पार्टी के कार्यकर्ताओं की गोष्ठी में महिला मुक्ति के रास्ते पर चर्चा : शोषण पर आधारित समाज को ख़त्म करके ही महिलायें अपनी मुक्ति हासिल कर पायेंगी

Meeting on women Issue पार्टी के लगभग सौ नौजवान कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली में 4 फरवरी को आयोजित एक गोष्ठी में महिला मुक्ति के सवाल पर बड़े जोश के साथ चर्चा की। स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राओं, कामकाजी युवतियों और युवकों ने कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी द्वारा आयोजित इस गोष्ठी में बहुत ही उत्साह के साथ भाग लिया। उन्होंने समाज की इस ज्वलंत समस्या पर बड़ी भावुकता के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान किया और इस मुद्दे को हल करने के लिये संगठित होने के विषय पर कई अहम सुझाव पेश किये।

Meeting on women Issueपार्टी के लगभग सौ नौजवान कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली में 4 फरवरी को आयोजित एक गोष्ठी में महिला मुक्ति के सवाल पर बड़े जोश के साथ चर्चा की। स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राओं, कामकाजी युवतियों और युवकों ने कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी द्वारा आयोजित इस गोष्ठी में बहुत ही उत्साह के साथ भाग लिया। उन्होंने समाज की इस ज्वलंत समस्या पर बड़ी भावुकता के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान किया और इस मुद्दे को हल करने के लिये संगठित होने के विषय पर कई अहम सुझाव पेश किये।

कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की एक सदस्या ने महिलाओं के दमन के स्रोत तथा महिला मुक्ति के रास्ते के विषय पर एक प्रस्तुति के साथ चर्चा की शुरुआत की।

मानव समाज के विकास के बारे में मार्क्स और एंगेल्स के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर वक्ता ने इस प्रचलित सोच का खंडन किया कि महिलाओं का दमन हमेशा ही होता रहा है, कि पुरुषों का महिलाओं पर हावी होना ‘स्वाभविक’ है। उन्होंने समझाया कि प्राचीन समाज में महिलाओं का रुतबा आज से कहीं ज्यादा ऊंचा था। मानव जीवन को जन्म देने और पालने-पोसने में तथा जीवन के लिये ज़रूरी भौतिक साधनों के उत्पादन में पुरुषों के साथ बराबर के साझेदार बतौर, महिलाओं का समाज में बहुत महत्वपूर्ण और सम्मानजनक स्थान हुआ करता था।

एंगेल्स की प्रमुख रचना, ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ में किये गये विश्लेषण से समझाते हुये, वक्ता ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के दमन की जड़ निजी संपत्ति की उत्पत्ति और वर्गों में समाज के विभाजन में है। “जब प्रौद्योगिकी के विकास से मनुष्य के लिये अपनी ज़रूरत से अधिक उत्पादन करना संभव हो गया, तब समाज में असमानतायें उभरकर आने लगीं। कुछ लोगों ने अत्यधिक उत्पादन का ज्यादा बड़ा हिस्सा हथियाने का साधन प्राप्त कर लिया जबकि दूसरों को इससे वंचित किया गया। यह निजी संपत्ति (भूमि, मवेशी, औजार और उत्पादन के अन्य साधन) और वर्गों में समाज के बंटवारे की शुरुआत थी – निजी संपत्ति और दूसरों के श्रम का शोषण करने के साधनों के मालिकों का एक वर्ग और वह दूसरा वर्ग जिसके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी, जिसे जीने के लिये अपने श्रम को बेचना पड़ता था।

“इसी प्रक्रिया ने समाज में महिलाओं के स्थान और परिवार के रूप पर भी अपना असर डाला। भूतपूर्व प्राचीन समाजों में बच्चों का पालन-पोषण और खुशहाली समाज के सभी सदस्यों की ज़िम्मेदारी हुआ करती थी। परंतु जब निजी संपत्ति की उत्पत्ति हुई, तब पुरुष (जो श्रम के स्वाभाविक आवंटन के चलते, अत्यधिक उत्पादन के लिये मुख्यतः ज़िम्मेदार था) को निजी संपत्ति, यानी उत्पादन के साधनों का मालिक माना जाने लगा। जिनके पास निजी संपत्ति थी, उनकी कोशिश थी यह सुनिश्चित करना कि संपत्ति अपने ही खून के वारिसों के हाथ में जाये, किसी और के हाथ में नहीं। इस तरह, अत्यधिक

उत्पादन को हथियाने की भूमिका और निजी संपत्ति के मालिक की भूमिका पुरुष की बनी, जबकि महिलाओं की मुख्य भूमिका जन्मदाता के रूप में मानी जाने लगी, जिनके जीवन का एकमात्र औचित्य था उन संतानों को जन्म देना जो अपने पिता की संपत्ति के वारिस हो सकें।

“जैसे-जैसे उत्पादन की प्रक्रिया में प्रगति के साथ-साथ, मानव समाज अलग-अलग पड़ावों से गुजरता गया – गुलामी, सामंतवाद और अंत में पूंजीवादी समाज – वैसे-वैसे निजी संपत्ति का रूप भी बदलता गया, पहले गुलाम, फिर मवेशी, कृषि औजार इत्यादि, फिर और आगे बढ़कर उत्पादन के उन्नत से उन्नत साधन, मशीनरी और पूंजी। इनमें से हरेक पड़ाव एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण पर आधारित था और इसके साथ-साथ परिवार का रूप भी बदलता गया, परंतु पुरुष निजी संपत्ति का मालिक माना जाता रहा, जबकि महिला का दर्ज़ा पुरुष से नीचे ही रहा।

“अंत में जिस प्रकार के एक-वैवाहिक परिवार का विकास हुआ, जिसके तहत महिला अपने ससुराल की चारदीवारी में अंदर बंद हो गई, वह पूरे समाज के लिये परिवार का नमूना बन गया, उन अधिकांश परिवारों के लिये भी, जिनकी कोई निजी संपत्ति न थी और जो अपना श्रम बेचकर जीते थे। इसके आधार पर कई पहलुओं को समझा जा सकता है, जैसे कि बाहरी दुनिया से महिलाओं का अलगाव, परिवार और समाज में महिलाओं की भूमिका का अवमूल्यन, महिलाओं पर शारीरिक अत्याचार, इत्यादि।”

वक्ता ने समझाया कि पूंजीवाद में महिलाओं पर अत्याचार और उनके साथ भेदभाव ख़त्म नहीं हुआ है। पूंजीवादी समाजों में महिलाओं पर दोहरा शोषण होता है, मज़दूर बतौर तथा समाज में व घर में पुराने प्रकार के अत्याचार और भेदभाव। हिन्दोस्तान में महिलायें जातिवादी दमन और सामंती रिवाज़ों का भी शिकार हैं। सरमायदारों का राज्य महिलाओं के इस बहुतरफा दमन को बरकरार रखता है, जायज़ ठहराता है तथा उसके ज़रिये समाज के सभी उत्पीड़ित तबकों को दबाकर रखता है, संपूर्ण मज़दूर वर्ग के वेतनों और काम की हालतों को निम्मनतम स्तर तक घटाता है। हमारे हुक्मरानों द्वारा महिलाओं के दमन के लिये सभी पुरुषों को दोषी ठहराने की कोशिशों का पर्दाफाश करते हुये, वक्ता ने यह स्पष्ट किया कि महिलाओं का दमन समाज में एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण के साथ शुरू हुआ, निजी संपत्ति के साथ, उत्पादन के साधनों के चंद लोगों की मालिकी में हो जाने के साथ और समाज के अधिकांश लोगों की संपत्ति-विहीनता के साथ शुरू हुआ। पूंजीपति मज़दूर और उसके परिवार को मुश्किल से दो वक्त की रोटी के लिये मज़दूरी देता है परंतु मज़दूर के जीने और फिर से काम पर आने के लिये महिला द्वारा घर में की गई मेहनत को पूंजीवादी समाज में कोई मान्यता नहीं दी जाती, न ही उसका कोई हिसाब-किताब होता है।

वक्ता ने इससे यह निष्कर्ष निकाला कि अगर महिलाओं का दमन हमेशा नहीं होता था, अगर किसी समय समाज में महिलाओं का सम्मानजनक स्थान हुआ करता था, तो सामाजिक हालतों को बदला भी जा सकता है और महिलाओं के दमन को खत्म किया जा सकता है।

अतः महिलाओं के उद्धार की मूल शर्त यह है कि एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण और उत्पादन के साधनों की निजी मालिकी को ख़त्म किया जाये। महिलाओं और पुरुषों को मिलकर इंसान द्वारा इंसान के हर प्रकार के शोषण को ख़त्म करने के लिये और समाजवाद की स्थापना के लिये व कम्युनिज़्म की ओर आगे बढ़ने के लिये संघर्ष करना होगा। समाजवाद ही समाज में महिलाओं को अपना सम्मान, मुक्ति और समानता वापस दिला सकता है, वक्ता ने समझाया।

उन्होंने इस पर ध्यान दिलाया कि हमारे संघर्ष का निशाना अपने देश की पूंजीवादी व्यवस्था है, जिसकी अगुवाई लगभग 150 इजारेदार पूंजीवादी घराने करते हैं। उत्पादन के सभी प्रमुख साधनों की मालिकी और नियंत्रण उन्हीं के हाथों में है। वे हिन्दोस्तानी राज्य पर नियंत्रण करते हैं और यह राज्य उन्हीं के हितों की हिफाज़त करता है, उन्हीं के कार्यक्रम को बढ़ावा देता है। अर्थव्यवस्था की दिशा उनकी अधिक से अधिक मुनाफ़ों की लालच को पूरा करने के लिये तय की जाती है। देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया का खुलासा करते हुये, उन्होंने स्पष्ट किया कि हालांकि हमारे पास वोट डालने का अधिकार है, परन्तु हमारे पास अपने उम्मीदवारों का चयन करने, चुने गये प्रतिनिधियों से हिसाब मांगने या हमसे विश्वासघात करने पर उन्हें वापस बुलाने का कोई तंत्र नहीं है। अपने जीवन पर असर डालने वाले फैसलों को लेने में जनता की कोई भूमिका नहीं है। इस तरह अधिकांश महिलाओं और पुरुषों को राजनीतिक सत्ता से पूरी तरह बाहर रखा जाता है।

वक्ता ने कई उदाहरणों से दिखाया कि हमारे हुक्मरान किस तरह हमें धर्म, जाति, समुदाय, भाषा, इलाका, आदि के आधार पर बांटते हैं। वे खास समुदायों को निशाना बनाकर कत्लेआम और जनसंहार आयोजित करते हैं। यह राज्य की मशीनरी की पूरी सहायता के साथ किया जाता है। पुलिस और सुरक्षाबल या तो मूकदर्शक बने रहते हैं या फिर कातिलों की मदद करते हैं और पीड़ितों पर हमले करते हैं। इन जनसंहारों को आयोजित करने वालों, खासतौर पर ऊंचे से ऊंचे आधिकारिक पदों पर बैठे इनके आयोजकों को कभी सज़ा नहीं मिलती।

वक्ता ने यह साफ-साफ समझाया कि महिलाओं को बेइज्ज़त करने वाले तथा महिलाओं की असमानता व दमन को उचित ठहराने वाले तरह-तरह के सामंती और पिछड़े रिवाज़ों व अभ्यासों को बरकरार रखना हमारे हुक्मरानों के लिये बहुत फायदेमंद है। हिन्दोस्तानी राज्य महिलाओं को सुरक्षा दिलाने में नाकामयाब साबित हो चुका है। कई नौकरियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है और उन्हें सबसे पहले निकाल दिया जाता है। महिलायें काम के स्थान पर यौन शोषण तथा तरह-तरह के उत्पीड़न का शिकार बनती रहती हैं और अक्सर अपनी रोज़ी-रोटी को बचाने के लिये उन्हें इनके बारे में चुप रहने को मजबूर होना पड़ता है। अधिकारियों और सुरक्षाबलों द्वारा महिलाओं का बलात्कार और दमन अन्याय के खिलाफ़ जन-विरोधों को कुचलने का एक ज़रिया है। बड़े-बड़े नेता और मंत्री महिलाओं को बेइज्ज़त करने व महिलाओं के दमन को उचित ठहराने वाले विचारों और रिवाज़ों का खुलेआम प्रचार करते हैं।

इसीलिये, जब तक वर्तमान व्यवस्था चलती रहेगी, तब तक महिलायें अपनी असमानता और शोषण से मुक्ति नहीं पा सकेंगी, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने या चाहे कितने ही चुने गये प्रतिनिधियों के पदों पर महिला प्रतिनिधियां बैठी हों।

हमारे संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये, हमें आंदोलन में उस प्रचलित विचार का पर्दाफाश और खंडन करना होगा कि वर्तमान राज्य और उसका संविधान सही है, कि सिर्फ एक या दूसरी पार्टी हमारी समस्याओं के लिये ज़िम्मेदार है और हमें इस राज्य व व्यवस्था की हिफाज़त करनी चाहिये, इन्हें बरकरार रखना चाहिये। हमें इस भ्रम को तोड़ना होगा कि एक पार्टी की सरकार को बदलकर दूसरी पार्टी की सरकार लाने से हमारी समस्यायें हल हो जायेंगी। हमें उस खोखले सपने का भी खंडन करना होगा कि आरक्षण के ज़रिये सत्ता के पदों पर अधिक संख्या में महिलाओं को बिठाकर, हिन्दोस्तानी समाज में महिलाओं की समस्यायें हल हो जायेंगी।

हमारे संघर्ष का उद्देश्य है एक ऐसे नये राज्य की रचना करना, जिसमें संप्रभुता लोगों के हाथों में होगी और मेहनतकश महिला व पुरुष खुद अपना शासन करेंगे। उस राज्य में अर्थव्यवस्था की दिशा जनसमुदाय की लगातार बढ़ती ज़रूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये तय की जायेगी, न कि इजारेदार पूंजीवादी घरानों के अधिकतम मुनाफ़ों की लालच को पूरा करने के लिये। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये, उत्पादन के साधनों को समाज की मालिकी में लाना होगा और उत्पादन तथा वितरण की प्रक्रिया को पुनर्गठित करना होगा। इसका यह मतलब है कि हमें पूंजीवाद को ख़त्म करना होगा और समाजवाद का निर्माण करना होगा।

ऐसी व्यवस्था में ही महिलायें संगठित होकर आगे आ सकेंगी और राज्य से यह मांग कर सकेंगी कि जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं को समानता सुनिश्चित हो। महिलायें यह सुनिश्चित कर पायेंगी कि उनके अधिकारों का किसी भी बहाने हनन न हो और हनन करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाये। सिर्फ ऐसी ही व्यवस्था, जो इजारेदार पूंजीपति वर्ग द्वारा अधिकांश मेहनतकश महिलाओं और पुरुषों के शोषण की हालतों को मिटाने के कदम उठायेगी, वही महिलाओं पर आज हो रहे दमन और भेदभाव से उनके उद्धार की हालतें पैदा कर सकेगी। वक्ता ने सभा में उपस्थित सभी महिलाओं और पुरुषों से आह्वान किया कि इस पैगाम को अपने स्कूल-कालेजों, काम की जगहों, रिहायशी मोहल्लों आदि में दूर-दूर तक फैलायें।

वक्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ ऐसी राजनीतिक पार्टी, जो पूंजीवादी शोषण को ख़त्म करने और समाजवाद का निर्माण करने तथा मेहनतकश जनसमुदाय को सत्ता में लाने पर वचनबद्ध है, वह ही पार्टी के अंदर हर स्तर पर महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर सकती है। कई उदाहरणों के साथ उन्होंने बताया कि कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी में महिलाओं की सक्रिय और अगुवा भूमिका यह दर्शाती है कि हमारी पार्टी पूंजीवादी शोषण को खत्म करने तथा समाजवाद का निर्माण करने के संघर्ष को अगुवाई देने में, महिलाओं को कम्युनिस्ट भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संगठित करने पर वचनबद्ध है।

नये राज्य का निर्माण करने के इस संघर्ष में महिलाओं को आगे होना होगा, क्योंकि यही उनके उद्धार की अनिवार्य शर्त है। कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी उपस्थित सभी जवान महिलाओं और पुरुषों से आह्वान करती है कि कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के सदस्य बनें और इस संघर्ष को अगुवाई देने के लिये आगे आयें। इन शब्दों के साथ उन्होंने प्रस्तुति को समाप्त किया।

प्रस्तुति के बाद सभी भागीदारों को छोटे-छोटे ग्रुप में बांटा गया। हर ग्रुप में उन्होंने प्रस्तुति में उठाये गये विभिन्न मुद्दों पर सक्रियता से चर्चा की। अपने-अपने गु्रप में नौजवान महिलाओं और पुरुषों ने खुलकर उन सभी परिस्थितियों की बात की जिनमें उन्हें तरह-तरह से बेइज़्ज़त किया जाता है। उन्होंने इनका सामना करने के लिये संगठित होने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। इनमें से कई युवतियां व युवक किसी सार्वजनिक मंच पर पहली बार बात कर रहे थे। उनके आत्मविश्वास और बातों की स्पष्टता बहुत ही उत्साहजनक थी।

इसके बाद प्रत्येक ग्रुप से एक प्रतिनिधि चर्चा के विषयों की समीक्षा प्रस्तुत करने के लिये मंच पर आयी। गु्रपों में की गई चर्चा से उभरकर आने वाले कुछ अहम मुद्दे इस प्रकार थे:

हमारे हुक्मरान, इजारेदार पूंजीपति, लोगों को पिछडे़पन में रखने तथा जाति और समुदाय के आधार पर बांटकर रखने की पूरी कोशिश करते हैं, ताकि हम वर्तमान व्यवस्था को मान जायें और उस पर सवाल न उठायें। वे “बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ” जैसे शानदार नारे देते हैं परन्तु जब वे हमारे स्कूलों-कालेजों में अच्छी शिक्षा नहीं दिला सकते, हमें अच्छी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा नहीं दिला सकते और हमारी लड़कियों व महिलाओं को सड़कों आदि पर सुरक्षा नहीं दिला सकते, तो ये नारे बड़े खोखले लगते हैं।

हमें वर्तमान व्यवस्था का लगातार पर्दाफाश करते रहना होगा। हमें इस व्यवस्था के खिलाफ़ नौजवानों के गुस्से को अपनी ताक़त बनाकर, इस व्यवस्था को बदलने के लिये संगठित होना होगा। जब हम चुनावों में अपने उम्मीदवारों का चयन कर सकेंगे, अपने चुने गये प्रतिनिधियों से हिसाब मांग सकेंगे और उन्हें अपने पदों से वापस बुला सकेंगे, जब हम बहुसंख्या के हित में कानून बना सकेंगे और फैसले ले सकेंगे, तब ही हम सही माइने में खुद अपना शासन करने में सक्षम होंगे और यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि व्यवस्था हमारे हित में काम करेगी।

हमारे माता-पिता, भाई और पति – वे हमारी समस्याओं के स्रोत नहीं बल्कि इस व्यवस्था के शिकार हैं। हमें घर में इन विषयों पर खुलकर चर्चा करनी चाहिये और अपने विचारों के लिये उनका समर्थन हासिल करना चाहिये।

हमारी पार्टी महिलाओं और नौजवानों को बहुत कुछ सीखने और अपने विचारों को प्रकट करने का पूरा मौका देती है। पार्टी हमें अपने अधिकारों के संघर्ष में नेता बनने का प्रशिक्षण दे रही है। आइये, हम महिलाओं के उद्धार के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये, कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के नेतृत्व में एकजुट हों।

सभी कार्यकर्ता पार्टी की अगुवाई में संगठित होने तथा वर्तमान शोषण की व्यवस्था को बदलने के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित थे। सभा बड़े उत्साह के वातावरण में समाप्त हुई।

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