प्रिय संपादक,
प्रिय संपादक,
19मार्च, 2011के दिन पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमरीकी युद्धखोरों ने लिबिया पर संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश का बहाना लेकर खुल्लम-खुल्ला हमला किया। ठीक आठ साल पहले, 19मार्च, 2003के दिन पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमरीकी युद्धखोरों ने बिना संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश से इराक पर खुल्लम-खुल्ला हमला किया था। दोनों में क्या अंतर है? बर्तानवी-अमरीकी हमलावरों को अपने नव-उपनिवेशवादी हितों को आगे बढ़ाने के लिये कोई भी बहाना काफी है अगर उससे उनकी कठपुतली सरकार स्थापित हो जाती है। इस बार बर्तानवी-फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों द्वारा धोखाधड़ी से तैयार किया गया और प्रसारित, संयुक्त राष्ट्र संघ का आदेश, लिबियाई राज्य के आंतरिक मामलों और अंतरदेशीय समस्याओं में सरेआम दखलंदाजी है। पूरे प्रसार माध्यम में लगातार यह नगाड़ा बजाया गया है कि “मुआम्मार ग़द्दाफी अपने ही लोगों को मार रहा है”, और वह एक “दुष्ट तानाशाह” और “उन्हें वहां के लोगों की जान बचाने के लिये हमला करना पड़ेगा”। यह बर्तानवियों-अमरीकियों की एक अच्छी बकवास है जिसे अफग़ानिस्तान, इराक और 1999की युगोस्लाविया पर नाटो बम-बरसाने के लिये इस्तेमाल किया जा चुका है। इसका असली मकसद एक नव-उपनिवेशवादी सत्ता स्थापित करना है जो बर्तानवी-अमरीकी हमलावर गुट के हितों की वफादारी से सेवा करेगी। ऐसी कठपुतली सरकारें इराक व अफग़ानिस्तान में पहले ही स्थापित की जा चुकी हैं, परन्तु हमलावरों को वहां के लोगों के हथियारबंद प्रतिरोध को दबाने में बहुत मुश्किल हो रही है। आज के जमाने में, पश्चिमी यूरोप व अमरीकी युद्धखोरों की सच्चाई दुनियाभर में कम्युनिस्ट व मज़दूरों के साहित्य से साफ तौर पर विदित है।
क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ,
जलाऊद्दीन अंसारी
लंदन (यूनाइटेड किंग्डम)