एयर इंडिया के 800 विमान-चालकों की प्रभावशाली हड़ताल ने फिर एक बार साफ दिखाया है कि संप्रग सरकार एक व्यवस्थित तरीके से एयर इंडिया को बरबाद करने और उसका निजीकरण करने की नीति लागू करती आयी है। एयर इंडिया की इस बरबादी और निजीकरण के विरोध के संघर्ष का नेतृत्व, ऑल इंडिया कैबिन क्रू एसोसियेशन व स्थल कर्मचारियों और इंजीनीयर्स की यूनियन और एयर इंडिया मज़दूरों की दूसरी यूनियनों से साथ, इंडि
एयर इंडिया के 800 विमान-चालकों की प्रभावशाली हड़ताल ने फिर एक बार साफ दिखाया है कि संप्रग सरकार एक व्यवस्थित तरीके से एयर इंडिया को बरबाद करने और उसका निजीकरण करने की नीति लागू करती आयी है। एयर इंडिया की इस बरबादी और निजीकरण के विरोध के संघर्ष का नेतृत्व, ऑल इंडिया कैबिन क्रू एसोसियेशन व स्थल कर्मचारियों और इंजीनीयर्स की यूनियन और एयर इंडिया मज़दूरों की दूसरी यूनियनों से साथ, इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसियेशन (आई.सी.पी.ए.) ने दिया है, जिसके झंडे तले विमान-चालक अपना संघर्ष कर रहे हैं।
विमान-चालक अपने आत्मसम्मान के लिये लड़ रहे हैं, और साथ ही एयर इंडिया को बरबादी से बचाने व निजीकरण से रोकने के लिये। हाल की हड़ताल, एक ही मुद्दे पर दो वर्षों के अंदर दूसरी बार हड़ताल थी। विमान-चालकों का समर्थन न केवल एयर इंडिया के 40,000 कर्मचारियों की 18 यूनियनों ने किया बल्कि एयर इंडिया के व्यवसायी प्रबंधक भी सरकार की और एयर इंडिया के वर्तमान एम.डी., अरविंद जाधव की नीतियों से चिंतित हैं। जेट एयरवेज के विमान-चालकों के संगठन ने भी एयर इंडिया के विमान-चालकों का बिना झिझक समर्थन किया।
इस लेख में हम विमान-चालकों व एयर इंडिया के दूसरे कर्मचारियों द्वारा उठाये मुद्दों पर प्रकाश डालेंगे। हम साफ देखते हैं कि संप्रग सरकार ने और उसके नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने, एयर इंडिया का नियोजित तरीके से खात्मा करने के प्रयास के जरिये मज़दूर विरोधी और राष्ट्र-विरोधी हरकतें की हैं।
एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलयन के लिये एन.ए.सी.आई.एल. धारण कंपनी बनायी गयी थी। विलयन के पूर्व एयर इंडिया अंतर्राष्ट्रीय हवाई मार्गों पर चलती थी और इंडियन एयरलाइंस अंतर्देशीय हवाई मार्गों तथा पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और दक्षेस देशों में चलती थी। विलयन का कारण इन दोनों कंपनियों में तालमेल लाने वाली नयी कंपनी बनाना बताया गया था, ताकि वह दुनिया के बाजार में स्पर्धा कर सके। परन्तु विलयन के बाद की घटनाओं से स्पष्ट हो गया है कि विलयन का असली लक्ष्य एयर इंडिया को बरबाद करना और उसके निजीकरण के हालात तैयार करना था।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय के कुछ कदमों का उल्लेख नीचे किया गया है जिनकी वजह से एयर इंडिया का बाजार में हिस्सा कम हो गया और वह नुकसान ग्रस्त हो गयी।
विदेशी विमान सेवाओं से उड्डयन के ऐसे द्विपक्षीय समझौते किये गये जिनसे हिन्दोस्तानी बाजार का अत्याधिक हिस्सा विदेशी विमान सेवाओं को मिला। दूसरे शब्दों में, जबकि विदेशी विमान सेवाओं को हिन्दोस्तान में आने के लिये भारी प्रोत्साहन दिया गया, एयर इंडिया इन मार्गों से हट गया। ऐसा करने के कारणों में एक प्रमुख कारण विभिन्न निजी हितों का फायदा करना था। खास तौर पर एयर अरेबिया और एयर लुफ्थान्सा को हिन्दोस्तानी हवाई मार्गों के एक बहुत बड़े हिस्से में उड़ान भरने की इजाजत दी गयी। यह बात ध्यान देने योग्य है कि उस वक्त के नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल के इन दोनों कंपनियों के जी.एस.ए. के साथ नजदीकी के संबंध थे।
निजी कंपनियों में से चुनिंदा को अंतर्राष्ट्रीय हवाई मार्गों पर उड़ने की इजाजत दी गयी, पहले जेट को और फिर किंगफिशर को। ये विमान सेवायें एयर इंडिया से स्पर्धा में थीं और इन्होंने एयर इंडिया के बाजार को काटना शुरू किया।
मंत्रालय ने एयर इंडिया के नये विमानों की खरीद की योजना में फेरबदल की और 24 की जगह 69 विमानों की खरीद का आर्डर दिया जिससे पहले ही मुश्किल में फंसी विमान सेवा पूरी तरह दिवालिया हो गयी। बोईंग 777 और 787 विमानों का आर्डर दिया गया था, जो बड़े और बहुत ईंधन पीने वाले विमान हैं और सिर्फ लंबे सफर के लिये उपयुक्त होते हैं। इस सौदे से बोइंग कंपनी को बहुत फायदा हुआ जबकि इससे एयर इंडिया को चोट पहुंची। जैसे कि इतना ही काफी नहीं था, जब तक नये विमानों का आर्डर पूरा नहीं हुआ, एयर इंडिया को बोईंग 777 विमानों को भाड़े पर लेने के लिये बाध्य किया गया। यह ऐसे वक्त किया गया जब एयर इंडिया के पास मौजूद बोईंग 777 विमान उड़ाने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षित विमान चालक भी नहीं थे।
इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया को काटने के इरादे से एयर इंडिया एक्सप्रेस बनाई गयी। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने दोनों विमान सेवाओं के हवाई मार्गों पर सेवा चलाई जिसमें पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया शामिल थे। यह बहुत ज्यादा पैसों में विमानों को भाड़े पर लेने का बहाना खड़ा करने के लिये किया गया था। एयर इंडिया एक्सप्रेस में पहला दर्जा और बिज़नेस क्लास नहीं थे। जो भी एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के ग्राहक थे, उन्हें जेट एयरवेज़ और एयर अरेबिया के ग्राहक बनना पड़ा। एयर इंडिया एक्सप्रेस का धंधा सफलता का उदाहरण नहीं था और इससे एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के उच्च श्रेणी के यात्री दूसरी प्रतिद्वंद्वी विमान सेवाओं में चले गये।
एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के पूरी तरह मूल्य चुकाये विमानों को केमन द्वीप की बेनामी कंपनियों को कौड़ी के मोल बेचा गया और फिर उनसे ही भाड़े पर लिया गया। इस तरह इन दोनों विमान सेवाओं के मालमत्ते को लूटा गया।
इंडियन एयरलाइंस के नाम को पहले “इंडियन” में बदलने से और बाद में “एयर इंडिया” बनाने से इसके घरेलू धंधे को बहुत नुकसान हुआ है। उसका ब्रांड नाम नष्ट कर दिया गया है जिससे जेट एयरवेज़ को हिन्दोस्तानी बाजार में हावी होने में मदद मिली है।
विलयन के नाम पर एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस, दोनों को नष्ट किया गया है पर वास्तव में कोई एकीकरण नहीं किया गया। विलयन के इतने वर्षों के बाद, अभी तक दोनों विमान सेवाओं की एकीकृत आरक्षण व्यवस्था नहीं लागू की गयी है जो एकीकरण का पहला कदम है और एयर इंडिया द्वारा स्टार अलायेंस में शामिल होने के लिये निहायत जरूरी है। स्टार अलायेंस में शामिल होने से, यात्रियों द्वारा किसी भी सदस्य विमान सेवा में यात्रा करने से उनको लाभ होता है, जिसकी वजह से अधिक अंतर्राष्ट्रीय यात्री, सदस्य विमान सेवाओं की तरफ आकर्षित होते हैं। जानबूझ कर स्टार अलायेंस की सदस्यता की शर्तें पूरी करने में देरी करने से विमान सेवाओं को अनुमानित सालाना 1000 करोड़ रु. की हानि हुई है।
एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस के पास हिन्दोस्तान और विदेशों में बड़ी अचल सम्पत्ति है। इन पर अब निजी कंपनियों की नज़र है। मुंबई में कलीना इलाके की 127 एकड़ की जमीन, जी.वी.के. की एम.आई.ए.एल. कंपनी को मुफ्त में दी गयी है जबकि कंपनी को कानूनी सलाह इसके विपरीत दी गयी थी। इस जमीन की कीमत बाजार में 65,000 करोड़ आंकी गयी है। अगर यह पैसा लिया गया होता तो इसी से एयर इंडिया कई वर्षों तक मुनाफे में रहती। ऐसी भी ख़बर मिली है कि नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल की बेटी की कंपनी, पीकाक इन्वेस्टमेंट्स ने जी.वी.के. कंपनी में काफी पूंजी निवेश किया है। इसी तरह, दिल्ली और मुंबई की अलग-अलग जायजादें भी बंटने के लिये कतार में हैं। दिल्ली में 35,000 करोड़ की जमीन डी.आई.ए.एल. निजी कंपनी को सौंपने की प्रक्रिया मंत्रालय में है।
पहले की इंडियन एयरलाइंस के 32 फायदेमंद हवाई मार्गों से सेवा हटा दी गयी है जिनमें 80 प्रतिशत से भी अधिक सीटें भरी रहती थीं। ऐसा हिन्दोस्तानी और विदेशी प्रतिस्पर्धियों को फायदा दिलाने के लिये किया गया है।
महत्वपूर्ण हवाई मार्गों पर इंडियन एयरलाइंस की अंतरदेशीय उड़ानों के समय को बदल दिया गया है ताकि सबसे अच्छे समय निजी विमान सेवाओं को मिल जायें।
एयर इंडिया/इंडियन एयरलाईंस की प्रबंधन बनावट को बदल दिया गया है। प्रोफेशनल लोगों को हटा कर मंत्रालय के चमचों से भर दिया गया है, जिनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी पर कहने को यह “जवाबदेही सुनिश्चित” करने के नाम पर किया गया है। साफ तौर पर हितों की टक्कर है जब मंत्रालय के उच्च अधिकारी, जिन्होंने निजी कंपनियों को फायदा दिलाने का काम किया है, वे एम.आई.ए.एल., इंडीगो, आदि कंपनियों में बढि़या पदों पर आसन्न हैं।
ऊपर दिये तथ्यों से साफ है कि संप्रग सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से एयर इंडिया को नुकसान ग्रस्त कंपनी में तब्दील किया है, ताकि इसे तोड़ कर बेचा जा सके। इसी योजना का एक हिस्सा है कर्मचारियों के आत्मसम्मान पर हमला करना, उनके वेतन व भत्तों में कटौतियां करना, प्रबंधन की कार्यवाइयों पर प्रश्न उठाने वालों को निलंबित करना या नौकरी से निकालना और उन्हें हड़ताल पर उतरने के लिये बाध्य करना। उनकी योजना है कि इस तरह एयर इंडिया के कर्मचारियों को कंपनी की समस्याओं के लिये जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और कंपनी को जनता की आंखों में बदनाम किया जा सकता है। एयर इंडिया के कर्मचारियों को दृढ़ विश्वास है कि वर्तमान अध्यक्ष और एम.डी. अरविंद जाधव को ठीक इसी योजना को लागू करने के लिये नियुक्त किया गया है। इसीलिये एयर इंडिया के विमान-चालकों व दूसरे कर्मचारियों की मांग है कि जाधव को हटाया जाये और एयर इंडिया को एक मुनाफे वाली कंपनी से नुकसान ग्रस्त कंपनी में तब्दील करने के लिये उसके द्वारा किये गये घोटालों की जांच सी.बी.आई. से करायी जाये।
एयर इंडिया के विमान-चालकों व अन्य कर्मचारियों द्वारा अपनी कंपनी को दिवालिया होने से बचाने का, निजीकरण के विरोध का, और अपने आत्मसम्मान की रक्षा का संघर्ष एक जायज संघर्ष है। उनको देश भर के मज़दूरों का समर्थन प्राप्त है। उनका संघर्ष देशव्यापी निजीकरण विरोधी संघर्ष का एक हिस्सा है। रेलवे के चालकों, महानगरपालिका के मज़दूरों, विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों, आदि के यूनियनों ने इस संघर्ष को समर्थन दिया है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, एयर इंडिया के विमान-चालकों के इस संघर्ष को, निजीकरण के जरिये देश की संपत्ति की निजी कंपनियों द्वारा लूट के मजदूर वर्ग के संघर्ष में, एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान मानती है।