कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने, ललकार लगाई है,
बरसों से कुचली जनता की आस आई है!
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने, ललकार लगाई है,
बरसों से कुचली जनता की आस आई है! (२)
आज़ाद वतन हम अपना करें,
जंजीरों को अपने टुकडे करें!
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने ललकार लगाई है,
बरसों से कुचली जनता की आस आई है!
1) कावेरी का पानी खेतों में,
गावों में है फिर क्यूँ प्यास यहाँ?
नंगल से है बिजली शहरों में,
कुचों में है फिर क्यूँ अँधेरा?
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने ललकार लगाई है,
बरसों से कुचली जनता की आस आई है!
2) बंगाल बिहार की धरती ने,
कोयला और लोहा लाख दिया!
पंजाब की धानी धरती ने,
अनाज से अपने देश भरा!
गलियों में है फिर क्यूँ भूख यहाँ?
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने ललकार लगाई है,
बरसों से कुचली जनता की आस आई है!
3) भारत की गुलामी ख़त्म करें,
मुल्क अपने को इक नवजीवन दें!
ग़ुरबत से ना कोई उजड़े जहाँ,
ऐसे इक देश की रचना करें!
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने ललकार लगाई है,
बरसों से कुचली जनता की आस आई है!
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने!