संपादक महोदय,
मैं यह पत्र मज़दूर एकता लहर के प्रकाशित लेख “जंग और दमन से न तो कश्मीर की समस्या हल होगी, न ही आतंकवाद ख़त्म होगा” के संदर्भ में लिख रहा हूं। इस लेख में आपने कश्मीर समस्या का गहरा विश्लेषण पेश किया है और जो कि इस विषय पर कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के असूलों पर आधारित भूमिका को साफ़ दिखता है। यह विश्लेषण ठोस हालातों और अनुभव के आधार पर किया गया है, जिसमें मौजूदा हालत के संदर्भ में इतिहास की गहरी समझ साफ झलकती है। कश्मीर का मुद्दा एक ऐसा मसला है जिसके आधार पर हमारे देश के हुक्मरान सबसे घटिया राजनीति करते हुए लोगों को “राष्ट्र-द्रोही” होने का आरोप लगाते है। ऐसा करते हुए वे इस विषय पर चर्चा और संवाद को रोकने की कोशिश करते हैं, जो इस मसले का असली हल निकालने के लिए बेहद ज़रूरी है, एक ऐसा हल जो हमारे देश के सभी लोगों की सुरक्षा और खुशहाली के हित में होगा।
पुलवामा में हुए आतंकी हमले में जिसमें सी.आर.पी.एफ. के 40 से अधिक जवान मारे गए थे और उसके बाद 26 फरवरी को हिन्दोस्तानी वायु सेना द्वारा की गयी जवाबी कार्यवाही की पृष्ठ भूमि में लिखा गया यह लेख बेहद महत्वपूर्ण है। इन घटनाओं के बाद कश्मीर में हर तरफ, सड़क से लेकर राजनीतिक क्षेत्र में दमन बढ़ गया है। कश्मीर में काम करने वाले कई राजनीतिक व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। आगामी लोकसभा चुनाव के माहौल में और कश्मीर में और देशभर में बसे कश्मीरियों पर हमले आयोजित किये जा रहे हैं।
इस लेख में कई महत्वपूर्ण मसलों को उठाया गया है, जिनका वर्तमान और भविष्य पर असर होने वाला है और उन पर गौर किया जाना चाहिए। इनमें से कुछ मसलों को मैं यहां दोहराना चाहता हूं:
कश्मीर का मसला एक राजनीतिक मसला है और इसकी जड़ यह है कि कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया गया है और यह आधुनिक हिन्दोस्तान के निर्माण से जुड़ी हुई एक समस्या है।
यदि कश्मीर में शांति स्थापित नहीं होती है तो, हिन्दोस्तान में कहीं और शांति स्थापित नहीं हो पायेगी।
कश्मीर की समस्या को “कानून और व्यवस्था” की समस्या मानकर नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इससे पहले आई सरकारों की दिवालिया नीतियों को ही और तेज़ी से लागू किया है।
इस मामले के जानकारों ने एकमत से बताया है कि कश्मीर समस्या का सैनिकी समाधान नहीं हो सकता।
हिन्दोस्तान के हुक्मरान कश्मीर को अपनी जायदाद मानते हैं। वे एक दिन दावा करते हैं कि कश्मीर हिन्दोस्तान का अभिन्न अंग है और दूसरे ही दिन सभी कश्मीरियों को पाकिस्तान का एजेंट करार देते हैं।
हिन्दोस्तान के कोने-कोने में लोगों ने बर्तानवी बस्तीवादियों से आज़ादी के लिए संघर्ष किया और अपनी जान कुर्बान की थी ताकि उनको भूख और गुरबत से छुटकारा मिले। लेकिन आज भी हम गुलाम हैं।
कश्मीर के लोग उन्हीं अधिकारों के लिए संघर्ष पर रहे हैं, जिसके लिए तमाम हिन्दोस्तान के लोग संघर्ष कर रहे हैं।
यह एक सरासर झूठ है कि कश्मीर की समस्या कुछ पाकिस्तानी “घुसपैठियों” की वजह से पैदा हुई है
कश्मीर समस्या की असली वजह है कश्मीर के प्रति हिन्दोस्तानी के हुक्मरानों की नीति, और इसमें पाकिस्तान की भूमिका गौण है।
हिन्दोस्तान के हुक्मरान वर्ग पाकिस्तान के टुकडे़ करके बांग्लादेश बनाने के बारे में शेखी बघारते हैं। लेकिन वे इस बात को भूल जाते है कि चूंकि पाकिस्तान ने भूतपूर्व पूर्वी-पाकिस्तान के लोगों की आकांक्षाओं का आदर नहीं किया और इसलिए वहां के लोग उसके खि़लाफ़ उठ खड़े हुए। वर्ना पाकिस्तान के टुकडे़ करना संभव नहीं होता।
पुलवामा में हुई आतंकी घटना में कई विरोधाभास नज़र आते हैं। यह मामला संभवतः वैसे ही है, जैसे कि आम तौर पर पूंजीवादी राज्यों की नीति होती है, जहां देश के भीतर और बाहर आतंकी गिरोहों को समर्थन दिया जाता है, ताकि वे इस तरह की वारदातें आयोजित करते रहें और लोगों के बीच डर फैलाते रहें। इसमें अमरीकी साम्राज्यवाद की भी भूमिका हो सकती है जो कि ईरान पर हमले की तैयारी कर रहा है और इसके लिए वह अलग-अलग राज्यों को अपनी नीति के पीछे लामबंध कर रहा है। हिन्दोस्तानी राज्य इन सभी साजिशों से पूरी तरह से वाक़िफ़ है और अपने देश के लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए वह “आतंकवाद पर जंग” चलाने का दिखावा कर रहा है।
इन सभी बातों के मद्देनज़र, मैं इस लेख के निष्कर्ष को दोहराना चाहता हूं कि पाकिस्तान के साथ जंग किसी भी समस्या का हल नहीं है। हम सभी कम्युनिस्टों को अंधराष्ट्रीवादी लाइन को ठुकराना चाहिए और कश्मीर के लोगों की समस्या का असूलों के आधार पर समाधान निकालने का समर्थन करना चाहिए। हमें तमाम जंग-भड़काऊ प्रचार और पाकिस्तान के साथ जंग का विरोध करना चाहिए।
आपका
नारायण