मिस्र अब भी उबल रहा है। केवल मुबारक के शासन के खत्म होने और अंतरिम सरकार के सत्ता में आने से मजदूर और मेहनतकश संतुष्ट नहीं हैं। लोग यह देख रहे हैं कि फ़ौज, जो कि मुबारक शासन की रीढ़ की हड्डी थी, उसकी हुकूमत आज भी बरकरार है, और अंतरिम सरकार मजदूर-विरोधी, अमरीका-परस्त और इस्राइल-परस्त रास्ते पर चल रही है। मिस्र के लोग बुनियादी परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।
मिस्र अब भी उबल रहा है। केवल मुबारक के शासन के खत्म होने और अंतरिम सरकार के सत्ता में आने से मजदूर और मेहनतकश संतुष्ट नहीं हैं। लोग यह देख रहे हैं कि फ़ौज, जो कि मुबारक शासन की रीढ़ की हड्डी थी, उसकी हुकूमत आज भी बरकरार है, और अंतरिम सरकार मजदूर-विरोधी, अमरीका-परस्त और इस्राइल-परस्त रास्ते पर चल रही है। मिस्र के लोग बुनियादी परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।
यह सभी जानते हैं कि मुबारक शासन ने अमरीका और इस्राइल के साथ करीबी आर्थिक और राजनयिक संबंध बनाये थे। उसने गाज़ा की नाकाबंदी और फिलिस्तीनी लोगों के अपनी मातृभूमि के अधिकार के संघर्ष पर हमला करने में अमरीका और इस्राइल का समर्थन किया था। मिस्र को हर साल अमरीका से 1.3 अरब अमरीकी डालर की सहायता मिलती आई है जो कि केवल इस्राइल को मिलने वाली सहायता से दूसरे नंबर पर है। लेकिन मिस्र में जनमत फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और लक्ष्य के पक्ष में है और इस्राइल के साथ करीबी संबंध बनाने के खिलाफ़ है जैसे कि मुबारक शासन के दौरान था।
मिस्र की “फिलिस्तीनी इंतिफादा के समर्थन में संयोजन समिति” ने 15 मई को गाज़ा पर प्रदर्शन निकालने का ऐलान किया। रफाह सीमा को लोगों और वस्तुओं के यातायात के लिए खोलने की मांग लेकर सरकार पर दबाव डालने के लिए यह प्रदर्शन आयोजित किया गया था। लेकिन सत्ताधारी फौजी कौंसिल ने इस प्रदर्शन पर रोक लगा दी। लोगों के दबाव के चलते अंत में सरकार को रफाह सीमा को लोगों के यातायात के लिए खोलने को मजबूर होना पड़ा। मिस्र के लोग गाज़ा पट्टी पर अमरीका और मिस्र के समर्थन से इस्राइल द्वारा थोपी गयी नाकाबंदी को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
कायरो से आ रही ख़बरों के मुताबिक लोग इस्राइली दूतावास पर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और इस्राइल के साथ संबंध खत्म करने तथा इस्राइल-मिस्र समझौते को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
इस्राइल और मिस्र के बीच रणनीतिक संबंधों के खिलाफ़ मिस्र के लोगों का बढ़ता विरोध फिलिस्तीनी लोगों के संघर्ष और अरब लोगों की एकता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मिस्र अरब देशों में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। करीब तीन दशक पहले जब से मिस्र-इस्राइल समझौते पर हस्ताक्षर किया गया, उस समय से मिस्र इस्राइली फ़ौज़ी कब्ज़े के खिलाफ़ फिलिस्तीनी और अरब लोगों के समर्थन के केंद्र से बदलकर इस इलाके में अमरीका और इस्राइल का पिट्ठू बन गया। फिलिस्तीनी और अरब लोगों के संघर्ष पर यह एक जबरदस्त हमला था। इसके बावजूद मिस्र के लोगों ने अपने फिलिस्तीनी भाईयों और बहनों के संघर्ष को समर्थन देना बंद नहीं किया, जबकि मुबारक शासन द्वारा उनकी आकांक्षाओं को बंदूकों और तलवारों से कुचला गया। मिस्र के लोग इन हालातों को और अधिक देर तक स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
मिस्र के लोग मांग कर रहे हैं कि अंतरिम सरकार इस्राइल को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने के समझौते को निरस्त करे। दरअसल मुबारक शासन द्वारा इस्राइल को प्राकृतिक गैस कम दामों में बेचने के समझौते में भ्रष्टाचार के लिए उसके खिलाफ़ तहक़ीक़ात की जा रही है। लोगों के दबाव के चलते अब मिस्र की अंतरिम सरकार गैस सौदे पर पुर्नविचार करने के बारे में सोच रही है।
इस महीने की शुरुआत में फिलिस्तीन के दो गुटों, हमास और फतह के बीच फिर से संबंध स्थापित करने के समझौते पर मिस्र की राजधानी कायरो में हस्ताक्षर किया गया। अमरीका-इस्राइल द्वारा फिलिस्तीनी लोगों की नाकाबंदी की नीति के खिलाफ़, अरब देशों के तमाम लोगों द्वारा फिलिस्तीनी और अरब लोगों की एकता बनाने की मांग की पृष्ठभूमि में यह समझौता किया गया है। इस समझौते से इस्राइली सरकार को बड़ा धक्का लगा है। हमास और फतह के बीच एकता फिलिस्तीनी लोगों के लिए एक सकारात्मक घटना है। हमास, जो कि गाज़ा पर शासन कर रहा है, उसे साम्राज्यवादी और जाऊनवादी केवल इसलिए “आतंकवादी” करार देते हैं, क्योंकि यह संगठन फिलिस्तीनी लोगों के मातृभूमि के अधिकार का समर्थन करता है।
खबरों से पता चलता है कि राजधानी कायरो और तेहरान में, मिस्र और ईरान के बीच संबंध पुनःस्थापित करने की दिशा में कदम उठाये जा रहे हैं। इन दो देशों के बीच संबंध उस समय तोड़ दिए गए थे जब मिस्र ने एकतरफा तरीके से इस्राइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
इस बीच, इस्राइल के प्रधानमंत्री द्वारा अपने विशेष सलाहकार इसाक मोल्हो को मिस्र की अंतरिम सरकार के साथ बातचीत के लिए उन्हें कायरो भेजना इस्राइली सरकार के संकट और खलबली को दर्शाता है।
मिस्र में अपने अधिकारों की हिफाज़त में मजदूर वर्ग का संघर्ष तेज हो रहा है। मुबारक शासन में मजदूरों के संघर्ष को बुरी तरह से कुचला गया था और प्रतिरोध करने के हक़ से उन्हे वंचित किया गया था। मौजूदा अंतरिम सरकार भी मजदूरों को कुचलने के लिए खुलकर हिंसा का इस्तेमाल कर रही है और मजदूरों के प्रतिरोध को गैरकानूनी करार देते हुए, गिरफ्तारी और यातना का इस्तेमाल कर रही है। लेकिन मेहनतकश लोग इन हमलों से डरे नहीं हैं। “बदलाव” के नाम पर मुबारक के हटाये जाने और अंतरिम सरकार द्वारा वही पुराने जन-विरोधी रास्ते पर चलने से लोग संतुष्ट नहीं हैं। वे चाहते हैं कि वे खुद अपने देश के भविष्य को तय कर सकें।
मिस्र और फिलिस्तीन के लोगों का संघर्ष पूरी तरह से जायज़ है और उसे दुनियाभर के मजदूर वर्ग और सभी इंसाफपसंद लोगों का समर्थन हासिल है। इस्राइली जाऊनवादी और उनके साम्राज्यवादी समर्थकों के खिलाफ़ अरब लोगों की एकता की सभी कोशिशों का समर्थन किया जाना चाहिये।