उत्तर प्रदेश के 40 लाख राज्य कर्मचारियों ने 6 फरवरी, 2019 से 7 दिनों की हड़ताल पर जाने का ऐलान किया। सभी कर्मचारी मौजूदा पेंशन योजना को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। राज्य के तमाम शिक्षक, इंजिनीयर, तहसीलदार, और परिवहन विभाग के कर्मचारियों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया।
मज़दूरों की हड़ताल के जवाब में राज्य सरकार ने 8 फरवरी से ज़रूरी सेवाएं कानून (एस्मा) लागू कर दिया और सभी विभागों और कारपोरेशनों में 6 महीने के लिए किसी भी तरह की हड़ताल और प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। राज्य के मुख्य सचिव ने यह आदेश जारी किया जो कि सोमवार से लागू किया गया। यदि इस कानून को तोड़ा जाता है तो किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ़्तार किया जा सकता है। इलाहाबाद उच्च अदालत ने मज़दूरों की हड़ताल को “गैर कानूनी” घोषित कर दिया और सरकार को हड़ताल कर रहे मज़दूरों और उनकी यूनियन के खि़लाफ़ अनुशासनहीनता की कार्यवाही करने का आदेश दिया। उच्च अदालत ने वरिष्ठ अधिकारियों को कर्मचारियों की हाजिरी और उनकी प्रदर्शन कार्यवाही का विडियो रिकॉर्ड बनाने का आदेश दिया।
अदालत के कड़े फैसले के चलते कर्मचारियों को अपनी हड़ताल वापस लेने को मजबूर होना पड़ा।
नयी पेंशन योजना के खि़लाफ़ कर्मचारियों का संघर्ष एक साल से अधिक समय से चल रहा है। 16 नवम्बर, 2018 को आक्रोशित मज़दूरों ने केंद्रीय रेलमंत्री को लखनऊ में एक सभा से खदेड़ दिया था। कई अन्य राज्यों के कर्मचारी नयी पेंशन योजना का विरोध कर रहे हैं और उन्होंने बताया कि नयी पेंशन योजना के तहत उनको केवल 700-800 रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में मिलेंगे, जबकि पुरानी पेंशन योजना के तहत उनको 9000 रुपये प्रति माह मिलने थे। नयी पेंशन योजना के तहत उनको अपने वेतन का 10 प्रतिशत जमा करना होता है और उतनी ही रकम सरकार जमा करती है। इस रकम को सरकार इक्विटी शेयर में निवेश करती है। इस निवेश की गयी रकम पर जो फायदा मिलता है उसे ही पेंशन देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह नयी पेंशन योजना (एन.पी.एस.) बाज़ार से जुडी है और इस पर निर्धारित आय की गारंटी नहीं होती है, जैसे कि पुरानी पेंशन योजना (जी.पी.एफ.) में हुआ करता था।
जैसे-जैसे कर्मचारी इसके असली असर से वाकिफ होते जा रहे हैं, देशभर के तमाम सरकारी कर्मचारियों के सभी तबकों के बीच इस नयी पेंशन योजना (एन.पी.एस.) के खि़लाफ़ विरोध बढ़ता ही जा रहा है। जब इस नयी पेंशन योजना को लागू किया गया था उस समय सरकार ने इसके असली असर के बारे में कर्मचारियों को अवगत नहीं कराया था, कि जब वे 60 वर्ष के हो जायेंगे तो उनको कितनी पेंशन मिलेगी।