी परिवार वाले और वरिष्ठ मजदूर भी इनमें शामिल हुये। मेहनतकश लोग सत्तारूढ़ स्पैनिश सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी (पी.एस.ओ.ई.) और विपक्ष की पोपुलर पार्टी (पी.पी.) दोनों से बहुत नाराज़ हैं क्योंकि ये दोनों पार्टियां पूंजीपतियों की सेवा करने तथा संकट का बोझ मेहनतकशों पर लादने में एक दूसरे से होड़ लगाती हैं। 22 मई, 2011को स्पेन में प्रांतीय और नगर निगम चुनाव हुये, जिनमें पी.एस.ओ.ई. सरकार की करारी हार हुई। चुनावों के दौरान भी जोरदार विरोध प्रदर्शन चलते रहे। चुनावों  से पहले विभिन्न स्थानीय चुनाव आयोगों तथा केन्द्रीय चुनाव आयोग ने प्रदर्शनों पर रोक लगा रखी थी। परन्तु सरकार ने अब तक विरोध प्रदर्शनों को रोकने या प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक इमारतों व स्थानों से हटाने के लिये पुलिस को भेजने की हिम्मत नहीं की है।

पुर्टा डेल सोल में मेहनतकश लोग बड़ी संख्या में जमा होकर अपनी मांगों की सूची पेश कर रहे हैं। पुर्टा डेल सोल के मेहनतकशों ने 16मांगों की सूची बनायी है जिसमें चुनाव प्रक्रिया का लोकतंत्रीकरण, आवास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा जैसे मूल अधिकारों की घोषणा, बैंकों और उद्योगों पर ज्यादा सरकारी नियंत्रण, सैनिक खर्च में कटौती और निजीकृत सार्वजनिक उद्योगों के पुनःराष्ट्रीयकरण शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों ने लोगों से आह्वान किया कि दोनों मुख्य पार्टियों, पी.एस.ओ.ई. और पी.पी. को वोट न दें। उन्होंने इस राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया का विरोध किया, जिसके चलते मेहनतकशों के हितों पर लगातार हमले होते रहे हैं जबकि इजारेदार कंपनियों और बैंकों के हितों की हिफ़ाज़त होती है, चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आये।

दुनिया के अनेकों पूंजीवादी देशों में लोग यह समझ रहे हैं कि बहुपार्टीवादी, प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र की व्यवस्था उन्हें इंसाफ नहीं दिला सकती बल्कि यह एक साधन है जिसके जरिये पूंजीपतियों की वह पार्टी सत्ता में आती है जो पूंजीपतियों के हितों की बेहतर सेवा कर सके। लोग सड़कों पर सार्वजनिक स्थानों पर निकलकर यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें इंसाफ चाहिये, कि संकट के लिये अमीरों से अदायगी करनी चाहिये।

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