सरकार द्वारा घोषित कर्ज़ माफी से किसान निराश

राजस्थान की नवगठित कांग्रेस सरकार ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की नई सरकारों के नक्शे क़दम पर चलते हुए, 18 दिसंबर को कृषि कर्ज़ माफ़ी की घोषणा की थी। विधानसभा चुनावों के दौरान, कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि वह सत्ता में आने के 10 दिनों के भीतर ही इन 3 राज्यों में किसानों का कर्ज़ माफ़ करेगी। जबकि राहुल गांधी यह दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी अपनी बात पर अटल रही है तथा कृषि संकट को कम करने की दिशा में ठोस क़दम उठा रही है, तो प्रधानमंत्री मोदी ने इसे एक ’राजनीतिक स्टंट’ कहा है। हालांकि, भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश राज्य चुनावों के प्रचार के दौरान गन्ना उगाने वाले किसानों की कर्ज़ माफ़ी का वादा किया था। इसी प्रकार की घोषणाएं पंजाब, कर्नाटक और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी की हैं।

परन्तु, देशभर के किसान और उनके संगठन अपने अनुभव के आधार पर यह समझ रहे हैं कि इन घोषणाओं पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। वे जानते हैं कि चुनावी वादे एक बात हैं और उनका वास्तव में अमल होना दूसरी। उनका अनुभव बताता है कि पूंजीपतियों की इन पार्टियों द्वारा की गई कोई भी घोषणा, चाहे कर्ज़ माफ़ी की हो या न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने की या फिर किसानों के बैंक खातों में नकद राशि डालने की, ये किसानों की दुर्दशा को दूर करने का प्रयास नहीं हैं, बल्कि लोगों को बुद्धू बनाने और अपनी-अपनी पार्टियों को बढ़ावा देने की कोशिशें हैं।

हर ऐसे राज्य में जहां पिछले कुछ वर्षों में कर्ज़ माफ़ी की घोषणा की गई थी, नीतिगत घोषणाओं और लागू करने के कार्यों के बीच एक बड़ा अंतर रहा है। ख़बरों के मुताबिक, चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पंजाब – में अप्रैल 2017 से शुरू हुई अवधि के दौरान क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा की गयी थी। इसके पश्चात 24 दिसंबर, 2018 तक प्रस्तावित राशि का केवल 40 प्रतिशत ही माफ़ किया गया था। और तो और, लक्षित लाभार्थियों के सिर्फ आधे अंश को लाभ हुआ था। इसके पीछे कई कारण हैं।

सबसे पहले, क़र्ज़ माफ़ी के साथ कई शर्तें जोड़ी गई हैं। महाराष्ट्र में 15,000 रुपये प्रति माह से अधिक पेंशन पाने वालों को कर्ज़ माफ़ी से बाहर रखे जाने की बात की गई थी। पंजाब और उत्तर प्रदेश में कर्ज़ माफ़ी केवल छोटे और सीमांत किसानों, जिनके पास 5 एकड़ से कम ज़मीन है, के लिए घोषित की गई थी। जून 2017 में घोषित की गयी पंजाब क़र्ज़ माफ़ी की कुल रकम 2,000 करोड़ रुपयों की थी, जो कि लक्षित 10,000 करोड़ रुपयों की राशि के 20 प्रतिशत से भी कम थी । इन सभी में किसानों के एक बड़े हिस्से को बाहर रखा गया है।

दूसरी बात यह है कि सरकारों ने कर्ज़ माफ़ी लागू करने के समय की कट-ऑफ डेट निर्धारित की है। उदाहरण बतौर, हाल ही में बनी मध्य प्रदेश सरकार ने मार्च 2018 को कट-ऑफ डेट के रूप में घोषित किया था, जिससे खरीफ उपज के लिए अप्रैल या मई में कर्ज़ लेने वाले किसानों को कर्ज़ माफ़ी का लाभ नहीं मिलेगा।

इसके अलावा, महाराष्ट्र में छूट के मापदंडों को कई बार बदला गया है। प्रारंभ में, राज्य सरकार ने क़र्ज़ माफ़ी घोषित करते समय, एक किसान परिवार को एक इकाई माना था। बाद में, यह शर्त बदल दी गई और कहा गया कि उन सभी किसानों को कर्ज़ माफ़ी का लाभ मिलेगा, जिनके पास एक कर्ज़ की बकाया रकम थी। एक और बदलाव की घोषणा की गई थी कि 2016 में जिन किसानों के कर्ज़ों को चुकाने की शर्तें बदली गई थीं, उन्हें भी 1.5 लाख रुपये कर्ज़ की सीमा तक कर्ज़़ माफ़ी का लाभ मिलेगा। इस प्रकार से, कर्ज़ माफ़ी की शर्तों में बार-बार बदलाव से भारी संख्या में किसान इससे वंचित रह गए हैं।

कई मामलों में, छूट की रकम अनिश्चित रखी गई, कितना कर्ज़ा माफ़ किया जायेगा उसकी रकम बदली जाती रही और अंत में उसकी घोषणा इतनी देर से की गई कि ज़रूरतमंद किसानों को सही समय पर उसका लाभ नहीं मिल सका। पिछले साल सर्दियों के दौरान, किसानों ने अपने पति/पत्नी और वृद्ध माता-पिता के साथ लंबी कतारों में खड़े रहकर कई दिनों तक डिजिटल एप्लिकेशन दाखिल किए। कई दिनों तक इंतजार करने के बाद जब कुछ किसानों का कर्ज़ माफ़ किया गया, तो उन्हें अभी भी उन कर्ज़ों पर ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है। और जिन लोगों को बिल्कुल भी राहत नहीं मिली, वे अभी भी अपने आवेदनों की जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

न केवल किसानों को अपनी पात्रता साबित करने और कर्ज़ माफ़ी प्राप्त करने में कई कठिनाइयां हुईं, बल्कि वे नए कर्ज़ प्राप्त करने में भी असमर्थ थे क्योंकि माफ़ किये गये कर्ज़ों के भुगतान के रद्द हो जाने पर बैंक नए कर्ज़ देने के अनिच्छुक थे।

कर्ज़ माफ़ी किसानों की मांगों का केवल एक पहलू है, जिस पर वे आंदोलन कर रहे हैं। वे अपनी उपज के लिए लाभकारी दाम और लागत की क़ीमतों में कमी की मांग कर रहे हैं, ताकि वे खेती से अपनी आजीविका सुरक्षित कर सकें और अपने व अपने परिवारों के लिए रोज़ी-रोटी प्रदान कर सकें। आज, अधिकांश किसान अपनी सबसे बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं और कर्ज़ लेने व न चुका पाने के दुष्चक्र में फंस गए हैं। किसी विशेष तारीख पर बकाया कर्ज़ की माफ़ी उनकी समस्याओं का हल नहीं है।

किसानों की मांगों के एक मौलिक और स्थायी समाधान के लिए, राज्य को किसानों की आजीविका की गारंटी देने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। इसके लिए, इसे लाभकारी दामों पर सभी कृषि उपज की सार्वजनिक खरीदी के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। राज्य को सार्वजनिक खरीदी, भंडारण और परिवहन के लिए आवश्यक निवेश करना चाहिए। राज्य को उपज के थोक और खुदरा वितरण के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए ताकि गांवों और शहरों की कामकाजी आबादी को अच्छी गुणवत्ता की खाद्य और आवश्यक वस्तुएं सस्ती क़ीमतों पर उपलब्ध हों।

पूंजीपति विभिन्न बहानों का उपयोग करते हैं यह जायज़ ठहराने के लिए कि राज्य कृषि उपज की खरीदी तथा उसका थोक और खुदरा वितरण क्यों नहीं कर सकता। राज्य और केंद्र सरकारों के पास धन का अभाव एक ऐसा बहाना है। उत्पादक और शहरों व देहातों के मज़दूर, जो इन बुनियादी वस्तुओं का उपभोग करते हैं, उनके बीच विवाद पैदा करने के लिए यह कहा जाता है कि अगर किसानों को लाभकारी दाम दिए गए तो मज़दूरों के लिये वस्तुओं की क़ीमतें बहुत महंगी हो जायेंगी। मज़दूरों और किसानों को इन झूठे प्रचारों को खारिज़ करना होगा।

यह स्पष्ट है कि किसानों की आजीविका का संकट तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक मेहनतकशों की रोज़ी-रोटी को सुरक्षित करने की दिशा में अर्थव्यवस्था को नहीं चलाया जायेगा। यही एकमात्र तरीका है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि किसानों को इंसान लायक ज़िन्दगी जीने को मिले और मेहनतकशों को सभी ज़रूरी चीजें अच्छी गुणवत्ता के साथ, मुनासिब दाम पर उपलब्ध हों। किसानों और बाकी मेहनतकश जनता के हित आपस में विरोधी नहीं हैं। मज़दूरों और किसानों को अपने सांझे हितों के आधार पर अपनी एकता बनानी होगी और सभी मेहनतकशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लक्ष्य के साथ, व्यवस्था में आमूल परिवर्तन लाने के लिये संगठित होकर संघर्ष करना होगा। मज़दूरों और किसानों को अपनी हुकूमत स्थापित करने के लिये संघर्ष करना होगा, ताकि सभी मेहनतकशों के हितों को पूरा करने की दिशा में अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके।

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