आर्थिक संकट के खिलाफ़ कम्युनिस्ट पार्टियों और वाम दलों का संयुक्त विरोध प्रदर्शन

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी – लेनिनवादी) लिबरेशन, रेवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी और फॉरवर्ड ब्लॉक ने 16 अक्तूबर, 2019 को नयी दिल्ली में संसद पर संयुक्त विरोध प्रदर्शन किया। “आर्थिक संकट का बोझ जनता पर डालना बंद करो!”, इस झंडे तले, सैकड़ों मज़दूरों, नौजवानों और महिलाओं ने जंतर-मंतर और जयसिंह रोड के चौक से संसद की ओर जुलूस निकाला। संसद मार्ग पुलिस स्टेशन पर प्रदर्शनकारियों को रोक दिया गया। वहां एक सार्वजनिक सभा की गई।

Economic crisisप्रदर्शनकारियों ने अपने हाथों में अपनी मांगें लिखी हुयी तख्तियां पकड़ी हुई थीं। इनमें मुख्य मांगें थीं – ‘सार्वजनिक संसाधनों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण बंद करो!’, ‘यह लोकतंत्र नहीं, इजारेदार पूंजीतंत्र है!’, ‘शोषण, लूट और दमन का राज नहीं चलेगा!’, ‘न्यूनतम वेतन 21,000 रुपए करो!’, ‘रक्षा और कोयला क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफ.डी.आई. को वापस लो!’, ‘बेरोज़गारों को बेरोज़गारी भत्ता दो!’, ‘सबको 10,000 रुपए मासिक पेंशन दो!’, ‘वृद्धों और विधवाओं को न्यूनतम 3000 रुपये मासिक पेंशन दो!’, ‘किसानों को उनकी लागत के डेढ़ गुणा दाम पर खरीदी सुनिश्चित करो!, आदि।

सभा को संबोधित करते हुए सहभागी दलों के वक्ताओं ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही है। सरकार ने हमसे वादा किया था कि बड़ी संख्या में रोज़गार पैदा करेगी, परन्तु आज बड़ी संख्या में मज़दूर काम से निकाले जा रहे हैं। गाड़ियों और कपड़ों से लेकर रोज़मर्रा की ज़रूरत के सामानों की बिक्री घट गयी है। सरकार फर्ज़ी आंकड़ों से इस आर्थिक संकट को छुपा रही है। इस संकट से लोगों का ध्यान हटाने के लिए सरकार नागरिकता को धर्म और संप्रदाय के साथ जोड़ रही है, सांप्रदायिक हिंसा और नफ़रत को बढ़ावा दे रही है। कभी सर्जिकल स्ट्राइक, कभी बालाकोट तो कभी कश्मीर के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है।

Economic crisisउन्होंने बताया कि सरकार बेरोज़गारी को दूर करने और मेहनतकश जनता की खरीदी की क्षमता को बढ़ाने के बजाय, पूंजीपति वर्ग को तरह-तरह की सहूलियतें देने में लगी हुयी है। पहले रियल स्टेट और एक्सपोर्ट क्षेत्र को 70,000 करोड़ रुपये की टैक्स माफ़ी दी गई। अभी हाल में, पूंजीपति वर्ग को 1 लाख 45 हजार करोड़ रुपये टैक्स माफ़ी के रूप में दिये गये। रिज़र्व बैंक से जिसमें जनता का धन है, 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये भी पूंजीपति वर्ग के हवाले किये गये हैं। उन्होंने कहा कि हुक्मरान पूंजीपति वर्ग को और अमीर बनाने के के लिये नोटबंदी और जी.एस.टी. लायी गई। इसके चलते लाखों-लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी चली गई। खेती-किसानी चौपट हो गयी।

वक्ताओं ने कहा कि हमारी मांग है कि रोज़गार पैदा करने के लिए सरकार सार्वजनिक निवेश को बढ़ाए। बेरोज़गारों को सरकार बेरोज़गारी भत्ता दे। सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाए। सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को बंद करे। बी.एस.एन.एल., आयुध (आर्डिनेंस) कारखानों, भारतीय रेल, एयर इंडिया, आदि का निजीकरण बंद करे। न्यूनतम वेतन 21000 रुपये को लागू करे। 10,000 रुपए मासिक पेंशन लागू करे। कृषि संकट को दूर करने के लिए किसानों की एकमुश्त कर्ज़ माफ़ी की जाये और उन्हें लागत की क़ीमत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाये।

माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी. राजा, कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी से संतोष कुमार, भाकपा (माले) लिबरेशन से कविता कृष्णन, आर.एस.पी. से आर.एस. डागर ने सभा को संबोधित किया।

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