पश्चिमी अफ्रीका के आयवरी कोस्ट देश में एक जबरदस्त गृहयुद्ध शुरू हो गया जब साम्राज्यवादी ताकतों ने उस देश में सत्ता परिवर्तन लाने के कदम उठाये। रिपोर्टों के अनुसार फ्रांस, अमरीका और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की शह में अलस्साने उआतारा की ताकतों ने एक हजार तक लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। साम्राज्यवादियों ने वर्तमान राष्ट्रपति लारेंट बाग्बो की जगह उआतारा को लाने की मंशा जता दी है।
पश्चिमी अफ्रीका के आयवरी कोस्ट देश में एक जबरदस्त गृहयुद्ध शुरू हो गया जब साम्राज्यवादी ताकतों ने उस देश में सत्ता परिवर्तन लाने के कदम उठाये। रिपोर्टों के अनुसार फ्रांस, अमरीका और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की शह में अलस्साने उआतारा की ताकतों ने एक हजार तक लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। साम्राज्यवादियों ने वर्तमान राष्ट्रपति लारेंट बाग्बो की जगह उआतारा को लाने की मंशा जता दी है।
फ्रांस और नाईजीरिया ने 30मार्च, 2011को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक प्रस्ताव रखा, जिसमें उन्होंने आयवरी कोस्ट के अधिकारियों को उआतारा को मान्यता देने की मांग की। यह उआतारा के लिये संकेत था कि वह बाग्बो पर सैन्य हमला शुरू कर सकता है। उआतारा की ताकतों ने राजधानी यामास्सूक्रो और बंदरगाह शहर सेन पेद्रो सहित देश के लगभग सभी इलाकों में कब्जा जमा लिया है। अब लड़ाई वहां की वाणिज्यिक राजधानी, अबिदजान पर नियंत्रण के लिये चल रही है।
फ्रांस के संयुक्त राष्ट्र संघ के राजदूत, जिराल्ड अराड ने कह दिया था, “एक तरह से इस प्रस्ताव के पारित करने से बाग्बो को हमने अपना अंतिम संदेश भेज दिया है जो बहुत ही सरल है कि बाग्बो को हटना होगा।” फ्रांस एक पहले की उपनिवेशवादी ताकत है जिसके हितों का आयवरी कोस्ट से गहरा संबंध है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में पारित प्रस्ताव ने जनता पर कहर ढाने वाले गृहयुद्ध को हरी झंडी दे दी। अनुमान लगाया गया है कि हाल के महीनों में आयवरी कोस्ट से 10लाख लोग पलायन कर गये हैं। पिछले कुछ दिनों में यह संख्या और भी तेजी से बढ़ी है। बहुत से लोगों ने सीमा पार करके पड़ोसी देश लाइबेरिया में शरण ली है और अब वहां शरणार्थी खेमों में अतिभीड़ की वजह से एक बहुत भयंकर मानवीय संकट खड़ा हो गया है।
पिछले गृहयुद्ध से आयवरी कोस्ट में फ्रांस की सैनिक उपस्थिति बनी हुयी है और अब उसने अपनी फौज को और बढ़ा लिया है। उसके 1400सैनिकों ने देश के मुख्य हवाई अड्डे पर अपना नियंत्रण जमा लिया है। हवाई अड्डे पर ऐसा कब्जा एक उपनिवेशी हरकत है। अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवीय चिंता की आड़ में, फ्रांस ने आयवरी कोस्ट पर अपना प्रत्यक्ष कब्जा जमाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
आयवरी कोस्ट में कत्लेआम, फ्रांस द्वारा अफ्रीका में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश का सीधा नतीजा है। अमरीकी राज्य सचिव हिलेरी क्लिंटन ने खुल्लम-खुल्ला गृहयुद्ध में बागियों को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। अपने साम्राज्यवादी हितों को बढ़ाने के लिये साम्राज्यवादी लुटेरों ने अफ्रीका के कई हिस्सों में बवाल और अराजकता की परिस्थिति खड़ी कर दी है।
सामाजिक सहूलियतों में कटौती, पूजीवादी लूट और हमलावर जंगों के खिलाफ लंदन में एक जबरदस्त प्रदर्शन सामाजिक सहूलियतों व सार्वजनिक सेवाओं में कटौतियों, पूजीपतियों के बचाव में सहायता और एशिया व अफ्रीका में साम्राज्यवादी जंगों के खिलाफ लंदन की गलियों से होते हुये 5लाख लोगों ने 26मार्च, 2011के दिन एक जबरदस्त जुलूस निकाला व प्रदर्शन किया। मीलों लंबा प्रदर्शन हाइड पार्क तक पहुंचा और दोपहर से शाम तक कंधे से कंधा मिलाकर लोगों का जुलूस चलता रहा।
प्रदर्शनकारियों ने नारे लगा कर अपनी मांगें बुलंद की, जैसे कि “जंग में कटौती करो, न कि जनसेवाओं में”, “जन सेवा के लिये धन, न कि पूजीपतियों को बचाने के लिये”, “हमें लोगों की सत्ता चाहिये”, इत्यादि।
ब्रिटिश सरकार वित्तीय अल्पतंत्रवादियों के मुनाफे को बरकरार रखने के लिये मेहनतकश लोगों पर संकट का बोझ डालने की कोशिश कर रही है। ब्रिटेन में कटौतियों के कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं:
- जनता पर खर्च होने वाली राशि में चार वर्षों में 8,100करोड़ पौंड की कटौती – यानि कि विभागों के खर्चे में औसतन 19प्रतिशत की कटौती
- जन कल्याण में अतिरिक्त 700करोड़ पौंड की कटौती
- सार्वजनिक क्षेत्र की पेंशन राशि में कर्मचारियों के योगदान में 350करोड़ पौंड की बढ़ोतरी
- पेंशन की शुरुआती उम्र बढ़ाई गयी
- रेलगाडि़यों के टिकटों में 2012से मुद्रास्फीति से 3प्रतिशत ज्यादा बढ़ोतरी
सरकार ने जानबूझ कर अपने लक्ष्य का 80प्रतिशत हिस्सा खर्चे में कटौती से किया न कि आयकरों को बढ़ा कर। पहले से ही अतिअमीर 2500करोड़ पौंड के आयकर की छूट पाते हैं। ब्रिटेन की सरकार ने बैंकों के मुनाफों को बचाने के लिये नोर्दर्न राक का राष्ट्रीयकरण किया और रायल बैंक आफ स्काटलेंड व लौयड्स बैंकिंग गुट का एक अंश खरीद लिया है।
इन जबरदस्त कटौतियों से सबसे गरीब और कमजोर लोगों पर बहुत बुरा असर होने लगा है। विभागों में कटौतियों से उच्च शिक्षा और अच्छे दर्जे की स्वास्थ्य सेवा, एक अधिकार होने की जगह विशेषाधिकार बन जायेगा। 82,000परिवार अपने घरों से वंचित हो जायेंगे। बच्चों के लिये सुविधायें घटायी जा रही हैं और रेल यात्रा के किराये बढ़ाये जा रहे हैं।
कटौतियां करने की सफाई राष्ट्रीय कर्जे को घटाने के बहाने दी जा रही है जो सितम्बर 2010में 84,290करोड़ पौंड तक पहुंच गया था। प्रदर्शनकारियों ने ध्यान दिलाया कि ऐतिहासिक तौर पर राष्ट्रीय कर्जा जंग के दौरान बढ़ता है। ब्रिटेन तो फाकलेंड, बाल्कन, इराक, अफग़ानिस्तान और अब लिबिया पर हमलावर जंगों में शामिल रहा है। ऐसे अन्यायपूर्ण युद्धों के लिये धन सार्वजनिक तिजोरी से लिया जाता है जबकि इसका फायदा पूंजीपतियों को मिलता है जो युद्ध के जरिये अपने आपको समृद्ध बनाते हैं और दूसरे देशों के तेल व दूसरे मूल्यवान संसाधनों पर कब्जा जमाते हैं। इराक व अफग़ानिस्तान के आक्रमक युद्धों पर 2000करोड़ ब्रिटिश पौंड खर्च हो चुके हैं। अफग़ानिस्तान के युद्ध पर सालाना 450करोड़ पौंड खर्च होते हैं और ब्रिटेन का प्रधान मंत्री कहता है कि ब्रिटेन के सैनिक अफग़ानिस्तान में कम से कम 2014तक रहेंगे। ब्रिटेन की सरकार अब अमरीका-नाटो ताकतों के साथ लिबिया के युद्ध में सक्रियता से भाग ले रही है। केमरान की सरकार ने आम घोषणा कर दी है कि ब्रिटेन की सैन्य ताकत को अव्वल दर्जे का बनाये रखने के लिये उसे मजबूत बनायेगी। दूसरे शब्दों में, वह और भी आक्रामक युद्धों की योजना बना रहा है। अतः सामाजिक क्षेत्र में कटौतियों की खिलाफत, बर्तानवी-अमरीकी व दूसरे साम्राज्यवादी ताकतों के अन्यायपूर्ण युद्धों की खिलाफत के साथ नज़दीकी से जुड़ी है।
लंदन में इतना विशाल विरोध प्रदर्शन दिखाता है कि शासकों और शासकों की नीतियों को ब्रिटेन में मेहनतकश लोग गंभीरता से चुनौती दे रहे हैं। वे सुनिश्चित करना चाहते हैं कि अमीरों के मुनाफे को बचाने के लिये, शासक, लोगों से भुगतान कराने में सफल न हो सकें।