17मार्च, 2011से लिबिया पर, उसके आधुनिक इतिहास में सबसे बर्बर साम्राज्यवादी हवाई, समुद्री और ज़मीनी हमले किये जा रहे हैं। अमरीकी और यूरोपीय पनडुब्बियों, युद्ध पोतों व लड़ाकू विमानों से छोड़े गये हजारों बमों और मिसाइलों से लिबिया के सैनिक अड्डों, हवाई अड्डों, सड़कों, बंदरगाहों, तेल भंडारों, हथियार के भंडारों, टैंकों, अस्त्र वाहनों, विमानों तथा सेनाओं को नष्ट किया जा रहा है। इसमें सैकड़ों नागरि
17मार्च, 2011से लिबिया पर, उसके आधुनिक इतिहास में सबसे बर्बर साम्राज्यवादी हवाई, समुद्री और ज़मीनी हमले किये जा रहे हैं। अमरीकी और यूरोपीय पनडुब्बियों, युद्ध पोतों व लड़ाकू विमानों से छोड़े गये हजारों बमों और मिसाइलों से लिबिया के सैनिक अड्डों, हवाई अड्डों, सड़कों, बंदरगाहों, तेल भंडारों, हथियार के भंडारों, टैंकों, अस्त्र वाहनों, विमानों तथा सेनाओं को नष्ट किया जा रहा है। इसमें सैकड़ों नागरिक मारे जा चुके हैं। गद्दाफी-विरोधी ताकतों को दर्जनों सी.आई.ए. व एस.ए.एस. विशेष सेनायें प्रशिक्षण व सलाह दे रही हैं तथा उनके लिये निशानों के नक्शे तैयार कर रही हैं। गद्दाफी की सरकार के खिलाफ़ गृह युद्ध को अमरीका और नाटो ताकतों द्वारा अगुवाई दी जा रही है।
समाचार सूत्रों के अनुसार, इस बड़े पैमाने पर साम्राज्यवादी सैनिक समर्थन और लिबिया के उड़ान क्षेत्र और समुद्री तट पर साम्राज्यवादियों के नियंत्रण के बावजूद, अमरीका-नाटो समर्थित विद्रोही दल कई जगहों पर पीछे हटने को मजबूर हो रहे हैं। उनके पीछे हटने का कारण यह है कि उन्हें लोगों का समर्थन नहीं है और लिबिया के लोग उन्हें देश के गद्दार मानते हैं, जो देश की संप्रभुता को साम्राज्यवादियों के हाथों बेचने को तैयार हैं। साम्राज्यवादियों ने यह प्रचार किया था कि लिबिया के लोग गद्दाफी की सरकार से मुक्ति पाने के लिए बेताब हैं और अमरीका-नाटो सैनिक दखलंदाजी चाहते हैं। यह प्रचार प्रतिदिन झूठा साबित हो रहा है। कई शहरों और गांवों में लोग संगठित होकर लिबिया की सेना के साथ मिलकर, अमरीका-नाटो समर्थित विद्रोही दलों को हराने की कोशिश कर रहे हैं।
अमरीका की अगुवाई में इस गठबंधन के अन्दर 20बड़ी और छोटी विदेशी सैनिक ताकतों ने दखलंदाजी की है, और लिबिया की संप्रभुता पर हमला किया है।
साम्राज्यवादी दखलंदाजी की वजह से लोगों की राष्ट्रीय जागरुकता बढ़ गयी है। लोग साम्राज्यवादियों को अपने कट्टर दुश्मन मानते हैं, जो वहां कठपुतली सरकार बैठाकर, अपनी हुकूमत चलाना चाहते हैं। हालांकि गद्दाफी सरकार के कई अफसर साम्राज्यवादियों की तरफ चले गए हैं, पर वहां की जनता अपनी मुक्ति और संप्रभुता के लिए लड़ रही है।
लिबिया की स्थिति गंभीर है। साम्राज्यवादी जमीनी सेना लाकर लिबिया पर कब्ज़ा करने की तैयारी कर रहे हैं, या देश का विभाजन करने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि हथियारों, विशेष सेनायें, कातिलाना फौजों तथा कार्यनीतिक नेतृत्व के रूप में इस समय जो दखलंदाजी चल रही है, वह अपर्याप्त साबित हो रही है।
अमरीकी सरकार लिबिया में चल रही खुफिया गतिविधियों को छुपा कर रखने की कोशिश कर रही है, परन्तु इसके बावजूद, लिबिया के विद्रोही दलों के पीछे अमरीकी खुफि़या दलों का हाथ साफ़ नजर आ रहा है। विद्रोही दलों के मुख्य सैनिक नेता अमरीकी सरकार के जाने-माने लोग हैं और जाने-माने सी.आई.ए. कर्मी हैं। खलिफा हफ्तार को 17मार्च को, लिबिया पर अमरीका-नाटो बमबारी की शुरुआत के ठीक पहले, मुख्य विद्रोही कमांडर नियुक्त किया गया। साम्राज्यवादी मीडिया में यह दिखावा किया गया कि लिबिया के विद्रोही देशी हैं, जिनके बारे में अमरीका को ज्यादा कुछ नहीं मालूम है। परन्तु जेम्सटाउन फाउंडेशन नामक एक अमरीकी विचार दल ने 1अप्रैल को इस झूठ का पर्दाफ़ाश कर दिया, जब उसने हफ्तार के इतिहास और कारनामों की रिपोर्ट दी। यह आदमी गद्दाफी के काफी नज़दीक हुआ करता था, फिर 1988में अमरीकियों ने उसे चेड में पकड़ा, उसे अमरीका ले जाया गया, जहां उसने सी.आई.ए. के साथ मिलकर, उसी वर्ष ग्रामीण वर्जिनिया में तथाकथित “लिबियन नैशनल आर्मी” का गठन किया। वहां अमरीका विद्रोही दलों को गद्दाफी की सरकार को गिराने का प्रशिक्षण देता था। विद्रोही दलों को अगुवाई देने के लिए हफ्तार को मार्च में लिबिया भेजा गया। इससे पहले, 1996में जाना जाता है कि उसने पूर्वी लिबिया में गद्दाफी सरकार के खिलाफ़ आन्दोलन आयोजित करने की कोशिश की थी।
विद्रोह के दूसरे मुख्य नेता हैं तीन लोग, जिन्हें अफगानिस्तान पर अमरीकी कब्ज़े के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान से उठाया गया था। इनमें से एक ने ग्वांतानामो बे में 6वर्ष बिताये थे, फिर उसे 2007में गद्दाफी सरकार को सौंपा गया था। एक दशक से अमरीका और नाटो ने विभिन्न देशों में सैनिक दखलंदाजी करने के लिए, “आतंकवाद पर जंग” का बहाना दिया है। जब एक अमरीकी सांसद ने अमरीकी उपविदेश मंत्री से लिबिया में विद्रोही दलों को अगुवाई दे रहे एक भूतपूर्व तथाकथित अल कायदा कर्मी के बारे में पूछा, तो मंत्री ने जवाब देने से इनकार किया और कहा कि इस मुद्दे पर गुप्त रूप से चर्चा होगी, जैसे कि अमरीकी खुफिया कार्यों के साथ होता है।
इस बीच, अमरीका और नाटो के समर्थक देश लिबिया के तेल स्रोतों पर कब्ज़ा करने के लिए होड़ लगा रहे हैं। इसीलिये अमरीकी प्रतिनिधि मंडल और उससे पहले फ्रांसीसी व ब्रिटिश दूत बेंगाज़ा की यात्रा कर रहे हैं। अमरीकी दूत दूसरी बातों के अलावा, यह चर्चा करेगा कि “विद्रोही पारिषद की क्या वैत्तिक जरूरत है”, तथा इसमें “अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय कैसे मदद कर सकता है”। अवश्य ही, इस “मदद” के बदले, अमरीकी तेल उद्योग को कई लुभावने ठेके मिलेंगे।
लिबिया में जंग को जायज ठहराने में साम्राज्यवादी नियंत्रित मीडिया की भूमिका की कड़ी निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने फरेबी तस्वीरों और रिपोर्टों द्वारा यह दिखाने की कोशिश की है कि गद्दाफी सरकार बड़ी क्रूरता से मानव अधिकारों का हनन करती आयी है, कि वह आतंक के जरिये शासन करती आयी है। साम्राज्यवादी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि लिबिया के लोगों को अपनी पसंद की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था चुनने का अधिकार है। साम्राज्यवादी सैनिक दखलंदाजी द्वारा एक कठपुतली सरकार बिठाना चाहते हैं, ताकि उस इलाके में अपने भू-राजनीतिक हितों को बढ़ावा दे सकें।
साम्राज्यवादी गद्दाफी सरकार को हटाकर, कठपुतली सरकार बिठाने के इतने इच्छुक क्यों हैं? इसका कारण कुदरती संसाधनों से समृद्ध अफ्रीका को फिर से बांटने के लिए अंतर साम्राज्यवादी झगड़ों में पाया जाता है। लिबिया उन चंद अफ्रीकी देशों में से है (बाकी देश सूडान, जिम्बावे, आइवरी कोस्ट और एरिट्रिया हैं) जो अफ्रीकाम में शामिल नहीं हैं। अफ्रीकाम अफ्रीका और भूमध्य सागर तट पर अमरीकी नियंत्रण का सबसे हाल का साधन है।
मजदूर एकता लहर लिबिया पर अमरीकी-नाटो हमले की कड़ी निंदा करती है। लिबिया के लोगों को पूरा अधिकार है कि वे साम्राज्यवादी दखलंदाजी से मुक्त, अपनी पसंद की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था अपनाएं. अमरीका-नाटो सैन्य बलों को लिबिया से बाहर फैंकना होगा और लिबिया के लोगों पर किये गए अपराधों के लिए उन्हें कड़ी सज़ा देनी होगी।