एयर इंडिया के विमान-चालकों ने महत्वपूर्ण संघर्ष जीता

एयर इंडिया के 800 से अधिक विमान-चालकों की हड़ताल, जिसकी अगुवाई उनके जुझारू यूनियन इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसियेशन (आई.सी.पी.ए.) ने की, 6 मई, 2011 को रात 10 बजे समाप्त हुई। तीन दिन तक नागरिक उड्डयन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों के साथ लगातार वार्ता करने के बाद विमान चालकों ने अपनी 10 दिन की हड़ताल को समाप्त किया।

एयर इंडिया के 800 से अधिक विमान-चालकों की हड़ताल, जिसकी अगुवाई उनके जुझारू यूनियन इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसियेशन (आई.सी.पी.ए.) ने की, 6 मई, 2011 को रात 10 बजे समाप्त हुई। तीन दिन तक नागरिक उड्डयन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों के साथ लगातार वार्ता करने के बाद विमान चालकों ने अपनी 10 दिन की हड़ताल को समाप्त किया।

विमान चालकों की ज़बरदस्त एकता, दूसरी विमान सेवाओं के चालकों के संगठनों से प्राप्त समर्थन तथा एयर इंडिया के सभी 40,000 कर्मचारियों जो इन्ही मुद्दों पर लड़ रहे हैं, उनके समर्थन को देखते हुये, सरकार को झुकना पड़ा, हालांकि इससे पहले सरकार ने हड़ताल को तोड़ने की हर तरह की कोशिश की थी।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयर इंडिया के अध्यक्ष एवं एम.डी.ने आई.सी.पी.ए.को मान्यता देने से इंकार किया तथा उनके कार्यालयों पर ताले लगा दिये। आई.सी.पी.ए.के मुख्य पदाधिकारियों को निलंबित या बर्खास्त किया गया। वार्ता के लिये विमान चालकों ने यह पहली शर्त रखी कि आई.सी.पी.ए.की मान्यता हटाने वाले आदेश को वापस लिया जाए, कि आई.सी.पी.ए.को विमान चालकों का एकमात्र प्रतिनिधित्वकारी संगठन माना जाए तथा सभी निलंबित व बर्खास्त किये गये कर्मचारियों को वापस लिया जाए। सरकार को ये मांगें माननी पड़ी।

हड़ताली विमान चालकों ने कई मुद्दे उठाये हैं, जिनसे यह पता चलता है कि एयर इंडिया के वर्तमान अध्यक्ष और एम.डी.अरविंद जाधव और भूतपूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल कई घोटालों में शामिल थे, जिनकी वजह से एयर इंडिया को एक नुकसान ग्रस्त कंपनी बना दिया गया (पढि़ये लेख ‘एयर इंडिया के विमान चालकों द्वारा कंपनी के निजीकरण और उसे दिवालिया बनाने के कदमों का विरोध’)। विमान चालकों ने यह खुलासा किया कि यह एयर इंडिया को पूरी तरह बीमार घोषित करने, देशी-विदेशी प्रतिस्पर्धी विमान सेवाओं की मदद करने, उन्हें बाजार का अधिक से अधिक हिस्सा दिलाने और फिर एयर इंडिया को दिवालिया बताकर उसका निजीकरण करने की साजिश का हिस्सा है। विमान चालकों ने अरविंद जाधव को बर्खास्त करने तथा सभी घोटालों की जाँच करवाने की मांग रखी है। उन्होंने साफ-साफ ऐलान किया है कि एयर इंडिया के दूसरे कर्मचारियों की तरह, वे इस विमान सेवा को एक मुनाफेदार कारोबार बनाने में योगदान देना चाहते हैं। उन्होंने साफ-साफ ऐलान किया है कि वे एयर इंडिया को दिवालिया बनाने तथा उसका निजीकरण करने की इस साजिश का ड़टकर विरोध करेंगे।

सरकार इन अनियमितताओं के आरोपों पर जल्दी ही जांच शुरु करने को मान गई है। पहले कदम बतौर, सरकार प्रतिदिन विमानों के इस्तेमाल को बढ़ाने और काकपिट कर्मियों के काम के घंटों को बढ़ाने के फौरी कदम लेने को मान गई है, ताकि एयर इंडिया को ज्यादा कुशल व स्पर्धाकारी बनाया जाए।

एयर इंडिया के विमान चालकों और अन्य कर्मचारियों ने अपने संघर्ष के जरिये इस महत्वपूर्ण बात को स्पष्ट किया है कि भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलयन जानबूझकर इस तरह किया गया है ताकि नये संगठन में नया जोश और उत्साह होने के बजाय असंतोष फैले। विलयन के पीछे दो कारण थे। एयर इंडिया ने अपनी विदेशी उड़ानों के लिये जरूरत से बहुत ज्यादा संख्या में बोइंग 777 और 787 विमान खरीदे थे, जोकि बोइंग कंपनी को लाभ पहुंचाने के इरादे से किया गया था, और जिससे एयर इंडिया को भारी नुकसान हुआ था। इस नुकसान को छिपाना एक कारण था। दूसरा कारण था देश के अन्दर और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में निजी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय विमानों को बढ़ावा देना और इंडियन एयरलाइंस को कमजोर करना, ताकि फिर उसका निजीकरण किया जा सके।

सरकार यह मान गई है कि एयर इंडिया के कर्मचारियों के विलयन संबंधी सभी मुद्दों की जांच करने के लिये गठित तीन सदस्य वाली धर्माधिकारी समिति अपने इस काम को प्राथमिकता देगी और नवंबर 2011 तक अपनी रिपोर्ट देगी। समिति एयर इंडिया के सभी प्रकार के कर्मचारियों व यूनियनों से बातचीत करेगी। वह दोनों विलयित विमान कंपनियों के कर्मचारियों के समान वेतन व काम की हालतों के मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर उठायेगी।

हड़ताल के दौरान एयर इंडिया प्रशासन और केन्द्र सरकार ने विमान चालकों के खिलाफ़ बहुत जलील प्रचार किया, यह कहकर कि विमान चालक सिर्फ ऊंचे वेतन मांग रहे हैं, कि विमान चालकों के ‘ऊंचे वेतन’ ही एयर इंडिया के संकट का कारण है। विमान चालकों ने इस बात का खंडन किया और कहा कि वे अपने वेतन में कटौती भी मानने को तैयार हैं अगर सरकार एयर इंडिया के नुकसानों के कारणों की जांच करने को तथा उसे संकट से निकालने की ठोस योजना लागू करने को तैयार है। विमान चालकों और सरकार के बीच जो समझौता हुआ, उससे यह पता चलता है कि एयर इंडिया की वर्तमान हालत तथा भविष्य पर विमान चालकों की चिंताओं को सरकार को जाय़ज स्वीकार करना पड़ा है।

आई.सी.पी.ए.की अगुवाई में संघर्ष करने वाले विमान चालकों ने हमारे देश के मजदूर वर्ग की ताकत को दर्शाया है, कि मजदूर वर्ग न सिर्फ अपने तत्कालीन हितों की रक्षा करने बल्कि अपने वर्ग व पूरे समाज के आम हितों की भी रक्षा करने के काबिल है। एयर इंडिया का निजीकरण मजदूर वर्ग और समाज के आम हित के खिलाफ़ है। मिसाल के तौर पर, इस निजीकरण से छोटे राज्यों और कम विकसित इलाकों के लोगों को कठिनाई होगी, क्योंकि जब निजी मुनाफा ही एकमात्र प्रेरक शक्ति होगी और पूरे देश में विमान सेवायें दिलाने की जरूरत जैसी समाज पक्षी सोच नहीं होगी, तो विमानों के भाड़े भी बहुत बढ़ जायेंगे।

इस समय यह समझना जरूरी है कि सरकार और प्रबंधन बस कुछ ही देर के लिये झुकने को मजबूर हुये हैं। एक महत्वपूर्ण जीत हासिल हुई है पर संघर्ष अभी भी जारी है। सरकार ने न तो निजीकरण की योजना को छोड़ा है और न ही अपना मजदूर विरोधी प्रचार रोका है। इस संघर्ष से अनुभव हासिल करके, एयर इंडिया के विमान चालक अवश्य अपनी सतर्कता बनाए रखेंगे और समझौते को लागू करवाने के लिये संघर्ष को जारी रखेंगे। सतर्कता और एकता पर उन्हें ध्यान देते रहना होगा।

मजदूर एकता लहर एयर इंडिया के विमान चालकों के जायज और सफल संघर्ष को सलाम करती है! एयर इंडिया के किसी भी अंश के निजीकरण को रोकने का संघर्ष आगे बढ़ायें। 

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