इस्राइली सैनिकों ने गाज़ा में प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलायीं

15 मई को गाज़ा में नाक्बा के दिन इस्राइली सैनिकों ने गाज़ा-इस्राइल की सीमा पर इकट्ठे हुए सैकड़ों प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाईं। 1948 में जिस दिन इस्राइली जाऊनवादी राज्य का निर्माण किया गया था उसे  नाक्बा या “प्रलय का दिन” के रूप में याद किया जाता है। इस गोलीबारी में कम से कम 15लोगों की जान गयी और कई लोग घायल हुए।

15 मई को गाज़ा में नाक्बा के दिन इस्राइली सैनिकों ने गाज़ा-इस्राइल की सीमा पर इकट्ठे हुए सैकड़ों प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाईं। 1948 में जिस दिन इस्राइली जाऊनवादी राज्य का निर्माण किया गया था उसे  नाक्बा या “प्रलय का दिन” के रूप में याद किया जाता है। इस गोलीबारी में कम से कम 15लोगों की जान गयी और कई लोग घायल हुए।

63 वर्ष पहले हिंसक आतंकी अभियान के जरिये इस्राइल राज्य का निर्माण किया गया था, जिसके चलते आधुनिक इतिहास में सबसे बड़े पैमाने पर लोगों का बलपूर्वक प्रवसन हुआ। करीब 7 लाख फिलिस्तीनीयों को उनके घर से निकाला गया या उन्हें घर छोड़कर भागना पड़ा और उनकी जायदाद ज़ब्त कर ली गयी। उस समय से आज तक उन्हें अपने देश में वापस जाने के अधिकार से वंचित रखा गया है। एक अनुमान के मुताबिक 45 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी और उनके वंशज लेबनान, सीरिया, जोर्डन, और अन्य मुल्कों में बसे हुए हैं। हर वर्ष 15 मई को दुनिया भर में फिलिस्तीनी लोग और उनके समर्थक, उनके साथ हुई इस ऐतिहासिक नाइंसाफी के खिलाफ़ प्रदर्शन करते हैं और अपनी मातृभूमि पर वापस जाने की अपनी मांग को दोहराते हैं।

गाज़ा और पश्चिमी तट (वेस्ट बैंक) पर दसों -हजारों लोग सड़क पर उतर आये और कई लोगों के हाथों में उनके पुश्तैनी घरों की चाबी थी जिसे वे 1948 से खो चुके थे। पश्चिमी तट पर इस्राइली अधिकारियों ने 24 घंटे की नाकाबंदी की जिसमें सभी चैराहों और नाकों को बंद कर दिया गया।

उत्तरी गाज़ा में बेट हनौन शहर में हजारों लोगों ने इस्राइली सीमा की ओर जुलूस निकाली। पश्चिमी तट में रामल्लाह और येरूसलम के बीच कलान्दिया नाके पर इस्राइली सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया। इस हमले में 55 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है। हेब्रोन, वल्लाजेह, और येरूसलम में भी प्रदर्शनकारियों पर हमला किया गया।

रामल्लाह शहर में फिलिस्तीनी लोगों ने हाथ में बैनर और झंडे लेकर, अपने देश वापस जाने के अधिकार की मांग के नारे लगाते हुये प्रदर्शन किया। रामल्लाह के उत्तर में बिर्जेइत विश्वविद्यालय और पूर्व येरूसलम में इस्साविया में भी प्रदर्शनकारियों पर हमले हुए। सबसे बड़े हमलों में से एक हमला दक्षिण लेबनान के बाहर मारौं अल-रस गाँव में हुआ जहां इस्राइली कब्जे के खिलाफ़ लोग सीमा पर इकट्ठे हुए थे।

पश्चिमी तट पर अल-वालाजा गांव में फिलिस्तीनी और उनके साथ अन्तर्राष्ट्रीय समर्थकों ने गांव के लोगों  के साथ मिलकर उनकी जमीन को वापस लेने के लिए प्रदर्शन किया। उन्हें इस ज़मीन से बेदखल किया गया है चूँकि इस जमीन पर बंटवारे की दिवार बनायी जा रही है।

इस्राइल के कब्जे में गोलन हाईट पर सीरिया की सीमा पर बसे मज्दल शम्स गांव में ज़मीन पर अपना हक़ जताने वाले प्रदर्शनकारियों पर हमला किया गया। इस हमले में 100 से ज्यादा लोग घायल हुए। 1967 में इस्राइल ने सीरिया में गोलन हाईट पर हमला किया और बाद में गैरकानूनी कब्ज़ा जमाया।

15मई को दुनियाभर में फिलिस्तीनी शरणार्थियों और उनके समर्थकों ने प्रदर्शन आयोजित किये। 15 मई को गाज़ा में मानवीय सहायता ले कर जाते हुए “द स्पिरिट ऑफ राचेल कोर्री” नामक जहाज पर तथाकथित फिलिस्तीनी सुरक्षा क्षेत्र के अंदर इस्राइली नौसेना ने हमला किया।

2001 से इस्राइल और मिस्र ने गाज़ा पर ज़मीन, हवा और समुद्र की नाकेबंदी थोपी है और खासतौर से 2007 से और कड़े प्रतिबन्ध लगाये हैं। इस इलाके में 16 लाख लोग भीड़-भाड़ और अमानवीय हालातों में जीने को मजबूर हैं। वे पूरी तरह से बाहरी सहायता पर निर्भर हैं। 31 मई, 2010 को इस्राइली सेना ने गाज़ा के लिए सहायता सामग्री ले जा रहे जहाज “मावी मरमारा” पर हमला किया, जिसमें 9 लोगों की जान गयी। खबरों से पता चला है कि इस दिन को याद करने के लिए दुनियाभर से 1000 कार्यकर्ता – विद्यार्थी, नर्स, कलाकार, पत्रकार, फिल्मकार, वकील, अध्यापक इत्यादि जून में दर्ज़नों नौकाओं से गाज़ा पट्टी पर जाने की योजना बना रहे हैं, ताकि इस मानव-निर्मित त्रासदी और इस्राइली कब्ज़े और नाकेबंदी की क्रूरता को लोगों के सामने लाया जा सके। इस्राइली सरकार ने इन नौकाओं पर हमला करने की धमकी दी है।

इस्राइल का जाऊनवादी राज्य, अमरीका और यूरोप के अन्य साम्राज्यवादी राज्यों के समर्थन से, सैनिकी ताकत के ज़रिये फिलिस्तीनी इलाकों के गैरकानूनी कब्ज़े और नाकेबंदी को बनाये रखता है। लेकिन फिलिस्तीनी और अरब लोगों के साथ दुनियाभर के प्रगतिशील लोगों ने इस हालत को कभी भी स्वीकार नहीं किया है और इसके खिलाफ़ संघर्ष और अधिक तेज हो रहा है।

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